बस नहीं मिला वही ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
लोग मिले
मिलते रहे हर इक मोड़ पर ।
कुछ अपने कुछ अजनबी
कुछ नातों के नाम से
कुछ जान पहचान से भी ।
दोस्त भी मिले
और मिले वो भी जो शायद
नहीं मिलते तो अच्छा था ।
पर जो भी मिले
सोचने वाले थे
सब खुद को मुझसे अच्छा ।
या फिर मुझसे बेहतर
या मुझसे अधिक समझदार
या मुझसे बड़े होने का गरूर लिए ।
नहीं मिला
कोई भी ऐसा
दोस्त अपना या कोई पराया ही ।
जिसको लगता बराबर हूं मैं
अच्छे-बुरे दोनों एक जैसे हैं
तलाश बहुत किया
मिला नहीं वही ।
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