जून 03, 2017

POST : 655 मैं चाहे जो करूं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

          मैं चाहे जो करूं ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

अभी तक किसी ने नहीं पूछा आप क्या क्या करते हैं , क्या वो सब जो किया अभी तक सही था। बस किसी भी तरह पैसा बनाया आपने बिना विचारे कि ये किसी अन्य के साथ कितना अनुचित है। आप ने कभी समझना ही नहीं चाहा कि आपके कई काम आपराधिक तरह के हैं। किसी नैतिक मूल्य का आपने पास नहीं रखा कभी , आपने इक पवित्र माने जाने वाले पेशे को इस कदर बदनाम कर दिया कि लोगों को हर मसीहा जैसे इक कातिल हो प्रतीत होने लगा। अपने व्यवसाय में आपने स्वार्थ में अंधे होकर हर सामाजिक कर्तव्य को अनदेखा किया , नियम कानून का पालन करना तो दूर की बात आपने उनको भी अपने हित साधने को दुरूपयोग किया। आपने डर दिखा कर , षड्यंत्र तक कर आपराधिक तत्वों का पक्ष लेकर बिचौलिया बन धन अर्जित किया। जब कभी आपके किसी हमपेशे व्यक्ति पर अनुचित काम करते हुए कोई परेशानी पेश आई आप सब संगठित हो गए ताकि जब आप भी अनुचित करते पाए जाएं तब बाकी सदस्य आपका भी बचाव करें। आपने किसी नियम किसी कानून का पालन नहीं किया अपना व्यवसाय करते हुए। अनधिकृत रूप से सब करना आपको अपना अधिकार लगने लगा और आप सब नियम जानबूझकर तोड़ते रहे। आपने जो करना था उस के विपरीत कार्य किये हैं सालों साल तक और हर गलत ढंग से काली कमाई जमा कर आपने मान लिया कि धनवान होने से कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। आप अच्छी तरह जानते हैं आप सभी जो जो दावे करते हैं अपने पास आने वालों को उचित सेवा देने के वो रत्ती भर भी सच हैं नहीं। आपने मान लिया था आपके कृत्यों पर कभी कोई रोक नहीं लग सकती , हर बार आपके संगठन ने सरकार को अपने महत्व और अनिवार्यता का दबाव बनाकर अथवा मिलकर बहुत बड़ी राशि चंदे की आड़ में घूस दे कर भी आपके पर कोई नियम लागू करने नहीं दिया। काठ की हांडी जितनी आपने लगातार चढ़ाई उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती।

            अचानक सरकार को विवश होकर सब बाकी व्यवसाय उद्योगों और कारोबारों की तरह आपके पेशे के लिए भी जनता की भलाई और लूट के व्यापार पर प्रतिबंध की खातिर कठोर नियम बनाने की ज़रूरत लगी तो आपको लगा ऐसा करना आप पर अन्याय होगा। आपको अपने स्वार्थ जनहित ही नहीं मानवीय मूल्यों से भी अधिक महत्वपूर्ण लगने लगे। और आपको लगता है सही ढंग से ईमानदारी से व्यवसाय करना आपके लिए संभव ही नहीं है। अगर आपकी तरह सभी को अपनी मर्ज़ी और सहूलियत से जो मर्ज़ी करने दिया जाये तब क्या होगा ये कभी विचार किया है। खेद की बात है हम सब से सभ्य और उच्च शिक्षित लोग किसी कानून का पालन नहीं करना चाहते और तब भी खुद को देश के अच्छे नागरिक कहते हैं। देश की खातिर हम करते क्या हैं , अपनी आय पर आयकर भी सही कभी नहीं देते। नेताओं के कारनामों पर आग बबूला होते हैं और अपने नियम कानून तोड़ने को अपनी विवशता कहते हैं।

                     हम कितने ईमानदार हैं और देश के प्रति कैसी निष्ठा रखते हैं इस पर हमारा विवेक कभी झकझोरता नहीं है हमको। हम जब टीवी पर देखते हैं कोई दृश्य तब हमारी संवेदना पल भर को जगती लगती है मगर दो मिंट बाद खुद उसी तरह का अनुचित कर्म हम बहुत आराम से कर रहे होते हैं। देशभक्ति हमारे लिए कोई भावना नहीं रही केवल इक दिखावा मात्र है। पाप पुण्य की हमने अपनी परिभाषाएं बना ली हैं अपनी सुविधा से। अपने सभी अपकर्मों को हमने सद्कर्म घोषित कर दिया है , अब कोई आकर साबित कर दे कि अभी तक आपने जो जो किया वो कितना अनुचित था ये नहीं स्वीकार करना चाहते। अर्थात हम चाहते हैं जो जो कोई अनुचित करता आया उसका अधिकार बन जाता है , और अपने गलत करने के अधिकार को हासिल करने को आप एकमत हैं। बेईमानी को खतरा है क्योंकि ईमानदार होना किसी को भाता नहीं इसलिए बेईमानी पर अंकुश नहीं लगाया जाना चाहिए। देश में कानून सख्ती से लागू होने ज़रूरी हैं बस हम पर कोई नियम कानून लागू नहीं होने देना है। हम सब के जैसे नहीं हैं , बहुत ऊपर हैं। 

 

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