नवंबर 28, 2018

हम इस देश के वासी हैं ( उलझन ) डॉ लोक सेतिया

     हम इस देश के वासी हैं ( उलझन ) डॉ लोक सेतिया 

     साफ भले नहीं कहते क्योंकि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता फिर भी ऐसे लोग आज भी हैं जिनको लगता है भारत धर्मनिरपेक्ष नहीं हिन्दु राष्ट्र होना चाहिए। उनकी नज़र में धर्म अलग अलग होने से एक ही अपराध अलग तरीके से परिभाषित किया जा सकता है। केवल वही नहीं तमाम लोग हैं जो ऐसा ही चश्मा जाति अथवा क्षेत्र को लेकर रखते हैं। खेद की बात है देश में अभी भी हम सभी भारतीय नागरिक हैं की भावना का अभाव है। पंजाब का बटवारा हुआ तो हरियाणा में कुछ लोग समझने लगे कि हरियाणा उनकी जाति का अधिकार है और उनकी नज़र में जो आज़ादी के बाद विभाजन में दूसरी तरफ से आकर बसे यहां वो शरणार्थी हैं। मगर उन लोगों ने मेहनत से हरियाणा को अपनाकर आगे बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है। कुछ लोग आज भी उस वर्ग से बनाये मुख्यमंत्री को पसंद नहीं करता इसलिए नहीं कि उसे विधायकों ने नहीं चुना बल्कि थोपा गया है बल्कि इसलिए कि वो उसी जाति का है जो कभी दूसरे देश से आये थे विभाजन को। अब कम से कम खुद उनको तो किसी और को लेकर ऐसी संकीर्णता मन में नहीं रखनी चाहिए। ऐसे कई देश हैं जो बाहर से आये लोगों से बने हैं मगर वहां सभी खुद को उसी देश का नागरिक मानते हैं। जब भारत से कोई जाता है तो भले उनसे अपनेपन से मिलते हैं मगर इस का मतलब कदापि ये नहीं कि उनकी निष्ठा उस देश से नहीं है। ठीक इसी तरह जो लोग सीमा पार से आये थे उनकी बहुत यादें उधर से जुड़ी थी और उसकी बात भी किया करते थे लेकिन उनकी देश भक्ति भारत के लिए ही रही है और जब जब उस देश से जंग हुई उनकी भावना भारतवासी की ही थी और रही है। इसी तरह जो किसी भी धर्म वाले विभाजन में इस देश में रहने को चुनकर रहते आये हैं उनकी भी देश भक्ति की भावना भारतीयता की ही रही है। इसलिए जब कोई राजनेता धर्म के नाम पर बांटकर सत्ता पाना चाहता है तो उसकी चाल को समझना चाहिए। 
 
          सत्ताधारी दल और विपक्ष कोई दुश्मन नहीं होते हैं स्वस्थ्य लोकतंत्र की बुनियाद हैं। मगर इधर जो नफरत की और विचारधारा को छोड़ बेकार बातों की राजनीति करते हैं उनको बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। सबसे पहले हमारा संविधान किसी भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को नहीं चुनता है बल्कि सदन का सदस्यों का चयन होता है और सदन को चुनना चाहिए किसे नेता चुनना है जो अभी तक वास्तव में नहीं होता है। जो दल अपने सांसदों विधायकों को संविधान से मिले अधिकार से वंचित करता है उस से देश की जनता और सामान्य नागरिक के अधिकार की रक्षा की उम्मीद ही नहीं की जा सकती है। इसलिए जब कोई आपसे वोट मांगने आये तो उससे अवश्य पूछना कि देश का संविधान अपने अधिकार और जनता के अधिकार को महत्वपूर्ण मानता है ये फिर किसी दल अथवा नेता के हाथ की कठपुतली बनकर आपको और सदन व संविधान को धोखा देने का कार्य करेगा। वास्तविक सवाल लोकतंत्र और संविधान का है और चुनाव केवल विचारधारा की बात को लेकर होना चाहिए। विचारों की शून्यता बहुत बड़ी चिंता का विषय है। 

 

2 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भालजी पेंढारकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भालजी पेंढारकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।