चोर भी और चौकीदार भी ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
मामला बेहद गंभीर और संवेदनशील है। सरपंच जी ने दोनों पक्षों को बुलवाया है सुनवाई करनी ज़रूरी है। सरपंच जी को ये बात अच्छी नहीं लगी कि दोनों पक्ष खुद पेश नहीं हुए और अपने अपने वकील भेज दिये हैं। दोनों वकील वही हैं जो सरपंच जी पर डाका डालने के आरोप लगने पर उनकी तरफ से हाज़िर होते रहे हैं। सरपंच जी ने डाका डालने की बात उनको बता दी थी और बेगुनाही साबित करने पर आधा आधा बांटने का वादा निभाया भी था। मगर गब्बर सिंह की अदालत में इंसाफ और सिर्फ इंसाफ किया जाता है बात चाहे बसंती की हो ठाकुर की या जय वीरू की।
आपने सीता और गीता राम और श्याम शर्मीली जैसी कितनी फ़िल्में देखी हैं। हम दोनों फिल्म भी देखी होगी। अभिनय करने वाला एक ही होता है मगर किरदार दो निभाता है। भले भी हम बुरे भी हम समझिओ न किसी से कम , हमारा नाम बनारसी बाबू। टीवी सीरियल की तो कोई हद ही नहीं जो नहीं करते वही कम है नाम चेहरा क्या कहानी बदल जाती है गड़बड़ इतनी है कि कौन किसका दोस्त कौन किसका दुश्मन पता लगाना क्षमा याचना सहित नाम ले रहा सीबीआई के बस की भी बात नहीं है। यहां इन सब से अलग बात है मगर इक फिल्म इस तरह की भी श्वेत श्याम समय की बनी हुई है। रात और दिन। नहीं याद तो गीत सुनिए , रात और दिन दिया जले मेरे मन में फिर भी अंधियारा है।
गीत मधुर है और दो आवाज़ों में है लता जी और मुकेश जी की आवाज़ में अलग अलग। कहानी नायिका की है जो दिन को परंपरागत ढंग से रहती है घर की महिला सादगी की मूर्ति बनकर मगर रात को आधुनिक ढंग से बन संवर कर नाईट क्लब में जाती है नाचती है झूमती गाती है। आजकल इस को कोई अनुचित नहीं समझेगा नारी जगत तो हंगामा मचा सकता है कोई कौन होता है सवाल करने वाला कब हम क्या पहनती हैं क्या करती हैं क्यों करती हैं। मगर उस ज़माने में इसको आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता था। अब तो हर कोई सामने कुछ पीठ पीछे कुछ और होता ही है। नेता तो गिरगिट से जल्दी रंग बदलते हैं अब दिन दहाड़े। मगर उस फिल्म में नायिका को खलनायिका नहीं बनाया गया था और जाने किस डाक्टरी किताब से अजीब सा रोग ढूंढ कर इक व्यक्ति के दो व्यक्तित्व की बात बताई गई थी और खुद व्यक्ति नहीं जनता कब वो किस तरह का किरदार बना हुआ होता है। इस भुमिका का उद्देश्य यही समझाना था।
चौकीदार आठ घंटे चौकीदारी का काम करता है। आठ घंटे जिस जगह की रखवाली करनी है चोरी नहीं होने देता है। ऐसे में उसको चोर कहना अनुचित है उसका अपमान करना है। लेकिन वही शख्स नया रूप धारण करता है और चोर बन जाता है और चोरी करता है उसी तरह से ईमानदारी से आठ घंटे। चोरी करना भी काम है और चोरी करता है तो चोर बनकर करता है। याद आया धर्म भाजी इक फिल्म में चोरी करने का धंधा करते हैं चोर हैं और नायिका शर्मिला टैगोर इक वैश्या का किरदार निभाती हैं। मुहब्बत करने पर दोनों अपने अपने धंधे को छोड़ने की बात करते हैं। धर्म जी चोरी करते समय जो काला लिबास पहनते रहे उसको खड्डा खोद कर गाड़ देते हैं शर्मिला जी भी उसी तरह करती है। मगर समाज खराब बंदों को अच्छा बनने देता नहीं कभी भी ये भी सच्चाई हमेशा कायम रही है। इक दिन हालात दोनों को मज़बूर कर देता है चोर चोरी करने जाता है और नर्तकी नाचने लगती है।
