पसीना गुलाब था ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
अब इत्र भी लगाते हैं तो खुशबू नहीं आती , इक वक़्त था जब अपना पसीना गुलाब था।
शायर से माफ़ी चाहता हूं उनका नाम भूल गया और दूसरी बार माफ़ी मांगता हूं अगर शेर ठीक नहीं लिखा हो कोई शब्द इधर उधर हो गया हो। मैं खुद शायर हूं इसलिए इस बात का महत्व जानता हूं नहीं तो आजकल लोग शब्द को ही इधर उधर नहीं करते , खुद भी इधर उधर हो जाते हैं और शायरी का ऐसा बुरा हाल करते हैं कि पूछो मत। लोग ऐसी बेहूदा शायरी पर तालियां बजाते हैं वाह वाह करते हैं। किसी का दर्द उपहास बन जाता है कॉमेडी शो में और कोई उसी से अपना धंधा चला धन कमाता है। इक क्लास है इलीट क्लास इंडिया वालों की जिन को देश की हर बात की समझ है और जिनका ध्येय है ज़िंदगी का मज़ा लूटना। ऐसे बड़े बड़े लोग नीरो से कम नहीं होते देश जलता रहे वो चैन की बंसी बजाते रहते हैं। मुझे क्या कौन कब कैसे किधर से किधर जाता किधर से भटकता हुआ कहां जा पहुंचा। अपने हंसाने वाले जुमलों से हर समस्या का हल बताने वाले अपनी मंज़िल ढूंढ लिया करते हैं। पंजाबी में कहावत भी है जिथे मिलण चोपड़ियां उथे लाईयां धरोकड़ियां। जहां से चुपड़ी मिले वहीं चले जाते हैं , मगर इक विरोधभास लगता है , आप जिधर से निकले थे अपनी ख़ुशी से वहां तो चुपड़ी भी मिलती थी मक्खन भी साथ मिलता था। आपको हज़म नहीं हुआ या आपकी भूख ही ज़्यादा है।
अभी तक आप जो समझे वो बात नहीं है , यहां किसी व्यक्ति विशेष की बात थी ही नहीं। वो तो शायरी की बात चली तो उनका ज़िक्र भी करना पड़ा जो शायरी नहीं जानते समझते फिर भी मशहूर हैं शायरी के कारण। अब बात सीधे उनकी करते हैं जिन पर रचना का शीर्षक है पसीना गुलाब था। आप फिर भटक जाते हैं सोचने लगे किसी हसीना की बात होगी , किसी हसीना को देखा है पसीना बहाते। पसीना मेहनतकश लोग मज़दूर गरीब बेघर लोग बहाते हैं धूप में , जिनका कभी शान से ज़िक्र किया जाता था। गुरु नानक को उसी की रोटी में दूध मिला था बाकी सभी अमीर लोगों की रोटी से खून की धारा बही थी। आज बातें होती हैं काले सफेद धन की हक की हलाल की मेहनत की कमाई की कोई नहीं करता। सोचा था इक गरीब बड़े ओहदे पर पहुंचा तो बात होगी गरीबी की रेखा की भूख की बेबसी की लाचारी की। कितने साल तक उन्हीं की बात की बदौलत सरकार बनती रही है , क्या अब इक चाय वाले को सब कुछ मिलने से सारे गरीब खुशहाल हो गये हैं। क्यों चाय वाले ने गरीबी की बात छोड़ अमीरी की चर्चा शुरू करवा दी , इस सवाल का जवाब भी है। हमें उतनी ख़ुशी अपने फायदे से नहीं होती जितनी दूसरे का नुकसान देखने से होती है। तभी सत्ता पाते जब आधा समय बीत गया और गरीबों को अच्छे दिन नहीं दिखा सके तो सोचा अमीरों को ही बुरे दिन दिखा देते हैं। अमीरों की खराब हालत देख गरीब खुश हो जायेंगे कि भगवान का शुक्र है हम पैसे वाले नहीं हैं। तभी फैसला करते ही भाषण देने लगे देखो करोड़पति लोगों को कतार में खड़ा करवा दिया मैंने। मगर करोड़पति घर बैठे उनका भाषण सुन हंसते रहे , वाह हमारी बिल्ली हमें ही मियाउं। चुनाव क्या मेहनत की कमाई से लड़ा था , चलो अगर ठान ही लिया था तो शुरुआत अपने घर से करते। सभी राजनीतिक दलों का धन काला धन नहीं है , आपकी सभाओं पर , अकेले इक नेता की नहीं सभी नेताओं की , कितना धन खर्च होता है सब पवित्र