शोध करने का नया विषय ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
रसिकलाल जी ने पी एच डी के लिए आधुनिक विषय चुना है। मीटू से पहले मीटू मीटू के समय और मीटू मीटू के बाद। इंतज़ार था अच्छे दिनों का , अदालत ने निर्णय दिया विवाहित महिला अपनी मर्ज़ी से शारीरिक संबंध बनाने को आज़ाद है पति की जायदाद नहीं है। कोई गुनाह नहीं है मगर पति चाहे तो तलाक मांग सकता है। इससे पहले जाने क्या बला है ये गे कहलाने वाले उनको भी न्याय मिल गया था। ऐसे में किसी ने सालों पहले अपने साथ की छेड़खानी की बात कही तो सभी इसी बहस में शामिल होते गये। कोई कत्ल करता है कोई किसी को घायल करता है कोई डूबता नज़र आता है तो लोग बचकर निकलते हैं या फोटो लेते विडिओ बनाते हैं आगे बढ़कर कोई किसी को बचाता नहीं है। मगर मी टू की चर्चा में टीवी चैनल अख़बार फेसबुक व्हाट्सएप्प सब शामिल हो गये हैं। कभी सरकार के लोगों और गुंडों के खिलाफ इतनी भीड़ होती तो कितना अच्छा होता। मगर इस विषय पर किसी ने शोध नहीं किया होगा ऐसा सोचकर रसिकलाल आगे आये हैं। देखते हैं राख के ढेर से कितनी चिंगारियां निकलती हैं और कैसी ज्वाला भड़कती है।
यार उस बदशक्ल काली कलूटी को लोग छेड़ते रहे कितनी हैरानी की बात है। सुंदर महिलाओं का कोई अकाल पड़ा था। जिसने किसी पर बदनीयती का आरोप लगाया था अपनी सहेली के भी उसी पर आरोप लगाने से नाराज़ होने लगी कोई दूसरा नहीं मिला हमेशा यही करती है उतरन की आदी है। इक फ़िल्मी कहानी में जिस महिला से अनाचार किया गया , बाद में सालों तक कोई वकील कोई पुलिस वाला कोई और जो कहने को दर्द बांटने वाला था , उसकी रूह को सवाल पूछ पूछ कर ज़ख़्मी करते रहे। किस किस ने उसके साथ वही कितनी बार किया उसी समझ नहीं आया कि वास्तविक अपराधी से अधिक गुनहगार बाकी समाज कब क्यों हो गया। समझना कठिन है कि लोग खाली हैं और समय बिताने को फालतू की बहस या चर्चा में लगे रहते हैं या कि किसी को किसी के लिए भी फुर्सत ही नहीं है। सब कहते हैं वक़्त नहीं बेकार की बातों के लिए मगर वास्तव में सभी बेमतलब की बातों में रात दिन वक़्त बर्बाद करते हैं।
आज जो बात लगता है देश और समाज की सबसे पहली चिंता की बात है अगले ही दिन पता चलता है उसमें कोई दम ही नहीं था। हर टीवी चैनल खबर को दरकिनार कर अखबर को खबर बनाता है , जो हुआ ही नहीं उस पर दिन भर बहस चर्चा और जाने क्या क्या किया जाता है फिर अंत में राज़ खुलता है कि ये विडिओ वास्तविकता से हज़ारों मील दूर है। सब का दावा है सच्चे होने का मगर सच लापता है किसी की दुकान में मिलता ही नहीं। झूठ खूब बिकता है और झूठ को मनचाही कीमत मिलती है। इक नया चलन शुरू हुआ है जिस पर आरोप लगाया जाता है उसी को जांच करने को भी अधिकार हासिल है और निर्णय भी वही करता है। कोई दलील किसी काम नहीं आती है जिसकी लाठी उसकी भैंस बस यही हाल है। आज के हालात पर इक ग़ज़ल मंज़र भोपाली जी याद आती है।
अब अगर अज़मत ए किरदार भी गिर जाएगी
आपके सर से ये दस्तार भी गिर जाएगी।
बहते धारे तो पहाड़ों का जिगर चीरते हैं
हौंसले कीजे ये दीवार भी गिर जाएगी।
हम से होंगें न लहू सींचने वाले जिस दिन
देखना कीमते-गुलज़ार भी गिर जाएगी।
सर फरोशी का जुनूं आपमें जागा जिस दिन
ज़ुल्म के हाथ से तलवार भी गिर जाएगी।
रेशमी लब्ज़ों में न क़ातिल से बातें कीजे
वर्ना शाने लबे-गुफ़्तार भी गिर जाएगी।
अपने पुरखों की विरासत को संभालो वर्ना
अब की बारिश में ये दीवार भी गिर जाएगी।
हमने ये बात बज़ुर्गों से सुनी है मंज़र
ज़ुल्म ढाएगी तो सरकार भी गिर जाएगी।
हौंसले कीजे ये दीवार भी गिर जाएगी।
हम से होंगें न लहू सींचने वाले जिस दिन
देखना कीमते-गुलज़ार भी गिर जाएगी।
सर फरोशी का जुनूं आपमें जागा जिस दिन
ज़ुल्म के हाथ से तलवार भी गिर जाएगी।
रेशमी लब्ज़ों में न क़ातिल से बातें कीजे
वर्ना शाने लबे-गुफ़्तार भी गिर जाएगी।
अपने पुरखों की विरासत को संभालो वर्ना
अब की बारिश में ये दीवार भी गिर जाएगी।
हमने ये बात बज़ुर्गों से सुनी है मंज़र
ज़ुल्म ढाएगी तो सरकार भी गिर जाएगी।
आपको शायद लगता होगा कि मामला तो हल्का फुल्का था ये इतनी संजीदा बात ऐसे में लाने की ज़रूरत क्या थी। जब देश की सियासत वास्तविक समस्याओं को छोड़ केवल दलगत राजनीति और किसी भी ढंग से चुनावी खेल में लगी हो तो कोई रचनाकार मनोरंजन नहीं परोस सकता है। ये लिखने वाले की विवशता है कि कड़वे यथार्थ को भी चासनी चढ़ानी पड़ती है अन्यथा कोई पढ़ता ही नहीं। देश जलता है जले लोग हास उपहास में मस्त रहना चाहते हैं। अब अगर नैतिकता को भुलाया जाएगा , तो सर उठाकर शान से जीना असंभव है। अगर देश की खातिर सुभाष की बात को याद कर लहू नहीं देंगे हम तो आज़ादी मिली नहीं मिलने जैसी होगी। कायरता को छोड़ सरफ़रोशी की तम्मना लेकर चलेंगे तभी ज़ालिम की तलवार का सामना होगा। ये जो लोग देश को लूट रहे हैं या बर्बाद करने को लगे हैं सत्ता और अधिकारों के गलत उपयोग कर रहे हैं उनके सामने नतमस्तक होना तो देश समाज को रसातल को ले जाना होगा। अपने महान देशभक्तों और शहीदों की विरासत को क्या हम सहेज संभाल नहीं सकते हैं। ये कब तक नेता हमें वास्तविक अधिकारों से वंचित रखकर कुछ खिलौनों से बहलाते रहेंगे और हम उनकी बातों में आते रहेंगे। सरकार गंगा की सफाई पर करोड़ों रूपये बर्बाद करती रहेगी और गंगा पहले से भी गंदी होती जाएगी और कोई सच्चा गंगा का बेटा जी डी अग्रवाल 111 दिन अनशन के बाद सरकारी संवेदनहीनता से मर जाएगा मगर हम मी टू मी टू की उलझनों में उलझे रहेंगे।
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