ऊपर वाले का नया नोटिस ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया
लिखा है तुझे पहले भी कितनी बार नोटिस भेजा है , रिमाइंडर भी अनेक भेजे हैं , तुम में एक बात अच्छी है कि पढ़ते ज़रूर हो और सोचते भी हो मेरे भेजे हर नोटिस पर , अन्यथा तो लोग पढ़ते ही नहीं समझना तो दूर की बात है। फिर से याद दिलवा रहा हूं जिस काम को तुझे दुनिया में भेजा था मैंने अब तो वो काम कर लो। अभी तक मनमानी करते रहे हो। अब आप बताओ मुझे क्या करना चाहिए। सरकारी नोटिस का नोटिस सभी लेते हैं क्योंकि उस में साफ चेतावनी लिखी होती है दंड की सज़ा की जुर्माना लगाने की। कोई पता भी नहीं जवाब किस तरह भेजा जाये कि मुझे अपने किसलिए दुनिया में भेजा था कभी बताया ही नहीं। अपना तरीका बदलो और जब भी जिसको धरती पर भेजो साथ में विस्तार से लिखित सूचना भी नत्थी करो कि इसका जन्म किस मकसद से हुआ है। मैंने तो हर दिन विचार किया है और हमेशा मुझे यही लगा है कि मेरा जन्म बेमकसद ही हुआ है और मुझे बेमकसद यही लिखने का काम करना है जिस से किसी को कोई ख़ुशी नहीं होती न कोई फर्क ही पड़ता है। कुछ भी और मुझे आता ही नहीं है। शायद भगवान की भक्ति या कोई अच्छे काम करने की बात कहना चाहते हो तो मुझसे होता नहीं है कि देश समाज में जो भी होता रहे उसको अनदेखा कर मैं किसी की भक्ति स्तुति गुणगान करता फिरूं। और लोग बहुत हैं मुझे रहने दो जैसा भी हूं।अक्सर सुनता रहता हूं ऊपर वाले का बुलावा आने की बात से डरते हैं सभी। मज़ाक की बात नहीं मैंने तो हमेशा चाहा है बुला ले जब मर्ज़ी क्या करना है बहुत जी लिये हैं। पर इतना तो है सोचता हूं मरने के बाद ही सही सामने आओगे नज़र तो बात तो करनी है। मेरा हिसाब लिखा हुआ है कभी अपना भी हिसाब सोचा क्या किया है दुनिया बनाकर उसकी देखभाल करना ही याद नहीं रखा। दुनिया बनाई थी कितनी अच्छी थी सुंदर थी फिर उसको क्यों बेकार नफरत झगड़े स्वार्थ दुश्मनी जैसे रोगों से खराब होने दिया। बस यही सोच कर खुश हो लेता हूं जैसे भी सही तकलीफ देकर नोटिस भेजकर ही सही ऊपर वाले को याद तो है कि इक इंसान है जिसे जन्म दिया है और वापस भी बुलाना है। मगर ये सरप्राइज की आदत का खेल किसलिए पहले से बताया होता एक्सपायरी की तारीख क्या है तो जो नोटिस भेजने से नहीं होता बिना किसी नोटिस मुमकिन है संभव हो जाता। कब आना है बताओ या अब बुला भी लो , कितनी लंबी आयु बस अब काफी है।
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