मुझे मिल गया उसका पता ( झूठी बात ) डॉ लोक सेतिया
ईश्वर खुदा यीसुमसीह वाहेगुरु आप सभी तलाश करते रहे। मगर खुद उसने मुझे तलाश कर लिया है। आप कहोगे फिर झूठी बात क्यों लिखा है शीर्षक। उसी ने कहा है किसी को मत कहना यहां तक कि खुद उसे भी ऐसे नहीं प्यार के किसी नाम से संबोधित करूं। अब उसकी बात नहीं मानूंगा तो किसकी मानूंगा। वैसे भी सच्ची बात लिखता तो कोई यकीन नहीं करता क्योंकि आदत हो गई है झूठी बात सुन कर उसे सच समझने की। अब मुझे कहीं नहीं जाना मंदिर मस्जिद गिरजा घर न गुरूद्वारे। वो है ही नहीं उन सब जगहों से उसको कब का निकाल दिया गया है। सुनो इक ग़ज़ल :-
कहां तेरी हक़ीकत जानते हम हैं ,
बिना समझे तुझे पर पूजते हम हैं।
नहीं फरियाद करनी , तुम सज़ा दे दो ,
किया है जुर्म हमने , मानते हम हैं।
तमाशा बन गई अब ज़िंदगी अपनी ,
खड़े चुपचाप उसको देखते हम हैं।
कहां हम हैं , कहां अपना जहां सारा ,
यही इक बात हरदम सोचते हम हैं।
मुहब्बत खुशियों से ही नहीं करते ,
मिले जो दर्द उनको चाहते हम हैं।
यही सबको शिकायत इक रही हमसे ,
किसी से भी नहीं कुछ मांगते हम हैं।
वो सारे दोस्त "तनहा"खो गये कैसे ,
ये अपने आप से अब पूछते हम हैं।
समझना है कि उसका पता ठिकाना है कहां।
ढूंढते हैं मुझे , मैं जहां नहीं हूं ,
जानते हैं सभी , मैं कहां नहीं हूं ।
सर झुकाते सभी लोग जिस जगह हैं ,
और कोई वहां , मैं वहां नहीं हूं ।
मैं बसा था कभी , आपके ही दिल में ,
खुद निकाला मुझे , अब वहां नहीं हूं ।
दे रहा मैं सदा , हर घड़ी सभी को ,
दिल की आवाज़ हूं , मैं दहां नहीं हूं ।
गर नहीं आपको , ऐतबार मुझ पर ,
तुम नहीं मानते , मैं भी हां नहीं हूं ।
आज़माते मुझे आप लोग हैं क्यों ,
मैं कभी आपका इम्तिहां नहीं हूं ।
लोग "तनहा" मुझे देख लें कभी भी ,
बस नज़र चाहिए मैं निहां नहीं हूं।
लोग गलत पते पर चिट्ठियां डालते रहे और उसके नाम पर इमारतें बनाने वाले बाहर उस का नाम लिख कर वास्तव में भीतर खुद उसकी जगह लेते रहे। डाकिया बेचारा आपकी चिट्ठी उसी गलत पते पर देता रहा और वो सारी डाक को सरकार के बाबुओं की तरह रद्दी की टोकरी में डालते रहे। मैंने उसके बारे क्या क्या नहीं लिखा , पढ़कर उसको मेरे पास आना ही पड़ा। बताना पड़ा जो जो भी गलत हो रहा है उसमें मेरा कोई हस्ताक्षेप नहीं है। बेबस हो गया है , मगर मुझे समझा दिया है मुझे इधर उधर कहीं भी भटकना नहीं है। उसने वादा किया है हर पल मेरे साथ रहने का। मैंने भी उसको कह दिया कि आपकी हर बात स्वीकार है केवल एक बात को छोड़कर , वो ये कि मुझे लिखने में कोई दखल पसंद नहीं है। भले आपको अच्छा नहीं लगता तो मत पढ़ना , जो पढ़ते हैं उन्हीं पर कब कोई असर हुआ है। देखिये आपको मेरे पास नहीं आना उसका पता ठिकाना जानने को , आपको इशारे इशारे से समझा देता हूं। आपके बेहद करीब है वो बस पहचान लो कोई है जिसमें आपको भगवान अल्ला यीसू वाहेगुरु नज़र आता है , ध्यान से देखना उस इंसान को प्यार करना खुश रखना। घर से बाहर भी हो सकता है या आपके घर ही में। आपका कोई दोस्त या भाई पिता या माता या पत्नी कोई भी हो सकता है। हर किसी में उसी को देखना तो सब अच्छे लगने लगेंगे। मिलेगा खुद आपके पास आएगा किसी दिन इंतज़ार करना आखिरी सांस तक। मिले तो उससे बिछुड़ना नहीं कभी किसी भी कारण से।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें