सितंबर 06, 2019

शिक्षक दिवस पर मन की बात ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

 शिक्षक दिवस पर मन की बात ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

      पिछले साल मैंने शिक्षक दिवस पर अपने गांव के मास्टरजी गुलाबराय जी और शहर के बचपन के अध्यापकों की बात लिखी थी। उनका आदर आज भी सभी लोग करते हैं जिन्होंने बिना कोई सुविधा होते हुए भी सरकारी स्कूल खोला था बड़े जतन से और शिक्षा देकर हम सभी को इंसान बनाने की कोशिश की थी। मैंने बताया था उनके पास बड़े शहर में घर था और सरकारी स्कूल की नौकरी कोई मज़बूरी नहीं थी उनका उद्देश्य था शिक्षा का विस्तार करना और उन्होंने जो किया कहीं दर्ज भी नहीं बस उन बच्चों और उनके माता पिता की मधुर स्मृति में हमेशा रहते हैं। मगर कल मुझे कुछ और अनुभव हुआ जिसको कल लिखना उचित नहीं था मगर लिखना ज़रूरी है। अब जो कल लिखा था उस से पहले जो नहीं लिखा गया उसी से शुरुआत करता हूं। कल से इक बेचैनी सी है मन उदास है। जो हुआ आपको बताता हूं अक्षर दर अक्षर सत्य केवल सत्य। 

      महिला दिवस पर भी ऐसी महिलाओं को शुभकामना संदेश भेजना आदत है और शिक्षक दिवस पर जो भी अध्यापक फोन की कॉन्टैक्ट लिस्ट में हैं उनको फोन करता हूं भले उनसे मैंने कभी शिक्षा नहीं पाई मगर कितने और लोग हैं जिनको उन्होंने पढ़ाया है। बीस तीस लोगों से बात की और तमाम लोग खुश हुए ये जानकर कि कोई उनकी समाज को दी शिक्षा की कीमत को समझता है आदर देता है। चार पांच लोग थे जो शिक्षा देने का काम छोड़ चुके हैं और किसी भी और मकसद को जी रहे हैं , फिर भी सभी शिक्षक होने पर गर्व करते हैं और दो लोगों का कहना था अगले जन्म भी शिक्षक बनना चाहते हैं। मगर अचरज हुआ इक महिला की बात सुनकर जो अध्यापिका रही और अच्छी शिक्षा देने को राष्ट्रपति से पुरुस्कार भी मिला जाने कैसे पर आज उनको शिक्षक दिवस की शुभकामना देने पर शिक्षा को लेकर बात करना ही पसंद नहीं था क्योंकि उन्होंने अपने ससुर की मौत के बाद उनकी राजनीति की विरासत को लेकर शायद जो पढ़ा पढ़ाया भूलकर अपनी महत्वाकाँक्षा को महत्व देना और सत्ता का उपयोग करना ज़रूरी समझा। ससुर की जगह विधायक बन किसी दल के बदनाम हो चुके नेताओं के करीब रहने के बाद समय बदलते ही दलबदल कर सत्ताधारी दल का दमन थाम लिया। कल उनको अपने दल के नेता को शहर के बाकी कई नेताओं की तरह खुश करना मनाना था अगले चुनाव में टिकट पाने को। जब मैंने कहा मुझे उनकी या किसी की राजनीति या विचारधारा से मतलब नहीं है और केवल आलेख इक रचना लिखना चाहता हूं शिक्षक दिवस पर उस पर विचार जानना चाहता हूं आपकी राजनैतिक सभा की बात से हटकर। वो जैसे नराज़ हुईं कह दिया आप उचित नहीं कर रहे हैं , जी यही कहा था , शिक्षक दिवस पर शिक्षा की बात करना किसी स्कूल की मुख्य अध्यापिका रही महिला से जिनसे अच्छा परिचय रहा है खट्टे मीठे अनुभव को छोड़ केवल शिक्षक से लेखक की बात इस विषय पर कैसे गलत हो सकती है। मगर शायद अपने राजनैतिक हित के सामने उनको बाकी कुछ भी दिखाई नहीं दिया और मैंने आखिर उनसे बेबाक कह दिया कि आज आपको फुर्सत नहीं बात करने की तो कल टिकट मिलने के बाद आप किस तरह वोट मांगने मेरे पास आ सकोगी। राजनीति करनी है मगर पहचान के लोगों से ऐसा व्यवहार करते हैं तो आम अजनबी लोगों से जाने किस भाषा में बात करती होंगी। ये अनुभव भी इक शिक्षा की तरह है तभी जो लिखा कल की पोस्ट से ऊपर शुरुआत इसी से की है।
     अब कल लिखी बात। युग बदल गया है आजकल सरकार स्कूल कॉलेज पढ़ाई की बात ही नहीं करती है। आपके पास स्मार्ट फोन है हर काम के लिए ऐप्स हैं सदी के महानायक तक इधर उधर जाने से मना करते हैं। पास बैठे नादान युवक से फोन लेकर सब को डिलीट कर इक वही ऐप इनस्टॉल कर देते हैं जो उनको विज्ञापन करने को ढेर सारा पैसा देती है। टीवी वीडियो कॉल के युग में कोई रेडियो पर मन की बात सुनाता है आपको वापस किसी पिछली दुनिया में जे जाता है। पढ़ कर बेरोज़गार बनोगे क्या मिलेगा पकोड़े बेचने का सबक सिखाता है बरसात का मौसम आता है जाता है पकोड़े वाला हर शहर में मशहूर है जो करोड़ों कमाता है। कौन पकोड़े नहीं खाता है कौन जलेबी खाने से घबराता है। शिक्षक दिवस पर संबोधन कोई और पढ़कर बताता है क्या पढ़ना है कैसे पढ़ना है समझता नहीं खुद आपको जो समझाता है। पहला सवाल हर साल पांच सितंबर क्यों आता है। 

