नवंबर 07, 2023

ख़राब नशा छोड़ अच्छा नशा अपनाओ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

 ख़राब नशा छोड़ अच्छा नशा अपनाओ ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

कल 6 नवंबर को कौन बनेगा करोड़पति शो की ख़ास महमान थी मुक्तांगन नशामुक्ति केंद्र पुणे की संचालिका मुक्ता पुणतांबेकर जी । शराब गांजा चरस से लेकर कितने ही नशे को लेकर सरकार से सामाजिक संगठन ही नहीं शासक प्रशासक से बड़े बड़े नायक महानायक समझे जाने वाले साधारण लोगों को समझाते हैं । लेकिन कल पहली बार खुद अमिताभ बच्चन जी सवाल कर बैठे कोई और भी नशा है जिस को लेकर आपको या सभी को चिंतित होना चाहिए । मुक्ता जी ने बताया और तथ्य सहित समझाया कि स्मार्ट फ़ोन वीडियो गेम से लेकर सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प सभी का उपयोग दुरूपयोग कुप्रयोग अर्थात इस्तेमाल करने से अनुचित इस्तेमाल से भी आगे गलत या हानिकारक ढंग से इस्तेमाल किया जाता है । शायद किसी भी उस सभा में उपस्थित अथवा शो के दर्शक को महसूस हुआ होगा कि तमाम लोगों को इस कौन बनेगा करोड़पति खेल को लेकर भी इक नशा है और ये नशा भी सर चढ़ कर बोलता है कि किसी व्यक्ति को लेकर बात करने देखने तक पागलपन की सीमा पार कर लोग बहुत कुछ ऐसा कर जाते हैं जो चाटुकारिता की सीमा पर कर खुद अपने स्वाभिमान और सामाजिक छवि प्रतिष्ठा को दांव पर लगाता प्रतीत होता है । बहुत मुमकिन है बाद में उनको वास्तविक जीवन में अपनी बात या आचरण को लेकर शर्मसारी अनुभव हुई हो । आज ऐसे तमाम तरह के नशों को लेकर चर्चा करने की ज़रूरत है । 
 
दौलत पैसा नाम शोहरत हासिल करने का भी नशा इतना अधिक है कि लोग सिर्फ टीवी पर दिखाई देने को कुछ भी करने को तैयार रहते हैं । यहां तक कि खुद अपना उपहास करवाने से भी संकोच नहीं करते हैं । सिनेमा टीवी चैनल सोशल मीडिया तक खुद अपना गुणगान करते नज़र आते हैं , ज़मीर बेच कर भी धनवान बनने को राज़ी हैं लोग । राजनेताओं को झूठी चमक दमक और शोहरत की आकांक्षा की कोई सीमा ही नहीं है तमाम अनुचित कार्य करने के बावजूद मसीहा कहलाना चाहते हैं जो अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाते तो देश की दुर्दशा का कारण नहीं बनते । सत्ता का नशा इतना ख़तरनाक़ होता है कि उसे हासिल करने को समाज को बांटने लड़वाने नफ़रत की आग फ़ैलाने तक सब करते हैं और सत्ता पर बैठते समय संविधान की खाई शपथ को कभी याद ही नहीं रखते हैं ।  हम सभी की गुलामी की आदत आज़ादी मिलने के बाद भी ख़त्म नहीं हुई है और हम इक न इक को ख़ुदा भगवान मसीहा समझ लेते हैं । मगर सच तो ये है कि राजनेता कभी भी मसीहा नहीं होते हैं और अब तो शायद ही कोई देश और समाज की भलाई की राजनीति करता है कभी कुछ विरले जयप्रकाश नारायण और लाल बहादुर शास्त्री जैसे सच्चे राजनेता होते थे । सादगी से जीवन यापन करना और देश के संसाधनों का उपयोग जनकल्याण की ख़ातिर करना जिनका आदर्श था । जो शासक खुद अपने रहन सहन और ऐशो-आराम पर इतना अधिक खर्च करता है जिस पैसे से हज़ारों लाखों लोगों की रोटी रोज़ी और बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा सकती हों उस को जनता का सेवक नहीं कह सकते हैं । 
 
