मई 10, 2021

POST : 1498 क्यों उदास रहते हैं हम ( दास्तान -ए-ज़िंदगी ) डॉ लोक सेतिया

   क्यों उदास रहते हैं हम ( दास्तान -ए-ज़िंदगी ) डॉ लोक सेतिया 

आपको अजीब लगेगा शायद नापसंद भी हो मुझे उदास रहना बुरा नहीं लगता दर्द भर गीत गुनगुनाना मेरी आदत है । कॉलेज में हॉस्टल में उल्टे सीधे नाम देते थे और सूचना पटल पर सबके नाम की सूचि लगा दी जाती थी । बताना नहीं चाहता मुझे जो नाम मिला था मगर मतलब यही था ये सुबह होते ही शाम ए ग़म की ग़ज़ल गाता है । अठारह साल की उम्र में ये होता नहीं मगर हम दो दोस्त कुछ ऐसे थे दूजा अब दुनिया में नहीं है मगर उसका भी पसंद का गीत था ऐ मेरे दिल ए नादां तू ग़म से न घबराना । कुछ साल पहले इक दोस्त फेसबुक पर मिला पूछा याद आया कौन हूं तो उसने मैसेज में वही गीत लिख भेज दिया जिसको लेकर वो मुझे चिढ़ाता था कि ये सुबह हुई और गाता है हुई शाम उनका ख़्याल आ गया । जो कॉलेज में सुनकर खराब लगती थी कितने साल बाद पढ़कर ख़ुशी हुई थी । बात फिर आज भी वही है मुझे उदासी वाले गीत फ़िल्में कहानियां क्यों अच्छी लगती हैं और किसलिए मैं ये लिखता हूं इक लेखक दोस्त शिकायत करते थे निराशा की दुःख दर्द की परेशानी की ही रचनाएं क्यों लिखता हूं । अधिकांश लोग हैरान होते हैं कि इसको सब मिला है मौज से रहता है कभी बदहाल नहीं दिखाई दिया फिर ये ऐसा लिखता क्योंकर है । 
 
लोग दर्द से घबराते हैं मुझे दर्द अच्छे लगते हैं खुशियां कभी कभी पास आती हैं छोड़ जाती हैं ग़म कभी साथ नहीं छोड़ते दिल में बसते हैं । समस्या ये है हम लोग चाहते हैं सब हमेशा इक जैसा रहना चाहिए मगर जीवन सभी रंगों से मिलकर बनता है । गीत ग़ज़ल लिखने वालों ने ख़ुशी के गाने लिखे और ग़म वाले भी मिलन के गीत लिखे जुदाई के भी । क्योंकि ये सब दुनिया का सच है दिन बदलता है सुबह दोपहर शाम ढलती है रात होती है । हर रात को सुबह का इंतज़ार रहता है गुलाब है गुलाब में छिपे कांटें भी हैं । नाज़ुक फूल और पत्थर के साथ शीशा भी अपनी अपनी सभी की पहचान है जो जैसा है उसको उसी तरह स्वीकार करना ज़रूरी है मगर हम चाहते हैं सब जैसा हम पसंद करते हैं वैसा होना चाहिए । सभी इंसान इक जैसे नहीं हो सकते तब किसी की कोई पहचान नहीं बचेगी । मौसम बदलते हैं ये कुदरत का करिश्मा नहीं उपहार है पतझड़ के बाद बहार आना और खूबसूरत लगता है जब आप ख़ुशी के अवसर पर खुशियों के गीत गाते हैं तब सिर्फ ख़ुशी बढ़ती ही नहीं जो ख़ुशी से महरूम हैं उनको भी ख़ुशी का एहसास होता है । दुःख की घड़ी में आशा के गीत नहीं गाये जाते दर्द वाले गीत दर्द को सहने समझने की ताकत देते हैं । निराशा के समय आशावादी गीत सुनकर उम्मीद जागती है तो दुःख की घड़ी में दर्द की बात बेचैनी से आराम देती है । 
 
सभी लोग काले नहीं हो सकते न ही गोरा होना ज़रूरी है जो जैसा है वैसा अच्छा है मानना होगा । पेड़ पौधे पशु पंछी जंगली जानवर कुदरत की बनाई सभी चीज़ों का अपना अपना मकसद है ज़रूरी है संतुलन बनाये रखने को । सब फल फूल इक जैसे सभी खाद्य पदार्थ इक स्वाद के होते हो क्या मज़ा आता मीठा नमकीन कड़वा भी शीतल गर्म सभी अपनी जगह हैं । जिनको दर्द की बात सुनकर घबराहट होती है ज़िंदगी भर डर के साये में जीते हैं मुश्किलें आने पर घबरा जाते हैं उनसे लड़ना नहीं चाहते । गीतकार कथाकार सभी की बात कहते हैं सबका सुख दुःख समझते हैं तभी हर अच्छी खराब हालत पर लिखते हैं । पढ़कर सुनकर सभी को लगता है कि जो मैंने दर्द झेला है सिर्फ मुझे नहीं दुनिया में बहुत को मिला है इक तसल्ली मिलती है ये सब भी बदलेगा निराशा की बात कहानी ग़ज़ल में भी उम्मीद छुपी रहती है । क्या सभी तालाब इक जैसे होते सभी नदियां इक जैसी सभी झरने समंदर सबका पानी ठहरा हुआ या बहता हुआ इक जैसा होता तो क्या लगता । ज़िंदगी भी सुख दुःख दर्द राहत परेशानी और उम्मीद से मिलकर बनती है बदलाव नियम है संसार की हर वस्तु की तरह ज़िंदगी पल पल बदलती रहती है । ज़िंदगी को जी भर जियो जब जैसी है अपनाकर । किसी को भी दोष नहीं देता बस कभी कभी सोचता हूं जिनको लगता है मैं उदास निराश और सभी दोस्तों में रहते हुए भी अकेला हूं तभी तनहा उपनाम रखा है , कभी नहीं समझा कि ऐसा क्यों है । मेरी तन्हाई उदासी को दूर करने का ख़्याल कभी किसी को नहीं आया , ये आदत चाहत नहीं विवशता है जो मिला है जीवन से उसे अपनाना होता है चाहे कुछ भी एहसास होता है । अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे , मर कर भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे । ज़िंदगी ज़िंदादिली है मगर मौत से दुःख दर्द से भागना बुझदिली है । दो रंग जीवन के और दो रास्ते  ये लाजवाब गीत समझाता है । बस ये चुप सी लगी है नहीं उदास नहीं । 
 
 
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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

संस्मरण से शुरू होता सुख दुख की बात करता लेख