चौकीदार को चोर कहने पर हंगामा होना ही था। चौकीदार जब चौकीदारी करता था चोरी नहीं करता न किसी को करने देता था। चोर बनते ही चोरी किसी और जगह किसी और के घर की करता था। जिस की चोरी किया करता उनको लुटेरे घोषित करने के बाद करता था। उस का बस चले तो दो किरादर नहीं चार किरदार एक साथ निभा सकता है अभिनय उसकी रग रग में समाया हुआ है। चोर चौकीदार के इलावा पुलिस न्यायधीश भी बन कर कमाल कर सकता है। फिल्म उद्योग कायल है उन जैसा अभिनय कोई देश दुनिया में नहीं कर सकता है। अपने माईकल जैक्सन का शो देखा है उनकी धुन पर हज़ारों की भीड़ नाचने लगती है झूमती है गाती है। ये जब अपना खेल दिखाते हैं तो करोड़ों लोग इन्हीं का नाम जपने लगते हैं। मनोरंजन करना सब चाहते हैं और जो सबसे अच्छा मनोरंजन पेश करता है उसको सर पर बिठाते हैं। गब्बर सिंह पंचायत का फरमान सुनाने वाले हैं। बाहर से शोर सुनाई दे रहा है हज़ूर आने वाले हैं सबूत लाने वाले हैं। सनी देओल कहां चले आये फिर से वकालतनामा दिखा रहे हैं। जनाब इंसाफ नहीं मिला मिली है तो तारीख पे तारीख। अगली तारीख तक फैसला सुरक्षित है।
गीत मधुर है और दो आवाज़ों में है लता जी और मुकेश जी की आवाज़ में अलग अलग। कहानी नायिका की है जो दिन को परंपरागत ढंग से रहती है घर की महिला सादगी की मूर्ति बनकर मगर रात को आधुनिक ढंग से बन संवर कर नाईट क्लब में जाती है नाचती है झूमती गाती है। आजकल इस को कोई अनुचित नहीं समझेगा नारी जगत तो हंगामा मचा सकता है कोई कौन होता है सवाल करने वाला कब हम क्या पहनती हैं क्या करती हैं क्यों करती हैं। मगर उस ज़माने में इसको आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता था। अब तो हर कोई सामने कुछ पीठ पीछे कुछ और होता ही है। नेता तो गिरगिट से जल्दी रंग बदलते हैं अब दिन दहाड़े। मगर उस फिल्म में नायिका को खलनायिका नहीं बनाया गया था और जाने किस डाक्टरी किताब से अजीब सा रोग ढूंढ कर इक व्यक्ति के दो व्यक्तित्व की बात बताई गई थी और खुद व्यक्ति नहीं जनता कब वो किस तरह का किरदार बना हुआ होता है। इस भुमिका का उद्देश्य यही समझाना था।
चौकीदार आठ घंटे चौकीदारी का काम करता है। आठ घंटे जिस जगह की रखवाली करनी है चोरी नहीं होने देता है। ऐसे में उसको चोर कहना अनुचित है उसका अपमान करना है। लेकिन वही शख्स नया रूप धारण करता है और चोर बन जाता है और चोरी करता है उसी तरह से ईमानदारी से आठ घंटे। चोरी करना भी काम है और चोरी करता है तो चोर बनकर करता है। याद आया धर्म भाजी इक फिल्म में चोरी करने का धंधा करते हैं चोर हैं और नायिका शर्मिला टैगोर इक वैश्या का किरदार निभाती हैं। मुहब्बत करने पर दोनों अपने अपने धंधे को छोड़ने की बात करते हैं। धर्म जी चोरी करते समय जो काला लिबास पहनते रहे उसको खड्डा खोद कर गाड़ देते हैं शर्मिला जी भी उसी तरह करती है। मगर समाज खराब बंदों को अच्छा बनने देता नहीं कभी भी ये भी सच्चाई हमेशा कायम रही है। इक दिन हालात दोनों को मज़बूर कर देता है चोर चोरी करने जाता है और नर्तकी नाचने लगती है।
चौकीदार को चोर कहने पर हंगामा होना ही था। चौकीदार जब चौकीदारी करता था चोरी नहीं करता न किसी को करने देता था। चोर बनते ही चोरी किसी और जगह किसी और के घर की करता था। जिस की चोरी किया करता उनको लुटेरे घोषित करने के बाद करता था। उस का बस चले तो दो किरादर नहीं चार किरदार एक साथ निभा सकता है अभिनय उसकी रग रग में समाया हुआ है। चोर चौकीदार के इलावा पुलिस न्यायधीश भी बन कर कमाल कर सकता है। फिल्म उद्योग कायल है उन जैसा अभिनय कोई देश दुनिया में नहीं कर सकता है। अपने माईकल जैक्सन का शो देखा है उनकी धुन पर हज़ारों की भीड़ नाचने लगती है झूमती है गाती है। ये जब अपना खेल दिखाते हैं तो करोड़ों लोग इन्हीं का नाम जपने लगते हैं। मनोरंजन करना सब चाहते हैं और जो सबसे अच्छा मनोरंजन पेश करता है उसको सर पर बिठाते हैं। गब्बर सिंह पंचायत का फरमान सुनाने वाले हैं। बाहर से शोर सुनाई दे रहा है हज़ूर आने वाले हैं सबूत लाने वाले हैं। सनी देओल कहां चले आये फिर से वकालतनामा दिखा रहे हैं। जनाब इंसाफ नहीं मिला मिली है तो तारीख पे तारीख। अगली तारीख तक फैसला सुरक्षित है।
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