प्यार बस प्यार है ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
किसी सुंदर हसीनाकिसी खूबसूरत नवयुवक
को गुलाबी रंग का प्रेम पत्र
लाल गुलाब का कोई फूल
देना किसी ख़ास दिन को
और आई लव यू कहकर
करना प्यार का इज़हार
क्या ऐसा ही होता है प्यार
जैसे सजता है हर साल
गली गली , शहर शहर
कोई खुला बाज़ार ।
काश कि इतना सुलभ होता
सच में प्यार मिल जाता सभी को
मगर नहीं है आसान मिलना
जीवन भर की तलाश में भी
इक ऐसा सच्चा प्यार जो
महका दे जीवन को ऐसे
इत्र की खुशबू हो जैसे
महका दे तन मन को
फूलों की महक हो जैसे ।
प्यार किसी की मुस्कान है
बस किसी की इक नज़र है
कब हुआ क्योंकर किस से
कहां होती किसी को खबर
न होता करने से ये कभी
न रुकता किसी के रोकने से
अपने बस में नहीं होता कुछ भी
दिल जान सब लगता है
नहीं कुछ भी हमारा अब
जाने कैसे हो गये पराये सब ।
इक तड़प है बेकरारी है
न साथ देती दुनिया सारी है
प्यार है ईनाम भी सज़ा भी है
है इबादत भी खता भी है
भटक रहे लोग यहां सहरा में
समझ रहे चमकती रेत को पानी ।
इक आग है इश्क़ दुनिया वालो
चांदनी मत समझना इसको
राहें हैं कांटों भरी प्यार की
लिखी जाती है आह से आंसुओं से
जो भी होती है सच्ची प्रेम कहानी ।
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