जून 16, 2017

POST : 666 पी लिया जाम इक बेखुदी मिल गई ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

         पी लिया जाम इक बेखुदी मिल गई ( ग़ज़ल ) 

                       डॉ लोक सेतिया "तनहा"

पी लिया जाम इक बेखुदी मिल गई
मिल गए आप तो ज़िंदगी मिल गई । 

इश्क़ ऐसे हुआ जिस तरह से से कहीं
खुद समंदर से आकर नदी मिल गई ।

जल रहा धूप में था हमारा बदन
पर तभी प्यार की चांदनी मिल गई ।

उम्र भर हम अकेले ही चलते रहे
ढूंढते थे उसे शायरी मिल गई ।

ख्वाब हर रात "तनहा" वही देखता
मोड़ पर ज़िंदगी थी खड़ी मिल गई । 
 

 

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