हम शर्मिन्दा हैं ( देश के हालात पर ) डॉ लोक सेतिया
किस किसे से शर्मसार हैं । हम कैसे गुनाहगार हैं । करते आज इज़हार हैं । हम सब कसूरवार हैं । किन हालात में ज़िंदा हैं , बापू हम शर्मिंदा हैं । तुम इक विचार थे हमने तुम्हें इश्तिहार बना डाला । तेरी समाधि पर सर झुकाने वाले लोग तेरी बताई राह से विपरीत चलते हैं । तेरे नाम तेरी तस्वीर तेरे चश्में तक को अपने मतलब को इस्तेमाल करते हैं । तुझे कत्ल करने वाले का मंदिर बनवा उसकी पूजा करते हैं लोग और हम अहिंसा की आड़ में कायरता दिखलाते हैं । सादगी से जीने और आखिरी आदमी के आंसू पौंछने की बात क्या देश के सेवक जनता के धन से शाही ढंग से रहते हैं भूखी जनता का लहू पीते हैं । हम सब देखते हैं चुप रहते हैं ऐसे नेताओं को हम देशभक्त कहते हैं । हमें कभी माफ़ मत करना हम अपराधी हैं जो अन्याय के सामने झुक जाते हैं । भगतसिंह हम शर्मिंदा हैं । हमने तुम जैसे शहीदों की कुर्बानी को व्यर्थ कर दिया है । हम आज भी गुलामी का बोझ ढोते हैं , अपनी बेबसी पर छुपकर रोते हैं । तुझे भी हमने इक तमगा बना लिया है सीने पर लगाकर आडंबर करते हैं तेरी राह चलने का जबकि हम देश को देना कुछ भी नहीं चाहते और पाना सभी कुछ चाहते हैं । नेहरू जी हम शर्मिंदा हैं । जिस लोकतंत्र को तुमने सींचा था उसकी धज्जियां उड़ाने वालों की बात सुनकर हमारा खून नहीं खौलता और हम तालियां बजाते हैं तुम्हारे दिन रात महनत और लगन से खिलाये चमन को बर्बाद करने वालों के सामने हम बेबस हैं । जिन्होंने कुछ भी निर्माण किया नहीं केवल विकास के नाम पर महान नेताओं के नाम का इस्तेमाल ही किया है और बांध कारखाने स्कूल अस्पताल नहीं बनवाये मगर मूर्तियां और झूठी दिखावे की शान पर धन बर्बाद किया है और समझते हैं यही देश का विकास है आज सत्ता पर काबिज़ होकर शांति नहीं अशांति का माहौल बना रहे हैं । आज तुझको बदनाम करते हैं हर रोज़ सुबह शाम इक यही काम करते हैं खुद क्या हैं नहीं जानते झूठ की बना कर पहचान ऐलान करते हैं ।
लाल बहादुर जी हम शर्मिंदा हैं । जय जवान जय किसान की बात याद नहीं किसी को । स्वाभिमान की बात कोई नहीं समझता और विदेशी लोगों के सामने झुके हुए हैं और मुट्ठी भर लोगों को फायदा पहुंचाने का काम बेशर्मी से करने वाले ईमानदारी की बात करते है । देश की आज़ादी की जंग के वीरो हम शर्मसार है क्योंकि हम आज़ादी की रक्षा करने में नाकाम रहे हैं और राजनेताओं अधिकारीयों की मनमानी के सामने नतमस्तक हैं । अपने अधिकार नहीं छीनते हम बस भीख मांगते हैं सरकारों से । देश के महान साधु संतो , समाजसुधरक महात्माओ हम शर्मिंदा हैं । हमने आपकी सभी शिक्षाओं को भुला दिया है और सच्चाई की राह पर निडर होकर नहीं चलते हैं । आचरण की बात नहीं भौतिकता की अंधी दौड़ में समाज को रसातल में ले जाने का कार्य कर रहे हैं । सब दार्शिनकों ज्ञानीजनों की सीख को दरकिनार कर निम्न स्तर की चर्चा और घटिया मनोरंजन हमारा ध्येय बन गए हैं । धर्म को मुखौटे की तरह उपयोग करते हैं धार्मिकता कहीं नहीं बची है । किस किस का नाम लिया जाये किस किस धर्मग्रंथ की बात की जाये , सबको हमने केवल सर झुकाने और पूजा करने को बेजान वस्तु बना दिया है । समझना क्या हम कभी पढ़ते तक नहीं उन आदर्श की किताबों को । हमारे महान आदर्श पूर्वजो हम शर्मिंदा हैं । हम ने ऐसा समाज बनने दिया है जिस में समानता नहीं है , मानवता नहीं है , दया भाव नहीं है । केवल अहंकार और स्वार्थ हर किसी को महत्वपूर्ण लगते हैं । हम किस बात पर गर्व कर सकते हैं कुछ भी ऐसा नहीं दिखाई देता । अपराधी क़ातिल लुटेरे खुले आम जुर्म करते हैं सरकार कानून पुलिस किसी को एहसास नहीं अपनी निष्क्रियता का , बेबस हैं सभी बच्चों महिलाओं की सुरक्षा उनका आदर मान सम्मान कुछ भी बच नहीं सकता किसी से ऐसी आज़ादी है , गुंडे बदमाश लोगों को धनवान को मिलता है न्याय मनचाहा , हम केवल शर्मिन्दा हैं ।
1 टिप्पणी:
...Vichar ko ishtihar bna dala...Samanta nhi manvta nhi👍👌
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