नीम हकीम खतरा ए जान बनाम सोशल मीडिया ( आलेख )
डॉ लोक सेतिया
मैं जो कहूंगा सच कहूंगा सच के इलावा कुछ नहीं कहूंगा। ये कहना ज़रूरी है आज जब खुद अपनी ही नासमझी नहीं मूर्खता की बात बतानी है। अपनी मूर्खता कोई किसी को बताता है भला , सब छुपाते हैं। हर गलती होने पर सबसे पहले यही सोचते हैं धन्यवाद भगवान का कोई देख नहीं रहा किसी को पता ही नहीं चलेगा कि मुझसे ये भूल हुई। बात सोशल मीडिया की है और शायद इससे अधिक मूर्खता क्या हो सकती है कि खुद एक डॉक्टर होने और बाकी दुनिया को समझाते रहने कि अपने ईलाज खुद नहीं करें न हर किसी की सलाह से विशेषकर टीवी अख़बार के विज्ञापन से कभी अपना उपचार करें। मैंने खुद इतनी बड़ी गलती की। एक बात सबसे पहले कहना मेरा कर्तव्य है कि बेशक हर समाज के भाग की तरह चिकिस्या व्यवसाय में भी कुछ कमियां आई हैं बदलते समय में फिर भी ये बात हम सभी को माननी चाहिए कि हर डॉक्टर चाहता है और पूरी कोशिश करता है अपने रोगी को ठीक करने को। कोई नहीं कह सकता कि कोई डॉक्टर अपने रोगी को ठीक करना नहीं चाहता। वास्तव में अधिकतर जैसा माना जाता है कि डॉक्टर अधिक पैसे लेते हैं या लेना चाहते हैं उस में भी तथ्य नहीं है और सामान्यता ऐसा नहीं होता है। बल्कि शायद हम ही अपनी जान की कीमत कम समझते हैं और पैसों की अधिक। आज शायद मेरे साथ आपको भी अपने उन सभी डॉक्टर लोगों का आभार व्यक्त करना चाहिए जिन्होंने कितनी बार आपको स्वस्थ किया निरोग किया रोग होने पर।
ये अच्छा है तब सोशल मीडिया नहीं था और मुझे पता था कि बेशक खुद डॉक्टर हूं मैं फिर भी अपने ईलाज अपने आप नहीं करना चाहिए और 1990 में मैं इक विशेषज्ञ से मिला और जांच करवाई जिस से मालूम हुआ कि मेरा कोलेस्ट्रॉल बहुत बढ़ा हुआ है और मुझे बहुत एतिहात बरतने की ज़रूरत है। 27 साल तक मैंने उनकी अथवा किसी और विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह ली और समस्या होने पर फिर से तंदुस्त हो गया। केवल हृदय की नहीं अन्य भी जीवन की स्वस्थ्य संबंधी समस्याओं में मुझे चिकित्स्कों की सलाह से स्वास्थ्य लाभ हुआ है। अक्सर हम दवा के साइड इफेक्ट्स की बात करते हैं जबकि उनसे डरने या घबराने की नहीं सचेत रहने की ज़रूरत होती है। सही डोज़ में डॉक्टर की सलाह से दवा लेना कभी अहितकर नहीं होता है। मगर साल पहले इक वीडियो से प्रभावित होकर मैंने बहुत बड़ी गलती की , जो दवा सालों से लेकर तंदुरस्त रहा उसको बंद कर दिया था क्योंकि उस वीडियो में जानकारी दी गई थी कि अधिक कोलेस्ट्रॉल होने से कोई समस्या नहीं होती है और ऐसा कुछ दवा बनाने वाली कंपनियों ने अपनी दवा बेचने को किया है। मैंने नासमझी में मूर्खता की और सोचा कि जब मेरा कोलेस्ट्रॉल बिल्कुल ठीक है तो दवा बंद कर देता हूं। मगर साल बाद ही मैं उसी मोड़ पर पहुंच गया जहां 1990 में 28 साल पहले था। अब जांच करवाई तो पता चला कि अपना ईलाज बिना अपने डॉक्टर की राय करने का नतीजा क्या होता है। धन्यवाद मेरे सभी डॉक्टर्स का मुझे हर बार उचित उपचार और सलाह देने के लिए। आज अपना ही लिखा पुराना लेख फिर याद आया है जो नीचे लिख रहा हूं।
