जुलाई 26, 2024

हमको मिली सज़ाएं हर बार तेरे दर पे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

  हमको मिली सज़ाएं हर बार तेरे दर पे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया  

  
हमको मिली सज़ाएं , हर बार तेरे दर पे 
आये हैं आज फिर हम सरकार तेरे दर पे । 
 
कोई नहीं यहां जो फ़रियाद अपनी सुनता 
शायद मिले किसी दिन वो प्यार तेरे दर पे । 
 
हमदर्द कौन किसका , बेदर्द  दुनिया सारी
आते हैं लोग होकर लाचार तेरे दर पे । 
 
भगवान बन के बैठे इंसान हमने देखे 
देखी बनी इबादत बाज़ार तेरे दर पे । 
 
सब झूठ के पुजारी मुजरिम हों जैसे सच के 
लेकिन छुपा रखे हैं क़िरदार तेरे दर पे ।
 
दस्तूर है निराला बस शोर करते रहना 
होती नहीं मधुर अब झंकार तेरे दर पे । 
 
जब देखता सभी कुछ ख़ामोश कैसे रहता 
होने लगी है इस पर तकरार तेरे दर पे । 
 
हमको तबाह करके ख़ुद चैन से है सोता 
हमने बना लिया है घर-बार तेरे दर पे । 
 
अहसान कर रहे हैं वरदान देने वाले 
सब लूट का लगा कर संसार तेरे दर पे । 
 
दी ज़िंदगी भी ऐसी जो मौत से हो बदतर
झोली रही है ख़ाली हर बार तेरे दर पे । 
 
' तनहा ' कभी जनाज़ा अपना उठेगा आख़िर 
उल्फ़त बुला ही लेगी इक बार तेरे दर पे ।  
 






 
 
 

6 टिप्‍पणियां:

Acharya Shilak Ram The Writer ने कहा…

जी, अति हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए आभार

Dr. Lok Setia ने कहा…

धन्यवाद मित्र आपकी प्रतिक्रिया एवं स्नेह अमूल्य धरोहर है ।।

Sanjaytanha ने कहा…

Bahut khoob bdhiya sher hue hn 👌👍

Sanjaytanha ने कहा…

Ji or behtr ho gai h 👍👍

Sanjaytanha ने कहा…

Ji or behtr ho gai h 👍👍

pankaj sharma ने कहा…

बहुत बढ़िया ग़ज़ल। हार्दिक बधाई।