अगस्त 25, 2018

निराशा की राजनीति कब तक ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

      निराशा की राजनीति कब तक ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

       आज खुले दिल की बात , सबसे बड़ी दौलत कोई किसी को जो दे सकता है वो है आशा । आज़ादी आशावादी लोगों का सपना थी जो साहस से सच किया तमाम लोगों ने । तब सभी आज़ादी के दीवाने यही कहते थे सोचते थे और यकीन करते थे कि भले हम अपने सामने जीवन काल में नहीं भी देख पाएं देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होना ही है । आजकल के नेता झूठे वादे देते हैं और अब तो निराशा बांटते हैं ये जतला कर कि वो देश से नहीं बल्कि देश उन पर निर्भर है । शायद देश के साथ इस से बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता कि आप देशभक्ति से अधिक महत्व व्यक्तिपूजा को देने लगो । कोई भी नेता कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हो सकता जिस के बिना देश का काम काज या सरकार नहीं चल सकती । इस सोच में केवल निराशा छुपी हुई है जो कुछ लोग खुद भी सोचते हैं और औरों को भी डराना चाहते हैं कि किसी नेता का कोई विकल्प नहीं है । देश की सवासौ करोड़ जनता और संविधान के साथ ये अनुचित बात है । कितने नेता आये गये मगर देश कायम रहा और हमेशा रहेगा । चाटुकारिता की भी सीमा होती है और ऐसी चाटुकारिता देश हित के विरुद्ध है । अगर आप वास्तव में देश के लिए मुहब्बत रखते हैं दिलों में तो सबसे पहले आशावादी नज़रिया कायम करें कि चाहे जो भी हो देश फले फूले और आगे बढ़ता रहेगा । निराशावादिता से किसी को कुछ भी हासिल नहीं हो सकता है । आप ने कभी महसूस किया है देश भक्ति के सभी गीत लोगों में उम्मीद जगाते हैं इक ऊर्जा का संचार करते हैं । हम सभी जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हैं केवल आशा के भरोसे कि हम इन से बाहर निकल सकते हैं । मगर आज कुछ लोगों की हालत अंधे कुंवे में बंद ऐसे लोगों की तरह है जो शायर कैफ़ी आज़मी की नज़्म में आज़ादी चाहिए रौशनी चाहिए के नारे लगाते रहते हैं मगर जब उनको बाहर निकाला जाता है तो वापस अंधे कुंवे में छलांग लगा देते हैं और दोबारा वही नारे लगाने लगते हैं । ऐसे निराशावादी लोग वास्तव में कोई कोशिश ही नहीं करते हैं बस शोर मचाते हैं । कुछ लोग समझते हैं उनकी चमक बढ़ेगी अगर बाकी लोगों की चमक को धुंधला कर दिया जाये । घर परिवार में भी कोई आदमी ऐसा होता है जो भाई पिता दादा सब की महनत को नकारता है ऐसा कहता है अपने किया क्या है सब मैंने किया है । मगर ये भूल जाता है खुद उसको इस काबिल किसने बनाया है । और जो उसे मिला उसी से कुछ कर दिखाना है मगर ऐसे लोग करने से ज़्यादा जो किया गया उसकी कमियां बताने में समय बर्बाद करते हैं और कर नहीं पाते खुद कुछ भी । करना कर दिखाना और बात है और करूंगा की बातें करना दूसरी बात ।

         विकल्पहीनता आदर्श दशा नहीं हो सकती , लोग भगवान तक बदलने का साहस रखते हैं । कोई ज़बरदस्ती है कि उसी को वरमाला डालनी होगी । आप क्या गुंडे बदमाश की तरह किसी लड़की को डरा कर हासिल करना चाहते हैं कि मुझे नहीं मिली तो किसी और की नहीं होने दूंगा । तेज़ाब से जलाने वाले प्यार नहीं किया करते हैं । जिन लोगों ने बनाया है उन्हीं को डरा रहे हो , हार के डर से घबरा रहे हो । नासमझ खुद हो सबको समझा रहे हो , जिधर नहीं जाते उधर जा रहे हो । उलझनों को और उलझा रहे हो , खुद उलझे हुए आप और सबकी उलझन बढ़ा रहे हो । कुछ खबर है कहां से आ रहे हो कोई खबर है कहां जा रहे हो । कैसे समझाएं क्या खो रहे हो क्या पा रहे हो । खुद अपने साये को सुबह शाम देख अपना कद बढ़ता समझ धोखा खा रहे हो । खुद अपने में सिमटते दोपहर को देख साया भरमा रहे हो । 
 
             अपने कभी ग्रामोफोन पर काले तवे पर घूमती सुई से संगीत सुना है , कभी कभी जब सुई किसी एक जगह अटक जाती थी तो संगीत नहीं शोर पैदा होता था । आजकल कुछ उसी तरह का शोर है जो देश की जनता को परेशान किये है । देश को छोड़ किसी नेता को इतना महत्व देने वाले पहले भी होते रहे हैं , मगर  उनके रहने नहीं रहने से देश को कोई फर्क नहीं पड़ा न पड़ना चाहिए । वास्तविक देश भक्त कभी ऐसा नहीं मानते कि उनके बिना देश का क्या होगा , उल्टा समझना ये चाहिए कि देश है तो वो हैं । आप किसी दल से संबंध रखते हों या आम नागरिक हों जिसे दलगत राजनीति से कोई मतलब नहीं , देश के लिए आपके दिल में जो भावना रहती है वतन से प्यार की वो सबसे बढ़कर है । चाहे जो भी हो अगर सत्ता की राजनीति में लोगों को आशा की बजाय इक डर इक दहशत और निराशा देता है और ये जताता है कि सिवा उसके शायद कोई अनहोनी हो सकती है तो उसको समझाना होगा देश अगर समंदर है तो वो इक तिनके की हैसियत रखता है । नायक वही होते हैं जो देश को निराशा नहीं आशा की उम्मीद की राह चलने को कहते हैं । आज इक गीत बहारें फिर भी आयेंगी फिल्म से पेश है , आशावादी भावना जगाता है ।
 
बदल जाये अगर माली , चमन होता नहीं खाली ,
बहारें फिर भी आती हैं , बहारें फिर भी आएंगी । 
 
अंधेरे क्या उजाले क्या , न ये अपने न वो अपने ,
तेरे काम आएंगे प्यारे , तेरे अरमां तेरे सपने ,
ज़माना तुझ से हो बरहम , न आएं राह में मौसम ,
बहारें फिर भी आती हैं , बहारें फिर भी आएंगी । 
 
थकन कैसे घुटन कैसी , चल अपनी धुन में दीवाने ,
खिला ले फूल कांटों में , सजा ले अपने वीराने,
हवाएं आग भड़काएं , फ़िज़ाएं ज़हर बरसाएं ,
बहारें फिर भी आती हैं , बहारें फिर भी आएंगी । 
 

 




2 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अकेले हम - अकेले तुम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Sanjaytanha ने कहा…

विकल्पहीनता आदर्श दशा नही हो सकती....बहुत सही आलेख