मार्च 31, 2016

संकल्प ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

            संकल्प ( कविता ) डॉ लोक सेतिया 

जीवन में जाने कितनी बार
किया तो है पहले भी संकल्प
खुद को बदलने का संवरने का
मगर शायद कुछ अधूरे मन से
तभी जब भी आया इम्तिहान
नहीं पूरा कर सका में अपना संकल्प ।

फिर से इक बार कर रहा हूं वही संकल्प
नहीं घबराना असफलताओं से
नहीं डरना ज़िंदगी की मुश्किलों से
छुड़ा कर निराशाओं से अपना दामन
साहसपूर्वक बढ़ाना है इक इक कदम
अपनी मंज़िल की तरफ बार बार ।

नतीजा चाहे कुछ भी हो मुझे करना है
फिर से प्रयास पूरी लगन से निष्ठा से
कोई रुकावट नहीं रोक सकती रास्ता
मुझे करना ही है पार इस बार उस नदी को
और ढूंढनी ही है मंज़िल प्यार की यहीं
इसी जन्म में इसी दुनिया में इक दिन । 
 

 

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