आप अपने डॉक्टर नहीं बनें ( आलेख )
शायद सब कुछ उतना आसान होना मुमकिन नहीं जितना हम चाहते हैं। मेरे
पास कई बार लोग आएं हैं इंटरनेट से किसी रोग बारे जानकारी हासिल कर अधकचरी
जानकारी से कोई गलत नतीजा निकाल कर। मैंने हर बार उनको भी और कई बार कहीं
भी या फोन पर ही अपने रोग का उपचार पूछने वालों की आगाह किया है कि अपनी
जान की कीमत को समझें और इस तरह उपचार नहीं कराएं। पिछले साल मुझे जब लगा
लोग आयुर्वेद के लेकर ठगी का शिकार हो रहे हैं तब मैंने सभी को निस्वार्थ
सलाह लेने को अपना नंबर भी दिया और इक पेज पर आयुर्वेद की जानकारी और बहुत
ऐसी समस्याओं का निदान भी बताना शुरू किया। मगर तब भी अधिकतर लोग चाहते थे
उनको बिना किसी डॉक्टर से मिले घर बैठे दवाएं मिल सकें। अर्थात जो उचित
नहीं मैं समझाना चाहता था लोग मुझ से भी वही चाहते थे। शायद कोई ऐसे में
अपनी दुकानदारी कर कमाई भी कर सकता था , मगर मुझे लोगों के स्वास्थ्य से
खिलवाड़ कर पैसे बनाना कभी मंज़ूर नहीं रहा। आजकल देखता हूं हर कोई हर समस्या
का समाधान गूगल से खोजने लगे हैं। मगर रोग और चिकिस्या बेहद संवेदनशील
विषय हैं। सवाल ये नहीं कि इस से डॉक्टर्स हॉस्पिटल या नर्सिंग होम को कोई
नुकसान हो सकता है , सवाल ये है कि खुद जो इस तरह उपचार करेंगे उनका भला इस
में है भी या नहीं। आप अगर कभी किसी भी दवा को लेकर सर्च करें तब आपको
कठिन ढंग से इतना कुछ मिलेगा कि आप घबरा जाओगे और कोई भी अलोपथी की दवा
नहीं लेना चाहोगे। मगर असल में कितने लोग इस सब को पढ़ कर समझ सकते हैं ,
मेरा विचार है अधिकतर बस रोग और दवा का नाम और किस मात्रा में खानी पढ़कर
उसे अपने पर इस्तेमाल करते होंगे। जब कोई आस पास क्या राह चलता भी बताता है
किसी रोग की दवा तब भी लोग बिना विचारे अपने पर आज़मा लेते हैं तब गूगल का
नाम ही उनको प्रभावित करने को काफी है। कल ही मैंने इसी तरह इक नई दवा की
जानकारी ढूंढी जो दिल्ली के इक बड़े संस्थान के डॉक्टर मेरे परिवार के इक
सदस्य को लिख रहे थे , तब मैं हैरान हो गया ये पढ़कर कि तमाम रोगों पर काम
करती है की बातों के आखिर में लिखा मिला अभी तक ये किसी ने विधिवत रूप से
प्रमाणित किया नहीं है। ये शब्द आने तक मुझे लग रहा था जैसे ये कोई संजीवनी
बूटी है राम बाण दवा है। लेकिन आखिरी शब्द मुझे डराते हैं क्योंकि वहीं उस
दवा के तमाम ऐसे दुष प्रभाव भी थे कि इस से अमुक अमुक गंभीर रोग हो सकते
हैं। इसलिए मुझे लगा लोगों को इस बारे सावधान किया जाना चाहिए। बेशक लोग
विवश हैं क्योंकि देश में न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की खराब दशा है बल्कि जब
मिलती भी है तो अनावश्यक रूप से महंगी और केवल पैसे बनाने के मकसद से न कि
ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने को लोगों को रोगमुक्त स्वास्थ्य जीवन
जीने के लिए। फिर भी ये तरीका कदापि सही नहीं है।
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