अप्रैल 26, 2019

POST : 1063 खबरों की मरम्मत ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

        खबरों की मरम्मत ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

आज की ताज़ा खबर है। चुनाव आयोग मतदान की संख्या बढ़ाने के लिए उपाय करने जा रहा है। अधिकारियों से विडिओ पर चर्चा की गई है और सड़कों पर बने टोल प्लाज़ा पर पानी के कप बांटने की बात पता चली है। कहीं किसी का चुनाव चिन्ह कप हुआ तो क्या होगा क्या ऐसे में जितने भी कप बांटे उनकी कीमत उम्मीदवार के खर्च के शामिल समझी जाएगी। किसको कितने कप दिए जाएंगे जिसके जितने वोट हैं या मनमर्ज़ी से संख्या घट बढ़ सकती है। इसका हिसाब कौन रखेगा और इस में देश भर में एक समान ढंग अपनाया जाएगा या जिस जगह उनकी ख़ुशी। पानी के कप भी होते हैं पहली बार राज़ खुला हम तो पानी का गलास लोटा घड़ा मटकी सुराही की ही जानकारी रखते थे। सिर्फ टोल प्लाज़ा पर उपहार वितरण कितना उचित है हर कोई उधर जाता नहीं है आपके इश्तिहार पढ़कर लोग वोट नहीं देंगे आपको क्या इस बात का डर है। कप लेकर मतदान करने जाने वालों को कुछ और भी मिलेगा क्या या उनको दो बार वोट डालने का हक मिल जाये तो डबल फायदा होगा एक उस दल को एक इस दल को दोनों की बात रह जाएगी। बिना सोचे समझे तो निर्णय नहीं लेते अधिकारी लोग ये खास अधिकार केवल नेताओं को हासिल है। चुनाव आयोग भी चुनाव आने पर जागता है और नींद से जागकर जिस दिन जो ख्वाब देखा उसी को आधार बनाकर नया शगूफा छेड़ता है। कमाल की समझदारी है कोई नहीं समझता क्या जारी है। खर्च सीमा की बात भी समझनी है कोई प्रयोजक तलाश किया है कि नहीं। रोज़ नेताओं की सभाओं रोड शो इश्तिहारबाजी जाने क्या क्या पर करोड़ों का खर्च सामने है नियमानुसार जितने भी चुनाव जीते भी मतगणना के बाद अधिक खर्च होने पर चुनाव रद्द होने का कानून लागू करते तो देखते सब अपने आप सुधरता है। कागज़ों पर बहुत किया जाता है अधिकारियों की बैठकों में चर्चा भी होती है भैंस हर बार कीचड़ भरे तालाब में चली जाती है। आपको तालाब का पानी कितना गंदा है बदबू आने लगी है उसको बदलना है तो पुराने गंदे पानी को बदल डालो। पानी पीने के कप गलास से क्या होगा जब पीने को पानी खराब है। नौकरी के लिए सीमा होती है कितनी बार किस इम्तिहान में बैठ सकते हैं और कितनी सेवा करने के बाद घर बिठाने का भी नियम है। कोई स्वस्थ्य जांच नहीं मानसिक दिवालिया घोषित भी चुनावी दौड़ में शामिल हैं। स्वच्छ हवा स्वच्छ वातावरण ज़रूरी है और स्वछता के लिए कूड़ा कर्कट गंदगी को बाहर फैंकना होगा उसको ढकना नहीं है उस पर कोई नया लेबल नहीं लगाना है। 

        चुनाव आयोग और तमाम लोग चाहते हैं निष्पक्ष चुनाव हो और अच्छे लोग चुन कर संसद विधानसभा में आएं मगर ऐसा कैसे हो कोई विचार करता नहीं है। हर बार नये नये टोटके आज़माने से समस्या हल नहीं होगी। चुनाव आयोग बता सकता है हमारे संविधान में कोई प्रधानमंत्री या किसी नेता की किसी दल की सरकार चुनने की कोई बात ही नहीं है लोगों को केवल संसद और विधायक चुनने हैं और निर्वाचित सांसद  और विधायक अपनी मर्ज़ी से नेता चुनते हैं कोई पहले से थोप नहीं सकता है। ये तो देश के संविधान की व्यवस्था से कदाचार करना है कि कोई जनता के चुने सांसदों विधायकों से उनका लोकतंत्र कायम रखने का अधिकार ही छीन लेता है। अमुक बनाम अमुक की बात क्या देश के संविधान को अंगूठा दिखलाने जैसा काम नहीं है। अगर जैसा चलता रहा है उसी तरह चलाना है तो बदलाव की बात का आडंबर क्यों। जो करना है करते नहीं उस पर चर्चा करने का साहस नहीं और जिस के करने से कुछ हासिल नहीं उसका शोर किया जाता है। लोग वोट देना चाहते हैं देते हैं आपको सही वातावरण बनाना है और कोई किसी को किसी तरह प्रभावित नहीं कर सके इसको देखना है। वास्तविक कार्य पर आपकी आंखें खुली लगती नहीं है जो जैसे चाहे जनता को डराता है बहलाता है धमकाता है किसी को कुछ नज़र नहीं आता है। किसी का क्या जाता है देश कोल्हू का बैल बनकर चलता जाता है।

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