है। सब से अपवित्र कौन सा दल है जिस में सब से अधिक अपराधी सांसद हैं , अपने घर की सारी गंदगी कालीन के नीचे छुपा आप स्वच्छता अभियान चलाते हैं। देश के साठ प्रतिशत गांव में साफ पानी नहीं और आप शौचालय की बात ही नहीं करते , गरीबों को गुनहगार साबित कर अपमानित करते हैं। कहते हैं सभी दल एकमत हों तभी चंदे की बात पर भी फैसला हो सकता है , सभी गुनाहगार तौबा करें तभी हम भी छोड़ देंगे चंदा नकद लेना। लो जी कितने लोकतांत्रिक हैं प्रधानमंत्री जी बिना सभी दलों की सहमति कुछ नहीं करना चाहते। इसी को चोर चोर का भाईचारा कहते हैं।
हिसाब तो आपको देना था , आपने सत्ता मिलते ही हर महीने हिसाब देने की बात की थी। अपने जिस लोकतंत्र के मंदिर की चौखट पर माथा टेका था आज उसी में जाना आपको गवारा नहीं। कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित प्रधानमंत्री भाषण देता है मुझे सदन में बात नहीं रखने देते इसलिये मैंने जनसभा में अपनी बात कहने का विकल्प चुना है। इतना बहुमत इतनी ताकत इतना चौड़ा सीना और ऐसी कायरता की बात , मुझे जान से मरवा सकते हैं , कहते हैं। आप को इतनी सुरक्षा में अपनी जान की चिंता तो हम आम नागरिक किस पर भरोसा करें। मगर आपको जनता को भटकाना था , गरीबी की भूख की , शिक्षा की बदहाली और स्वास्थ्य सेवाओं की रोगग्रस्त होने की समस्याओं की बातों से पीछा छुड़ाना था। इक टकराव अमीर गरीब का करवा उस पर अपनी राजनीति करनी थी। क्या सफल हुई आपकी योजना , नहीं। आपने इक नया इतिहास रचा है , इक प्रधानमंत्री का बार बार यू टर्न लेने का। शुरुआत की इक घोषणा से की कि अब कभी काले धन वालों को दोबारा अवसर नहीं दिया जायेगा और बीस दिन , केवल बीस दिन बाद इक नई स्कीम पचास प्रतिशत की। आपकी दोनों बातें इक दूसरे से उल्ट फिर भी सच , आपको अभी भी उपाधि मिल रही खुद अपने दल से ठीक उसी तरह जैसे पूर्व प्रधानमंत्री को मिली ईमानदार हैं की उपाधि। आपको शायद समझ नहीं आ रहा क्या किया और हुआ क्या , चलो आपकी दुविधा मिटाते हैं।
बिल्ली शेर की नानी है , आपने भी सुना होगा। कहते हैं बिल्ली ने ही शेर को शिकार करना सिखाया था , जब सीख गया तो जानते हैं क्या हुआ। इक कहावत ये भी है :-
बिल्ली ने शेर पढ़ाया , शेर बिल्ली नूं खावण आया।
यही हुआ आपको जिन्होंने चुनाव जिताया आप उन्हीं को बर्बाद करने चले , स्विस बैंक पर बस नहीं चला तो देश में काला धन खोजने चले। बिल्ली को जब शेर खाने को झपटा था तो वो कूद कर पेड़ पर जा चढ़ी थी , शेर बोला मौसी आपने मुझे ये सबक तो सिखाया ही नहीं। बिल्ली बोली इसी लिये कि किसी दिन मुझे ही नहीं खा जाओ। काले धन वाले आपकी पकड़ से बच गये और पेड़ पर बैठ कह रहे तू डाल - डाल मैं पात-पात। देखा फिर वही हुआ जिनकी बात की जानी थी , गरीबों की उनकी छूट गई और बड़े चोर छोटे चोर की बात पर अटक गये हम। उधर टीवी पर वही बहस जारी है , तू तू मैं मैं। क्या राजनीति है कैसी पत्रकारिता है। कभी खबर हुआ करती थी गरीबी और बदहाली की आजकल लाखों करोड़ों की बातें सुन लगता है सब जैसा भी है बढ़िया है , भूख गरीबी और देश की गंदगी , आवारा बचपन , भटकी जवानी की बात तो बंद हुई। मुबारिक हो , आप कौन सा डिओ लगाते हैं , किस ब्रांड के कपड़े डालते हैं। देश की असली समस्या आजकल यही है।
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