आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक - आलेख - डॉ लोक सेतिया
बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते। जब तथाकथित आधुनिक तौर तरीके एफआईआर से लेकर सीएम पीएम को शिकायत करने को लेकर दावे किये जाते हैं यहां तक कि हरियाणा जैसे राज्य की सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है बताने को कि कितनी संख्या की शिकायत का निवारण किया जा चुका है देश की सरकार ऐप्स से लेकर ट्विटर तक पर आपकी बात सुनती है। उन्नाव की महिला की शिकायती चिट्ठियां तीस चालीस जगह रद्दी की टोकरी में फेंकी जा चुकी होती हैं और सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर ये बताने के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत के मुख्य न्यायधीश अपने दफ्तर से पता करते हैं और जागते हैं करवाई करने को। अदालत को बड़ी आलीशान इमारतों की नहीं इंसाफ करने और इंसाफ किया जाता है भरोसा कायम करने की अधिक ज़रूरत है। काश न्यायपालिका से जुड़े लोग विलंब से न्याय मिलना अन्याय ही होता है इस बात को समझते और चरमराती व्यवस्था को बचाने को संवेदनशील होकर काम करते न कि जब गली गली शोर है और सब जानते हैं सत्ताधारी दल सबसे अधिक अपराधी लोगों को विधायक सांसद बनाने का गंभीर अपराध करता है बाकी सभी दल भी उसी राह चलते हैं। राजनीति अड्डा बन गई है अपराध का। मगर हमारी पुलिस कितने विभाग इस सब से बेपरवाह नाच गाने की महफ़िल सजाते हैं किसी नाम से। आज भी हरियाणा में मेरे शहर में पुलिस राहगीरी नाम से मौज मस्ती नाचने झूमने रागनी गाने से लेकर योग का मसाला शामिल कर किसी चाटमसाले की तरह सब परोसने को लगा है जब कनून व्यवस्था की हालत सबके सामने है। मगर उनको उन्नाव या किसी और जगह की घटना से सीखना नहीं जब अपने राज्य शहर की घटना होगी तब देखा जाएगा। वास्तविक कर्तव्य को दरकिनार कर आडंबर तामाशे करना आसान है और सत्तधारी नेता भी यही चाहता है। शायद अभी भी नेताओं अधिकारियों को कोई कमी नज़र आती है कानून व्यवस्था की बदहाली में कोई कसर बाकी है। शर्म की बात तो कोई नहीं करता शर्म किसी और ज़माने की बात है।
देश से जनता से किसी भी दल को कुछ भी सरोकार नहीं है सबका एक ही मकसद है सत्ता हासिल करना और सत्ता को किसी भी तरह से जाने नहीं देना। ऐसी मानसिकता के चलते देश की जनता ठगी जाती रही है और हर दल विरोधी को दोष देता रहा है अपने आप को कोई नहीं देखता क्या कथनी है और क्या वास्तविक आचरण करते हैं। देशभक्ति को ख़ास दिन झंडा फहरा कर सलामी देकर भाषण पढ़कर औपचरिकता निभाना बना दिया गया है। देश संविधान लोकमत और न्याय अन्याय की बात की चिंता नहीं बस चुनावी गणित साधना है उस के लिए गुंडे बदमाश अपराधी सबको गले लगा सकते हैं। वोट की खातिर कुछ भी करते कोई लज्जा नहीं आती बेशक समाज को बांटना पड़े लड़वाना भिड़वाना नफरत फैलाना पड़े किया जा सकता है। करोड़ों लोग बिना अपराध सज़ा पाते हैं सत्ता के अधिकार और ताकत को मनमानी करने और गुंडई करने को उपयोग किया जाता है। जानते हैं हर राज्य हर शहर गांव में सत्ताधारी नेता मनमानी करते हैं अधिकारियों के सहयोग से छूट पाकर। शायद उनको लगता है करोड़ों लोग कायर बनकर हमेशा उनके ज़ुल्म सहते रहेंगे , मगर क्या ऐसा संभव है। हमेशा सभी को मूर्ख कोई नहीं बना सकता है कभी तो हम निडर होकर उनके ऐसे आपराधिक आचरण और सत्ता की मनमानी लूट के खिलाफ डटकर खड़े होंगे। अत्याचारी की अत्याचार की किसी सीमा के बाद तो हम अपने अधिकार अपनी आज़ादी की खातिर सामने आकर आवाज़ उठाएंगे।
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