जीने का हक हमारा भी तो है ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
नहीं नहीं नहीं हम इंसान हैं
इंसानियत की बात करते हैं
किसी की जान की कीमत
नहीं लगाते हैं सिक्कों से हम
आपकी जान भी जान ही है
हम भी जान की कीमत जानते हैं
आदमी आदमी को दुश्मन समझे
इसको हमेशा से गलत मानते हैं ।
आप सौ साल जियें खुश रहें
हम दिल से दुआ करते हैं ,
मगर हम भी जीने के हकदार हैं
इतनी आपसे इल्तिज़ा करते हैं ,
आपकी सियासत ये क्या सियासत है
आपने सोचा कभी , शराफ़त क्या है
किस तरह देश के लोग बेबात लड़ते
हर दिन बेमौत भी मरा करते हैं ।
आप की हिफाज़त कितनी ज़रूरी है
बस इसी का ध्यान है ,
हम आम लोगों की खातिर
श्मशान और कबरिस्तान है ,
लाखों की मौत की कोई
बात नहीं होती है क्यों भला ,
आपको डर है अगर तो हर तरफ
आपकी सुरक्षा पे मचा कोहराम है ।
जो कहते हैं हम सब की
पल पल की खबर रखते हैं ,
क्या कभी गरीबों पर भी
इनायत की नज़र रखते है ,
खेलते हैं भावनाओं से
जनता की इशारों पर किसके ,
काश खुद को देखते क्या
जताते हैं और क्या करते हैं ।
मौत को किसने बाज़ार बनाया
सबको ये राज़ ज़रा बतलाओ ,
बस करो ज़हर नफरतों का अब
और ना फैलाओ , कुछ शरमाओ
सुरक्षा आपकी हम करें या आपने
आपको हमारी करनी चाहिए हमेशा
आग को आग से नहीं बढ़ाओ मत
है ज़रा पानी बचा तो फिर बुझाओ ।
हम कभी ज़िंदा थे खुश थे सब
हम कभी ज़िंदा थे खुश थे सब
शायद खबर आपको भी होगी ,
कत्ल हुआ ख़ुदकुशी पिलाया
कत्ल हुआ ख़ुदकुशी पिलाया
ज़हर कि बेमौत मर गये हम ,
आपकी जान के सदके लाख बार
आपकी जान के सदके लाख बार
करते हैं लोग सब हमेशा हमेशा
हमसे जीने का अधिकार छीना
किस ने खबर आपको भी होगी ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब
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