हंसिये चाहे रोयिए ( दो हास्य कविताएं ) डॉ लोक सेतिया
खबर वाले ( हास्य कविता )
अब हर दिन सुना रहे ,
फिर फिर उसकी कहानी ,
पहले खबर ढूंढते क्या ,
मर जाती थी इनकी नानी।
रखवाली क्या करोगे ,
घर की बन चौकीदार ,
बिक चुके ज़मीर वाले ,
झूठे हो सभी इश्तिहार।
अपनी गली में शेर हो ,
कहते हो सेर बाकी सब ,
तुम सब पे सवा सेर हो ,
पेट भर लिया हुए ढेर हो।
दाता हैं भिखारी ( व्यंग्य कविता )
किसने किसे क्या दिया है ,
ये कैसा अजब माजरा है ,
मालिक तुम हो भिखारी ,
सेवक दाता बन कह रहा है।
खाली हाथ आया था जो ,
आया था हाथ जोड़ कर ,
कहता है सब का मालिक मैं ,
खुद बन गया सेवक खुदा है।
खोटा सिक्का इस तरह चला ,
करना था जिसे सब का भला ,
सब बुरे पुराने लगते हैं भले ,
जब देखा सभी ने सभी से बुरा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें