उसकी इसकी आपकी हमारी सबकी बात ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
ये कैसे दोहरे मापदंड हैं कि जो सत्ताधारी देश के हर नागरिक की निजता को अनावश्यक मानता है , वो अपनी हर बात को गोपनीय रखता है। आपकी ईमानदारी तब दिखाई नहीं देती जब आप अपने शासनकाल में अपने दल को मिले चंदे की बात देश विदेश से मिले धन की बात और देश भर में चार साल में आपके दल और आपके दल के नेताओं की बढ़ती सम्पति और आमदनी की बात नहीं बताते हैं। सत्ताधारी दल हो चाहे बाकी दल वाले अगर फेसबुक और सोशल मीडिया से डाटा खरीदते हैं तो ऐसे अपराध पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता किसी के भी खिलाफ। आपकी हर योजना स्वच्छ भारत अभियान , गंगा की सफाई , जाने किस किस नाम की मगर किसी भी काम की नहीं सरकारी ऐप्स की असलियत और सभी दावे झूठे साबित हुए हैं। फिर भी आपके दल को अगर लगता है कि इक आपके सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं है तो आपके दल के लिए ये कोई गौरव की बात नहीं है। लेकिन आपको ये शायद याद करना होगा कि जब भी कोई खुद को देश से अधिक महत्वपूर्ण समझने लगता है या ऐसा प्रचारित करने लगता है तो इस देश की सवा सौ करोड़ जनता विकल्प खुद ढूंढ लेती है। 1977 का इतिहास भूलना नहीं चाहिए।
शायद आज की सरकार को लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का वो भाषण ध्यान नहीं है जिस में उन्होंने कहा था कि शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करना हर देशवासी का अधिकार है और अगर ऐसा करने पर कोई सत्ताधारी नेता या अधिकारी सुरक्षकर्मियों को दमन या बलप्रयोग का आदेश देता है तो वो अनुचित और असंवैधानिक होगा और सुरक्षाकर्मी देश के लिए निष्ठा रखें न कि सत्ता के लिए जनता का दमन करें। ये मेरी खुशनसीबी है जो मैं 25 जून 1975 को उनकी सभा में शामिल था और मैंने सुना था उनका भाषण। इस से अधिक विडंबना क्या हो सकती है कि मौजूदा सरकार आपत्काल में कैद में रहे लोगों को मुफ्त बस यात्रा और अन्य सुविधाएं देने की बात करने के साथ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की सभा में विरोध के लिए काले झंडे दिखाने के लोकतांत्रिक तरीके पर ही जेल में दाल आपराधिक धाराएं लगवा देती है। कोई सरकारी विभाग के अनुचित कार्यों को बढ़ावा देने की बात कहता है तो सच बोलने वाले को प्रताड़ित किया जाता है और अनुचित कार्य करने वालों पर कोई करवाई नहीं की जाती।
ये इस देश का दुर्भाग्य है कि अभी भी तमाम लोग गुलामी की मानसिकता से निकल नहीं पाये हैं। और कभी एक कभी दूसरे की चाटुकारिता में कभी किसी को देवी तो कभी किसी को भगवान समझने लगते हैं। सब से पहले तो आप खुद धर्म और भगवान की बातें करने वाले वास्तविक भगवान अल्हा खुदा यीसु या वाहेगुरु को ही इक नेता के बराबर खड़ा कर अपमानित करते हैं। भगवान को किसी से बैर नहीं न ही किसी का पक्षपात करता है और आप किसी को भी जो तमाम महान लोगों से दुर्भावना रखता है , हर किसी को अपमानित करने का प्रयास करता है जो वास्तव में अच्छे इंसान होने का आधार है और खुद अपना गुणगान करवाता है उसे भगवान या खुद को उसका भक्त बताकर कितना अनुचित उदारहरण प्रस्तुत करते हैं।
राजनीती में खुद को सौ परदों में छिपाना और विरोधियों को नंगा दिखलाना इक बेहद गंदी सोच को दर्शाता है। सब जानते हैं भगवान से कुछ भी छिपा नहीं है और भगवान चाहता तो बाकी तमाम तरह के चमत्कार करने की तरह ये भी कर सकता था कि सब की छुपाई बातें औरों को पता चल जाएं। मगर उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसे मालूम था वो इंसान बना रहा है और कोई भी इंसान सब तरह से परिपूर्ण नहीं हो सकता है। इंसान की सब से बड़ी कमी ही यही है कि वो औरों में कमियां ढूंढता है मगर खुद की बड़ी से बड़ी कमी को भी नहीं देख सकता है। ये आजकल की राजनीती उस वैश्यावृति के धंधे से भी नीचे गिर चुकी है जिस के बारे हमेशा से कहते आये हैं ये दो दुनिया के सब से पुराने पेशे हैं और दोनों में बहुत समानताएं हैं। मगर कोई वैश्या भी ऐसा नग्नता का नाच नहीं नाच सकती जिस तरह से आज की राजनीती नाच रही है।
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