मार्च 28, 2018

पंजीकरण मूर्खों का ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        पंजीकरण मूर्खों का ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        इस में कोई शक नहीं है कि पहली अप्रैल को मूर्ख बनाने वाले खुद भी साल भर मूर्खता करते ही रहते हैं। सब से महत्वपूर्ण बात ये भी है कि सभी दलों के नेता हमेशा से जनता को मूर्ख बनाते रहे हैं। लेकिन अब दावे से कहा जा सकता है कि देश की जनता को मूर्ख बनाने में इक नया कीर्तिमान जिस एक नेता न बनाया उसका नाम तक लेने की ज़रूरत नहीं है। जी नहीं डरने की कोई बात नहीं है जिस के सामने दूसरा कोई दिखाई ही नहीं देता और जिसको चुनाव से पहले ही विजेता घोषित किया जा चुका हो उसका मुकाबला किसी से करना उसकी तौहीन होगी और मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप फिर गलत समझ रहे हैं भला मुझ लेखक को किसी मानहानि के मुकदमें की क्या चिंता हो सकती है। मैं किसी राज्य का मुख्यमंत्री भी नहीं जो पहले सब पर आरोप लगता रहूं और बाद में माफीनामा देकर पिंड छुड़ाता फिरूं। अब बात असली विषय की। जब सब से अधिक लोगों को मूर्ख बना ही चुका है तो उसको पहली अप्रैल को कोई उपाधि मिलनी ही चाहिए। अब ऐसी उपाधि कोई सरकार तो नहीं दे सकती है और कोई संस्था भी शायद ही मूर्ख बनने बनाने की बात पर ध्यान देने की चिंता क्यों करेगी , सब को तो खुद को समझदार और बाकी लोगों को महामूर्ख समझने का भरम रहता है। इसलिए पहली अप्रैल को इक सभा में सभी मूर्ख मिलकर देश की जनता को मूर्ख बनाने का कीर्तिमान स्थापित करने को उपाधि देनी है और उस सभा में शामिल होने के लिए खुद को मूर्ख घोषित करने को पंजीकरण करवाना लाज़मी है। आप उस के लिए काबिल हैं अथवा नहीं है इस बात का निर्णय खुद आप कर सकते हैं। लेकिन आपको थोड़ा बहुत मार्गदर्शन किया जा सकता है ताकि वास्तविक मूर्ख ही इस शुभ कार्य में शामिल हों और गलती से भी कोई समझदार इस का हिस्सा बनकर उल्लू नहीं बना सके। 
 
     सदियों से मूर्खताओं पर जानकारी मिलती आई है , ये काम करना पागलपन है , नासमझी है , मूर्खता है सब को बताया जाता रहा है। सच बोलना भी उस में शामिल है और ईमानदार होना भी। ऑफ दा रेकॉर्ड आजकल के नेता आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों को कुछ ऐसा ही बताते हैं , यूं सामने उनको महान बताते हुए भी सोचते हैं मज़बूरी है अन्यथा समझदार तो हम हैं और उन सभी से महान भी। चाह कर भी अपनी ऊंची ऊंची मूर्तियां बनवा नहीं सकते , जिस ने अपने चुनाव चिन्ह की पत्थर की मूर्तियां बनवाईं उसका हाल  भी सब जानते हैं। ये भी कोई  कम पागलपन नहीं है जो देश में लोग बेघर भूखे हैं और हम करोड़ों रूपये समाधियों और मूर्तियों पर बर्बाद करते हैं। लेकिन आप और हम क्या मूर्खता करते हैं या नहीं करते हैं आगे सब से अधिक महत्वपूर्ण विषय की बात करते हैं। 
 
