जुलाई 26, 2024

POST : 1868 हमको मिली सज़ाएं हर बार तेरे दर पे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया

  हमको मिली सज़ाएं हर बार तेरे दर पे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया  

  
हमको मिली सज़ाएं , हर बार तेरे दर पे 
आये हैं आज फिर हम सरकार तेरे दर पे । 
 
कोई नहीं यहां जो फ़रियाद अपनी सुनता 
शायद मिले किसी दिन वो प्यार तेरे दर पे । 
 
हमदर्द कौन किसका , बेदर्द  दुनिया सारी
आते हैं लोग होकर लाचार तेरे दर पे । 
 
भगवान बन के बैठे इंसान हमने देखे 
देखी बनी इबादत बाज़ार तेरे दर पे । 
 
सब झूठ के पुजारी मुजरिम हों जैसे सच के 
लेकिन छुपा रखे हैं क़िरदार तेरे दर पे ।
 
दस्तूर है निराला बस शोर करते रहना 
होती नहीं मधुर अब झंकार तेरे दर पे । 
 
जब देखता सभी कुछ ख़ामोश कैसे रहता 
होने लगी है इस पर तकरार तेरे दर पे । 
 
हमको तबाह करके ख़ुद चैन से है सोता 
हमने बना लिया है घर-बार तेरे दर पे । 
 
अहसान कर रहे हैं वरदान देने वाले 
सब लूट का लगा कर संसार तेरे दर पे । 
 
दी ज़िंदगी भी ऐसी जो मौत से हो बदतर
झोली रही है ख़ाली हर बार तेरे दर पे । 
 
' तनहा ' कभी जनाज़ा अपना उठेगा आख़िर 
उल्फ़त बुला ही लेगी इक बार तेरे दर पे ।  
 






 
 
 

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