अमर शहीदों की याद में ( श्रधासुमन ) डॉ लोक सेतिया
देश की आज़ादी का इतिहास बिना कुछ मुकदमों के नहीं लिखा जा सकता। ऐसे आज़ादी के मुकदमों पर इक किताब जाने माने साहित्यकार बालमुकुंद अग्रवाल जी की लिखी हुई है। उस में भगत सिंह राजगुरु सुखदेव पर चले मुकदमें के इलावा गांधी सुभाष और अन्य लोगों पर चलाये अंग्रेजों द्वारा मुख्य मुकदमों की जानकारी है।
भगत सिंह जी के मुकदमें की बात लिखने से पहले कुछ शब्द जवाहर लाल नेहरू जी की जीवनी से उद्यत किये गये हैं। जो ये हैं :-
भगत सिंह जी के मुकदमें की बात लिखने से पहले कुछ शब्द जवाहर लाल नेहरू जी की जीवनी से उद्यत किये गये हैं। जो ये हैं :-
भगत सिंह एक प्रतीक बन गए थे। उनका कार्य ( सांडर्स की हत्या ) भुला दिया गया , लेकिन प्रतीक याद रहा और कुछ ही महीनों में पंजाब के शहर और गांव में तथा कुछ हद तक बाकी भारत में भी उनका नाम गूंजने लगा। उन पर अनेकों गीत रचे गये और उनको जो लोकप्रियता मिली वह अद्वितीय थी।
कुछ लोग बिना पूरी जानकारी दो अलग अलग तरह की विचारधारा के आंदोलनों को परस्पर विरोधी बताते हैं , जो सही नहीं है। सब का अपना महत्व है और सभी का मकसद एक ही था। मंज़िल एक थी रास्ते अलग अलग थे। जो गांधी सुभाष भगतसिंह को अपना अपना कहते हैं अपने हित साधने को बांटते हैं वो किसी भी देशभक्त की भावना को नहीं समझते। आज अधिक नहीं कहते हुए कुछ जाने माने शायरों के कलाम से समझने का प्रयास करते हैं , आज़ादी का अर्थ क्या है।
इक़बाल के शेर :-
अपनी हिकमत के खम-ओ-पेच में उलझा ऐसा ,
आज तक फैसला-ए -नफ़ा-ओ-ज़रर न कर सका।
उठा कर फैंक दो बाहर गली से , नई तहज़ीब के अण्डे हैं गंदे।
इलेक्शन मिम्बरी कौंसिल सदारत , बनाये खूब आज़ादी के फंदे।
जाँनिसार अख्तर के शेर :-
जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं , देखना ये है कि अब आग किधर लगती है।
सारी दुनिया में गरीबों का लहू बहता है , हर ज़मीं मुझको मेरे खून से तर लगती है।
वतन से इश्क़ गरीबी से बैर अम्न से प्यार , सभी ने ओड़ रखे हैं नकाब जितने हैं।
दुष्यंत कुमार के शेर :-
परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं , हवा में सनसनी घोले हुए हैं।
ग़ज़ब है सच को सच कहते नहीं वो , कुरानो-उपनिषद खोले हुए हैं।
ये रौशनी है हक़ीक़त में एक छल लोगो , कि जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगो।
किसी भी कौम की तारिख के उजाले में , तुम्हारे दिन है किसी रात की नकल लोगो।
आखिर में कुछ शेर मेरी ग़ज़लों से भी पेश हैं :- ( डॉ लोक सेतिया "तनहा" )
तुम्हें ताली बजाने को सभी नेता बुलाते हैं , भले कैसा लगे तुमको तमाशा खूब था कहना।
नहीं कोई भी हक देंगे तुम्हें खैरात बस देंगे , वो देने भीख आयें जब हमें सब मिल गया कहना।
खामोश रहना जब हमारी एक आदत बन गई , हर सांस पर पहरे लगाना सब की चाहत बन गई।
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