       समय सब से मूलयवान होता है। अपने वक़्त का हमेशा सार्थक उपयोग किया जाना ज़रूरी है अन्यथा समय बर्बाद करना बहुत बड़ी मूर्खता कहलाता है। क्या आप फेसबुक व्हाट्सऐप ट्विटर आदि पर दिन भर महानता की बातें करते लिखते हैं जिस का आपको पता है कोई भी असर खुद अपने पर ही नहीं होता है। हर दिन गूगल संख्या बताता है इतने करोड़ सोशल मीडिया पर हैं। आपने बहुत काम किये हैं पहले भी , हर बार आपको मालूम है कि इतने साल पढ़ाई की तो क्या क्या हासिल हुआ। कारोबार किया नौकरी की या घर का कोई काम किया सामने नतीजा दिखाई दिया क्या मिला। कभी विचार किया सोशल मीडिया से कुछ और तो छोडो दोस्ती की बात करते हैं कोई वास्तविक दोस्त मिला आज तक। फेसबुक के हज़ारों दोस्त इक संख्या भर हैं वास्तविकता नहीं। हद तो आजकल ये है कि लोग सोशल मीडिया पर आपस में शब्दों की जंग लड़ते हुए मिलते हैं। ये सब से बड़ी मूर्खता है किस के लिए आपस में लड़ते हैं जो किसी के भी नहीं होते हैं। ये राजनीती बड़ी गंदी चीज़ है जो किसी को आगे बढ़ाता है वही उसी को किनारे लगा देता है। राजनेताओं से और बाज़ारू पैसे से बिकने वाली वैश्याओं से वफादारी की अपेक्षा रखना भी मूर्खता ही है। 
 
         आजकल साधु सन्यासी लोग भी हर जगह हर किसी को कोई उपाधि देते मिलते हैं। हमारे कई नेता जाने क्या क्या उपाधि अपने और अपने बाप दादा के नाम से आगे लिखवाते रहते हैं। हर शहर में हर दो लाइनें लिखने वाला खुद को महान साहित्यकार घोषित करता है। मीडिया वालों की तो बात ही नहीं करो समझते हैं वास्तविक सत्य उन्हीं की दुकान में मिलता है। सब को दर्पण दिखलाते हैं मगर खुद को आईने में देखने का साहस नहीं है। आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास। आजकल इश्क़ भी नकली हो गया है और दो दिन तो क्या दो घंटे में नया आशिक नई महबूबा होती है। लेकिन वास्तव में इश्क़ भी मूर्ख लोग ही किया करते हैं , चलो अच्छा है देश की सर्वोच्च अदालत ने निर्णय दिया उनके पक्ष में कि खाप पंचायत को बालिग लड़के लड़की के विवाह को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। 
 
            हम अधिकतर देशवासी अभिशप्त हैं मूर्ख बनने के लिए और कोई उपाय नहीं है बचने का भी। लेकिन जो सरकारें जो नेता जो अधिकारी सब को मूर्ख बनाते हैं उनकी मूर्खताएं भी कुछ कम नहीं हैं। हर दिन बेकार के आयोजन आडंबर और ऐसी ऐसी योजनाओं पर आये दिन सभाओं के आयोजन पर करोड़ों रूपये खर्च करते हैं जबकि जानते हैं इनका कोई लाभ नहीं होने वाला है। अपने खुद के इश्तिहार छपवाने और टीवी चैनलों पर दिखलाने पर जितना धन खर्च किया जाता है किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा भी उस की राशि की कोई सीमा ही नहीं है। आप कभी हिसाब लगाना या हिसाब पूछना तो हैरान रह जाओगे कि अभी तलक हुए सभी घोटालों की राशि जोड़ने के बाद भी उतनी बड़ी धनराशि का घोटाला नहीं हुआ है जितना केवल सरकारी प्रचार के विज्ञापनों पर सत्तर साल में धन बर्बाद ही नहीं किया गया बल्कि कुछ ख़ास लोगों का मुंह बंद रखने को बेकार जनता का धन लूट की तरह बांटा गया है। अब कोई अख़बार कोई टीवी वाला खुद अपने पेट पर लात क्यों मारेगा। सभी शामिल हैं। हम मूर्ख हैं जो इतनी सी बात कभी नहीं समझे कि कौन कौन किस किस तरह किस किस ढंग से किस रूप में मूर्ख बनाते रहे हैं हमको। शायद मूर्ख दिवस पर थोड़ा चिंतन किसी को मूर्ख बनने से बचा सके। जी मेरा नाम मूर्खों में पंजीकृत है आप भी चाहें तो आवेदन भेज सकते हैं। हमारी शाखाएं नगर नगर गांव गांव ही नहीं गली गली में हैं , पधारें आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है।

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत बढ़िया लेख...राजनेताओं...लेखकों..पत्रकारों पर सवाल खड़े करता👌