अफ़सोस की बात है कि बड़े अधिकारी से शासन पर आसीन नेताओं तक सभी अपने अधिकारों का गलत बल्कि बेहद आपत्तिजनक अनुचित उपयोग करने के बाद भी खुद को अपराधी नहीं मानते हैं । अहंकार का नशा भी बड़ा ही नुकसानदायक होता है और इधर अहंकारी लोग अपनी भाषा में संयम नहीं रख जिस किसी को चाहे अपशब्द से संबोधित करते हैं सभाओं से संसद तक शिष्टाचार की दशा गंभीर है । कुछ लोगों को किसी भी तरह से अधिक से अधिक धनवान बनने का मोह होता है और अपने कारोबार उद्योग या फिर दिखावे की समाजसेवा में पैसा बनाने की लत इतनी बढ़ जाती है कि उचित अनुचित की परिभाषा भूल जाते हैं और जो भी उनको बाधा लगता है उस को नुकसान पहुंचाने में सब तरीके आज़माते हैं । मुक्ता पुणतांबेकर जी ने बताया सभी बुरे नशे आपको लगता है ख़ुशी मिलती है उनसे मगर वास्तविक ख़ुशी आपको कुछ अच्छे नशे अपनाने से भी मिल सकती है जैसे सभी की भलाई करने की आदत किताबों को पढ़ने की संगीत की और महनत से ईमानदारी से अपनी आमदनी से सादगी से जी कर खुश रहने की सोच को अपनाना और जब आपके पास अपनी आवश्यकता से अधिक हो तो उनकी मदद करना जिनके पास कुछ भी नहीं होता है । 

सच तो ये है कि आजकल सभी को कोई न कोई नशा लगा हुआ है अपने ही स्वार्थ में अंधे होकर देश समाज को नैतिक मूल्यों ऊंचे आदर्शों को छोड़ दिया है जिसे देखें खुद अपने को छोड़ तमाम अन्य लोगों की आलोचना करता दिखाई देता है । प्यार की सदभावना की बात याद नहीं मगर नफ़रत और हिंसक होने की आदत आम है ज़रा ज़रा सी बात पर लड़ाई झगड़ा और आपसी विवाद होने लगे हैं आपसी रिश्तों में कोई झुकना नहीं चाहता न किसी को क्षमा करना चाहते हैं । दोस्ती की भावना नहीं और दुश्मनी बैर की भावना मन में छुपी रहती है । बड़े घर ऊंची इमारत शानदार दिखावे का साधन सुविधाएं हासिल हैं फिर भी चैन की नींद नहीं आती और न ही खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि जिन बातों से ऐसी वास्तविक ख़ुशी और संतोष मिलता है उनको हमने बेकार समझ त्याग दिया है । अच्छाई सच्चाई की राह पर चलने को सभी नासमझी मानने लगे हैं और समझदार होना अर्थात सफल होने को कुछ भी मार्ग अपनाना बन गया है । हमने समाज को उत्थान की ओर अग्रसर करने की जगह पतन और विनाश की राह चुनी है । झूठ छल कपट धोखा इक चलन बन गया है आधुनिक समाज की नींव जिस पर टिकी है वो खोखली और कमज़ोर है । तभी हमारी तथाकथित गगनचुंबी तस्वीर इक झौंके से चरमरा कर गिरने को अभिशप्त है । नशा है मुहब्बत का भी और जंग का भी नशा होता है जो सामने दिखाई दे रहा है । प्यार में और जंग में सब जायज़ कहते हैं लोग । आपको क्या चुनना है हरा भरा या ज़र्द रंग झुलसा हुआ अपने बगीचे का । 
 

 

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