विष्णुलोक का टीवी चैनेल ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
अगर आपने अभी तक नहीं लगवाया तो जल्द लगवा लें। जी नहीं ये आपके डी टी एच के सेटटॉप बॉक्स की बात नहीं है। ये विष्णुलोक का टीवी चैनल है जो अभी अभी शुरू किया गया है , बल्कि ये कहना चाहिये कि भगवान को करना पड़ा है। भगवान हाइटेक तो पहले ही हो चुके हैं , हर मंदिर हर पूजा स्थल पर सीसीटीवी कैमरे पहले ही लगवा चुके हैं , मगर नये हालात को देखते हुए इक कदम और आगे बढ़ाया है।
नारद जी को आप पहचानते ही हैं , भगवान के विश्वस्त खबरी हैं और लोग चाहे उनको बदनाम करते हों इधर की उधर , उधर की इधर बात पहुंचाने का आरोप लगाकर , उनका काम ही मीडिया की तरह है। नारद जी आये हुए हैं भारतभूमि से विष्णुलोक टीवी का सीधा प्रसारण पहुंचाने को पूर्ण तथ्य सहित। इसको आप कोई धार्मिक चैनेल समझने की भूल नहीं करें। इस पर कोई धनलक्ष्मी यंत्र नहीं बेचा जायेगा न ही कोई भविष्यफल रोज़ का सप्ताह का वर्ष का राशियों के अनुसार बताया ही जायेगा। आपको कोई प्रवचन भी नहीं सुनाया जायेगा न ही किसी गुरु की दुकानदारी का हिस्सा विष्णुलोक का चैनेल बनेगा। फिर क्या करेगा ये नया चैनेल , आपने ठीक सवाल किया है। अभी तक बहुत चैनेल आपको बहुत कुछ दिखाने का काम करते आये हैं , ये चैनल भगवान बारे आपको नहीं आपके बारे भगवान को सही और सटीक जानकारी भेजने का काम करेगा। बिना कोई शुभ महूर्त निकले इसको शुरू किया गया है तो शुभः लाभ लिखने का प्रश्न ही नहीं उठता। कोई हवन नहीं कोई यज्ञ नहीं कोई लाल फीता नहीं काटा गया , सीधे काम शुरू। शास्त्रों में साफ़ लिखा है शुभ कार्य में विलंब नहीं करना चाहिए , पापकर्म करने से पहले विचार करना चाहिए , करें या नहीं करें।
टीवी कैमरा नज़र नहीं आता , नारद जी टीवी स्क्रीन पर दिखाई देते हैं। अभिवादन नमस्कार सभी एक सौ पचीस करोड़ भारतवासियों का भी और छतीस करोड़ देवी देवताओं का भी , नारद जी बोलते हैं अपनी जानी पहचानी मुस्कुराहट के साथ। आज विष्णु जी टीवी चैनल से बेतार द्वारा , इंटरनेट कहते जिसको , जुड़ चुके हैं और मैं नारदमुनि उनको यहां का हाल चाल बताता हूं , दिखलाता हूं। कैमरा भीड़ ही भीड़ दिखाता है तो भगवन पूछते हैं ये कैसी भीड़ है , क्या यहां कोई मंदिर है जहां प्रसाद बंट रहा है। जी नहीं प्रभु ये देश की जनता है जो बैंकों के सामने खड़ी है कतार में अपने खुद के जमा किये पैसे निकलवाने की जद्दोजहद में अपनी जान जोखिम में डालती। प्रभु हैरान होकर पूछते भला ऐसा क्यों। नारद जी बताते हैं भगवन आपने खुद भी देखा अपने मंदिरों का हाल , लोग जाकर माथा टेकते और दानपेटी में पैसे डालते हैं। कोई नहीं पूछता ये कैसा धन है मेहनत से कमाया हुआ अथवा चोरी लूट से जमा किया हुआ। गंगा नदी में गंदा नाला भी मिलता है तब भी गंगा पवित्र ही रहती है , उसी तरह राजनीतिक दलों को मिला चंदा और आपके नाम से चढ़ाया सारा धन भी पावन ही नहीं बताया जाता , ऐसा भी घोषित किया जाता है कि जितना दो और अधिक बढ़कर मिलना है। लोग दल को चंदा और भगवान के दर पे चढ़ावा इसी उद्देश्य से देते हैं। इन दोनों को दिया धन वापस कोई नहीं मांग सकता , कोई भूखा कभी मज़बूर होकर दानपेटी से पैसे निकाल ले तो पापी अधर्मी कहलाता है। अब उस धन दौलत पर संचालकों का अधिकार है वो जैसे भी चाहते उपयोग करते हैं।