पढ़ना लिखना आपका काम नहीं है पोथी पढ़कर जो सुनाते हैं उपदेशक कहलाते हैं स्कूल क्या लेने जाते हैं जो समझदार बच्चे हैं कीर्तन सुनते हैं ताली बजाते हैं। हाथ जोड़ मांगते हैं और पाते हैं भीख लेने की बात क्यों भूल जाते हैं। दाता एक राम है भिखारी सारी दुनिया और भीख मांगना अपराध नहीं है मज़बूरी है ये बात खुद न्यायधीश बतलाते हैं। मन की बात कहने वाले भीख मांग कर जीवन भर रहे आजकल शहंशाह कहलाते हैं। कोई भिखारी मर गया आयकर वाले फुटपाथ पर नोट गिनते हैं गिनते जाते हैं। भीख की महिमा सबको बताते हैं। कौन कहता है सरकारी लोग रिश्वत खाते हैं चढ़ावा लेकर ऊपर पहुंचाते हैं अपने मंदिर जाकर देखा नहीं भोग कैसे लगवाते हैं। भगवान को पर्दे के पीछे खिलाने की रस्म निभाते हैं आपको थोड़ा देते हैं बाकी रखते जाते हैं धर्म की दुकान की शान बढ़ाते हैं। 

मन की बात वाले जानते हैं विश्वगुरु इसी तरह कहलाते हैं विदेशी ज्ञान हासिल करने आते थे आजकल लोग विदेश पढ़ने ईलाज करवाने जाते हैं। शिक्षा आम होने से बेरोज़गारी की समस्या है अनपढ़ लोग दिहाड़ी मज़दूरी कर लेते हैं राजनैतिक सभा में भीड़ बनकर ताली बजाने को काम मिलता है साल में सौ दिन नहीं जितने दिन भी चाहो मिल सकता है थोड़े दिन ही कर गुज़र बसर हो जाता है। ज़िंदाबाद कहना किसको नहीं भाता है अनपढ़ भी बोलना सीख जाता है। पढ़ लिख कर डॉक्टर इंजीनयर बन ख़ाक छानोगे या गाली खाओगे जान से जाओगे इस तरह पैसा कमा कर चैन से रह पाओगे। अनपढ़ रहोगे मौज उड़ाओगे और लंबी आयु तक नहीं जी पाओगे , अस्पताल स्वास्थ्य सेवा से आयु बढ़ जाने का काम करते हैं देश की आबादी को कितना बढ़ाओगे। ये जीना कोई जीना है ज़िंदा कैसे रहते हैं नहीं जान पाओगे हर दिन ज़िंदगी पर पछताओगे। खाओ कसम कभी स्कूल कॉलेज नहीं जाओगे बच्चों को शिक्षक के पास नहीं लेकर जाओगे , खेलना कूदना मज़दूरी करना पकोड़े तलना चाय बनाना काबिल बन कर बोझ अपना खुद उठाओगे। कमाई हो नहीं भी हो कर फिर भी चुकाओगे। चिंता की कोई बात नहीं है जैसे जिओगे उसी तरह मर भी जाओगे खाली हाथ आये थे क्या साथ लेकर जाओगे।

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