अक्टूबर 03, 2023

लौट चलें ख़ुशी चैन सुकून की तरफ ( सब लुटा कर ) डॉ लोक सेतिया

लौट चलें ख़ुशी चैन सुकून की तरफ ( सब लुटा कर ) डॉ लोक सेतिया  

कल अचानक मेरी ख़ुद से बात हुई मुलाकात हुई पहचान हुई , कुछ दिनों से अजीब सी उथल-पुथल मची हुई थी । समझ नहीं आ रहा था जीवन भर कितनी परेशानियां झेलता रहा तब भी कभी इस कदर निराश हताश उदास नहीं हुआ जितना आजकल होने लगा हूं । कितना कुछ है , माना सब कुछ नहीं , तब भी कितनों के पास इतना होना भी शायद ख़्वाब होता है । अचानक इक सवाल उठा मन में आसपास तमाम लोग सोचते हैं कभी तो इशारों से कभी कोई खुलकर भी समझाता है कि ये लिखना पढ़ना व्यर्थ है किसे पढ़ना है कौन समझता है । कभी देखा किसी पर कोई असर हुआ नहीं होता आजकल सभी इन किताबी बातों को फ़ज़ूल की बातें मानते हैं हर किसी को कितना कुछ पाना है पैसा नाम शोहरत अधिकार ताकत और ज़िंदगी के बाद भी दुनिया में अमर होने की इक आशा भले कभी कोई हमेशा रहता नहीं है । कितनी ख़ूबसूरत निशानियां बनाते रहे जो उनके महल भी खण्डहर बने अपनी वास्तविक आभा को खो कर इक तमाशा बने सबक देते हैं कि बाद में क्या होने वाला है । ये सब जब कभी नए थे तो कुछ अलग नज़ारा था अब पुराने होकर किसी परिवार के बज़ुर्ग की तरह इक सामान की तरह हैं । आपको यादें लगती हों अन्य लोगों को वही इक कबाड़ लगता है कबाड़ी से तोलभाव करते हैं हां सरकारी विभाग ने यात्रा और पर्यटन को इक कारोबार बनाकर कितनी जगह को अपने राजस्व बढ़ाने को सजाया हुआ है । देखने वालों को मिलता कुछ भी नहीं काल्पनिक ख़्वाबों की चाहत की कुछ ऐसी यादें जो वास्तविक जीवन में हमारा कोई भाग कभी नहीं थीं न बन सकती हैं किसी मृगतृष्णा की तरह । आज का इंसान दुनिया में किसी प्यासे मृग की तरह भागता भागता प्यासा ही मरने को अभिशप्त है ये क्यों है किस कारण है । 
 
शायद ख़ुद अपने आप से विचार विमर्श किया कि इस हमारी दुनिया में अच्छाई सच्चाई प्यार और सभी के लिए कल्याण की भावना कहां दिखाई देती है । यूं सभी समझते हैं हम भले और सभ्य समाज के लोग हैं किसी का बुरा नहीं करते जबकि आचरण में जितना धन वैभव शिक्षा अधिकार ताकत जिस के पास है कोशिश करते हैं अपने से छोटे को अपमानित करने नीचा दिखाने से उनका शोषण करने तक । सच में कोई भी ऐसा दिखाई नहीं देता जो अपनी ताकत और साधन का उपयोग किसी की भलाई करने को उपयोग करता हो । अब तो ये समाज सेवा दान धर्म भी इक धंधा बन गया है लोग दिखाने को ये करते हैं ताकि बदले में कुछ और अधिक महत्वपूर्ण हासिल कर सकें । जाने कहां खो गए वो पुराने शानदार लोग जो सादगी में थोड़े में भी अपनी भलाई को छोड़ते नहीं थे और जितना भी पास हो मिल बांट कर खा कर आधे पेट भी रहते थे ख़ुशी से मर्ज़ी से और चैन से । किस्से कहानियां बन गए वास्तविक बड़े महान लोग आदर्श पर कायम रहने वाले इंसान और नज़र आते हैं ऊंचे आदर्शों की खोखली बातें करने वाले झूठे अहंकारी लोग । 
 
कितने धार्मिक स्थल आयोजन कितने उपदेशक कितने धर्मगुरु बन गया बना लिए सबने लेकिन उन सभी धार्मिक उपदेशों को समझना और अमल करना कोई नहीं चाहता सिर्फ धार्मिक होने का दम भरते हैं और आडंबर करते हैं । मुझे लिखना ज़रूरी लगता है ताकि इक कोशिश ऐसा इक जहां बनाने की होनी चाहिए जिस में कोई बड़ा छोटा नहीं हो कोई ताकतवर किसी कमज़ोर पर ज़ुल्म नहीं करे बल्कि हर शख़्स अपने से छोटे को साथ खड़ा करने और बराबर समझने की सोच रखता हो । ईश्वर पर आस्था और भगवान की भक्ति पूजा अर्चना ईबादत का अर्थ यही है कि ऊपरवाले ने जो भी सब बनाया है सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए है न कि कुछ लोगों की लोभ लालच और संचय की अनुचित कामनाओं की ख़ातिर । काश सोचते और समझते कि हमने अपनी दुनिया को क्या से क्या बना डाला है बेहतर बनाने की जगह उसको बर्बाद करते रहे हैं और अब विचार तक नहीं करते फिर उस दुनिया की तरफ वापस लौट जाने का जिस में थोड़े में भी ज़िंदगी ख़ुशी और चैन से गुज़र करते थे हमारे पूर्वज । पितृपक्ष में उनकी मुक्ति को क्या क्या करते हैं कभी उनकी सिखाई बातों को भी याद करते जो कहते थे सादगी से जीना और अपने किरदार को बड़ा अच्छा और शानदार बनाना चाहिए दिखाने को चमक दमक की तरफ नहीं दौड़ना चाहिए । मुझे मेरे दादा झंडा राम जी की यही बात ध्यान आती है हमेशा । 
 
फिल्मकार राज कपूर ने अपने बेटे रणधीर कपूर से कहा था कि तुम गाड़ी में बैठ कर सफर करोगे तो देखने वाले गाड़ी को देखेंगे और कहेंगे कि देखो बड़ी गाड़ी में रणधीर कपूर जा रहा है लेकिन मैं अगर बस में सवार होकर कहीं जा रहा हूं तो लोग कहेंगे कि राजकपूर जा रहा है बस में बैठ कर । हम बाप दादा की कही हुई बातों को भूल जाते हैं मैंने कभी नहीं भुलाया है कि मेरे दादा जी झंडाराम जी कहते थे कि तुम खादी के कपड़े पहन कर भी लाला झंडाराम के पोते कहलाओगे । पहाड़ पर खड़े होने से आप की ऊंचाई नहीं बढ़ जाती है ।  मेरे दोस्त रघुविंद्र यादव अपनी टाइमलाइन पर लिखते हैं कि आदमी तब तक सम्मान प्राप्ति का भूखा रहता है , जब तक वह सम्मान के लायक नहीं होता । जैसे ही आदमी सम्मान के लायक हो जाता है , उसकी सम्मान प्राप्ति की भूख समाप्त हो जाती है । अपने आप को बड़ा साबित करने की कोशिश वास्तव में आप को बौना साबित करती है । अपने किरदार को बड़ा बनाना चाहिए अपने कद को नहीं । 
 

 

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