नारद जी बोले प्रभु अभी समाचार देख लो चुप चाप , उसके बाद चर्चा को बहुत समय होगा। हमने कोई विज्ञापन तो दिखाने नहीं हैं। असली काम की बात करनी है और आपको असलियत दिखानी है। प्रभु हुआ ये कि इक दल को पूर्ण बहुमत से जनता ने जिताया ताकि देश की जनता को उस द्वारा दिखाये अच्छे दिन हासिल हो सकें। मगर क्या यही वो अच्छे दिन हैं कोई नहीं जानता , लोग तो बदहाल हैं। आप ही बताओ आम आदमी क्या करे , आपके पंडित जी के बताये उपाय करता रहे आपका नाम जपता रहे या कोई नौकरी काम धंधा करे अपना पेट पालने को। भूखे भजन न होय गोपाला। अब सरकार कहती है सहयोग करो मगर कब तक , तब तक क्या भूखे मरें , सरकार तब तक देती जनता को सभी खुद तो बात थी। देना नहीं जानती देश की सरकार भी आपकी ही तरह , माफ़ करना प्रभु यहां जितना बेईमानी का काला धन है सब से अधिक आप ही के नाम जमा है तमाम धर्मों के नाम पर या इन्हीं दलों के पास। खुद को छोड़ सभी की तलाशी ली जबकि चोरी की माला पहनी अपनी गले में हुई है। प्रभु जो आपने अभी सोचा , मुझे पता चला , धर्म की बात पूछते हो आप। देखो प्रधानमंत्री जी कैसे उपहास करते हैं विपक्ष का मज़ाक नहीं है ये जीत का अहंकार है जिस ने उनको मर्यादा तक को भुलवा दिया है। हार जीत होती रही है , जीत कर विनम्र होना साहस का कार्य और अहंकारी होना कमज़ोरी होती है। मगर इस नेता को लगा कि किसी मंदिर में करोड़ रूपये की चंदन की लकड़ी दान में देकर उसने भगवान को खुश कर लिया है , जबकि वो लकड़ी भी जनता के धन की थी उसकी अपनी कमाई की नहीं। आप जानते हैं जो नेता मेरे गरीब भाईयो की रट लगाता है उसको देश की आधी आबादी जो गरीब ही नहीं दलित और शोषित भी है से कोई सरोकार नहीं है। प्रभु को समझ नहीं आ रहा ये कैसी सरकार है जिसको इतना भी पता नहीं है कि किसान खेत में हल चलाये बीज बोये फसल की रखवाली करे या फिर बैंक की कतार में खड़ा रहे। नारद जी बता रहे हैं सरकार का विभाग मानता है वही फसल बिजवाता है और उसी के आंकड़ों से देश की जनता का पेट भरता है। सत्ता मिलते ही सभी नेता खुद को भगवान समझने लगते हैं और जनता को सोचते हैं जुमलों से बहला सकते हैं।
