जुलाई 12, 2018

अल्लाह की मर्ज़ी है ( की मैं झूठ बोलिया ) डॉ लोक सेतिया

   अल्लाह की मर्ज़ी है ( की मैं झूठ बोलिया ) डॉ लोक सेतिया 

सच्चे फांसी चढ़दे वेखे झूठा मौज मनाय , लोकी कहंदे रब दी माया मैं कहंदा अन्याय। 
ओ की मैं झूठ बोलिया , की मैं कुफर तोलिया। कोइना भाई कोइना। 
 
     पंजाबी बोलियां कहते हैं इसे। आज कुछ इसी अंदाज़ में सवाल जवाब। सवाल भी आपके ही हैं और जवाब भी अपने ही हैं। उनसे सवाल क्या , और उनके जवाब क्या , कब कौन कर रहा क्या व्यौपार मत लिखो। बेदर्द शासकों को यूं अवतार मत लिखो। झूठे बयान देती ये सरकार मत लिखो। उनके फरेब की बात सौ बार मत लिखो। उनके गुनाह सब माफ़ , बदकार मत लिखो। आईन देश का क्यों गया हार मत लिखो। 

पहला सवाल :-

आपने वादे बहुत किये देश की जनता के साथ , वास्तविकता में हुआ कुछ भी नहीं। क्या आप स्वीकार करते हैं आपने जो जो कहा सब झूठ साबित हुआ। आपने कहा था मेरा कोई कसूर कोई कमी निकले तो मुझे सज़ा देना। अब आप खुद बता दो क्या सज़ा मिलनी चाहिए आपके अपराधों की। 

जवाब हाज़िर है :-

मैंने कोई गलती नहीं की , कोई गुनहगार नहीं हूं मैं , मैंने तो कोई कमी नहीं छोड़ी। जिस खुदा पर भरोसा था कि वो मेरी हर इच्छा को पूरी करेगा। जैसे ऊंचे सिंघासन पर बिठाना। उसी पर छोड़ा था सब को अच्छे दिन दिखाना ज़रूर बेशक दूर से ही। शायद उसने दिखलाये भी होंगे मगर जब दिखा रहा तब लोग नहीं देख रहे थे। लोगों का ध्यान इधर उधर बहुत रहता है। कोई मंदिर कोई भगवान का दर नहीं बचा जिस चौखट पर झुकाया नहीं जाकर सर अपना। सब जानते हैं जो भी करता है वही करता है , उसने किसकी झोली भरी किसकी खाली रही ये उसी की मर्ज़ी है। अल्लाह जो करता है मंज़ूर करना पड़ता है , मेरे चाहने से क्या हो सकता है। 

दूसरा सवाल :-

आप अपनी नाकामी को ऐसे ढक नहीं सकते हैं। आपको अपने भगवान राम दोषी लगते हैं।  भगवान को राजनीति में लाना उचित नहीं है। अपने वादे आपको पूरे करने थे राम जी की मर्ज़ी नहीं आती आड़े इस में। 

जवाब हाज़िर है :-

आपने राम और रहीम को मिला दिया है जो सही नहीं है। राम जी ने अपने भक्तों की भलाई करनी थी , अल्लाह ने अपने बंदों की भलाई करनी थी। और जो हर किसी को मानते हैं उनकी तरफ कोई नहीं देखता है। सबसे पहले आपकी आस्था एक में होनी चाहिए। हर किसी की चौखट पर जाने वाले खली हाथ रहते हैं। 

तीसरा सवाल :- 

संविधन देश को देश की सरकार को धर्म निरपेक्षता का सबक पढ़ाता है। आपको अपना काम करना है कोई खुदा कोई अल्लाह कोई यीशु मसीह कोई वाहेगुरु आपको रोकने नहीं आया होगा। राजधर्म को छोड़ आपने सब धर्मों की चिंता की , अपना वास्तविक धर्म निभाया ही नहीं। 

जवाब हाज़िर है :-

मुझे दोष देते हो अपना काम खुद नहीं करना ज़रूरी समझा और भगवान भरोसे सब कुछ छोड़ दिया। मगर देश आजतक भगवान भरोसे ही चलता रहा है , मैंने मेरी सरकार ने भी वही किया जो पहले की सभी सरकारों ने किया है।  बड़ा गर्क देश का। जनता भी तो सब हरि इच्छा पर छोड़ती है। किसे क्यों चुनती है कभी सोचती ही नहीं। हम नेताओं के वादे सुनती है और लालच में आ जाती है। अगर खुद अपने बीच से अच्छे सच्चे और ईमानदार लोगों को चुन कर भेजती तो अपने आप सब ठीक हो जाता। आप बताओ 125 करोड़ की आबादी में क्या 543 लोग ऐसे नहीं हैं जिनको कोई वेतन सुविधा नहीं चाहिए देश की सेवा करने के बदले। खुद कांटों को बोती है स्वार्थी नेताओं को वोट देकर। 

अंतिम सवाल :-

आपको क्या लगता है देश में वास्तविक लोकतंत्र कैसे मज़बूत हो सकता है। कोई मसीहा तो आकर कुछ नहीं करेगा। भविष्य क्या है और कैसे बदल सकता है। 

जवाब हाज़िर है :-

वोट देना काफी नहीं है लोकतंत्र को समझना होगा। राजनेता कभी मसीहा नहीं बन सकते हैं।  उनका मकसद सत्ता होता है। पांच साल इंतज़ार नहीं किया करती ज़िंदा कौमें याद रखना। जो सरकार मनमानी करती हो और सत्ता मिलते ही आम जनता की बातों को महत्व नहीं देती हो उसका विरोध करना चाहिए। मगर यहां जो बात सबसे महत्वपूर्ण है विरोध किसी भी नेता या सरकार की इजाज़त लेकर नहीं हो सकता है। अधिकार पाने को संघर्ष करना पड़ता है हर राज्य हर मुल्क की जनता को। कोई भी थाली में रखकर परोस कर आपको हक नहीं देता है।


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