नारद जी ने अलग अलग क्षेत्रों की तमाम तस्वीरें प्रभु को दिखाकर बताया ये असली भारत की तस्वीर है। नंगे बदन बच्चे महिलाएं , भूख और बिमारी से हारे हुए निराश लोग जो जीते हैं मगर ज़िंदा लगते नहीं , उनको घर की छत तो क्या पीने को पानी भी साफ नहीं मिलता। शिक्षा की दशा इस कदर खराब है कि शिक्षा का अधिकार उपहास बनकर रह गया है। देश की आधी आबादी साठ करोड़ लोग किसी भी दल के किसी भी नेता के लिये मात्र वोट हैं जिनकी ज़रूरत पांच साल बाद पड़ती है। उन बदनसीब लोगों का दर्द उनको भला कैसे समझ आयेगा जो शहंशाहों की तरह रहते हैं। चलो आपको ये भी दिखला देते हैं। कैमरा लुटियन ज़ोन को दिखाता है जिस को देख आंखे चुंधिया जाती हैं। ये राष्ट्रपति भवन है जो शायद सौ एकड़ से अधिक जगह पर बना है गरीब देश के राष्ट्रपति का निवास। जब यहां सैंकड़ों कमरों में राजसी शानो-शौकत से रहने वाला कोई गरीबी की बात करता है तो समझ नहीं आता उस पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जाये , हंसा जाये कि रोया जाये। इस इक महल की देख रेख पर हर महीने करोड़ों रूपये खर्च किये जाते हैं , अर्थात लाखों रूपये हर दिन। इसी देश की इक तिहाई आबादी की आय प्रतिदिन पचास रूपये भी नहीं है। इसका मतलब ये है कि एक आदमी के रहन सहन पर जितना धन खर्च होता है उसी से कितने लाख भूखे अपना पेट भर सकते हैं। दूसरे शब्दों में ये कुछ लोग खुद पर जितना धन जनता के पैसे का खर्च करते हैं वही अगर गरीब लोगों को दिया जाता तो आज देश में गरीबी का नामो-निशान नहीं होता। गरीबों का हितैषी होने का दावा करने वाले दरअसल उनकी गरीबी की वजह खुद हैं। इस लुटियन ज़ोन में ढाई ढाई एकड़ में इक इक बंगला बना है , जब किसी गरीब को घर देने की बात की जाती है तो पचास गज़ ज़मीन भी ज़्यादा लगती है। संविधान में सभी को समानता का अधिकार क्या इसी को कहते हैं।
जो लोग अनपढ़ हैं अपने अधिकार की बात नहीं जानते उनको क्या कहें जब जो शिक्षित हैं सुविधा संपन्न हैं वो भी किसी दल किसी नेता की जय-जयकार किया करते हैं अपना स्वाभिमान भुला कर। गुलामी तमाम लोगों की मानसिकता बन गई है , हर किसी को भगवान बताने में कोई संकोच नहीं करता। कोई पूछे उनसे आप जिनको भगवान मानते हैं उन्होंने देश को दिया क्या है। हर दिन इनकी सभाओं को आयोजित करने पर ही कितना धन बर्बाद किया जाता है , कोई हिसाब नहीं बताता कैसे। सब से ज़रूरी बात , इस देश को माना जाता है धार्मिक लोग हैं , जबकि यहां अधर्म ही अधर्म दिखाई देता है। मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे जाकर माथा टेकने से कोई धार्मिक नहीं हो जाता , धार्मिक होते जो लोग वो अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाते हैं समाज को देश को लूट नहीं सकते। इस देश में न्याय की निष्पक्षता की कर्तव्य निभाने की आशा तक करना खुद को धोखे में रखना है। झूठ यहां का भगवान है और लूट यहां की नीति , धर्म की तो परिभाषा तक कोई नहीं जनता यहां। प्रभु ठीक से देख लो और समझ लो आप अगर भगवान हैं तो किन लोगों के भगवान हैं। इधर तो भगवान भी सभी लोग बदलते रहते हैं , सभी ने अपने अपने खुदा तराश लिये हैं जो उनको पाक साफ़ हैं का प्रमाणपत्र ही नहीं देते , मरने के स्वर्ग का आरक्षण भी देने की बात करते है।
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