अब के बरसात में ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
पिछले बरस हम बरखा रानी को मनाते रहे मगर वो रूठी महबूबा जैसी ज़िद पर अड़ी रही। ना मानूं न मानूं रे। क्या क्या नहीं किया उसको बुलाने को फिर भी नहीं आई। हवन करना छोले बांटना और कितने टोने टोटके आज़माना बेकार गया। उधर सरकारी विभाग बाढ़ से बचाव के उपायों पर खर्चा करता रहा और लोग सूखा पीड़ित बनकर रह गए। बजट में सूखे का प्रावधान नहीं था तो किसानों को सूखा राहत घोषणा से ही दिल बहलाना पड़ा। इस साल सरकार सूखे को तैयार थी और काफी बजट का उपाय किया हुआ था , अधिकारी खुश थे राहत बांटने में राहत की चाहत लिए हुए , मगर बरसात ने आकर पानी फेर दिया उनकी उम्मीदों पर। अब सूखा राहत कोष को किस तरह उपयोग किया जाये की चिंता थी , बिना इस्तेमाल वापस लौटना भी कितने सवाल खड़े करता है। पिछले साल बरसात नहीं होने से लोग परेशान थे इस साल बाढ़ ने किया और भी परेशान है। बरसात रोकने को कोई हवन आदि भी नहीं होता है। जैसे विवाह के बाद बेटी बहुत दिन तक ससुराल से मायके नहीं आये तो माता पिता भाई बहन उदास होते हैं मगर मायके में आये बहुत दिन हो जाएं और ससुराल से कोई लिवाने नहीं आये तब चिंता दुगनी हो जाती है। बाढ़ आये बिना सब डूबता दिखाई देता है।
नेता जी को बाढ़ से अधिक चिंता सत्ता की थी , अगले चुनाव का प्रबंध करने के बाद ही बाढ़ग्रस्त इलाके का दौरा विमान से किया और दृश्य देख अनुभव करते रहे कितने ऊंचे उड़ रहे हैं। लोग धरती पर कीड़े मकोड़े जैसे लगने लगे थे। मुआयना करने के बाद करोड़ों की सहायता राशि की घोषणा करने के बाद अधिकारीयों को हिदायत दे दी थी किस कंपनी से सामान खरीदना है। नेता जी को सब का ख्याल रखना है , सब का साथ सब का विकास। विनाश में भी विकास किया जा सकता है इसी को राजनीति कहते हैं। पिछले साल जिनसे मिनरल वाटर खरीदा था इस बार बरसाती कोट और सामान लेना है। नज़र तब पानी नहीं आया था न अब सामान आएगा , बिल आएंगे भुगतान पाएंगे। मिल बांट कर सारे खाएंगे , मौज मनाएंगे। नेता अफ्सर बाबू लोगों के लिए सामान्य हालात नहीं होना ही अच्छा है। बाढ़ भी वरदान है सूखा भी वरदान है।
सावन किसी युग में आशिकों का मनचाहा मौसम हुआ करता था। आजकल प्यार करने वाले कहां झूले झूलते हैं बागों में जाते हैं। डिस्को सिनेमा हल या मॉल में मिलते हैं एकांत में नहीं तो फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर ही बौछार का आनंद लिया करते हैं। बरसात में गलियों सड़कों पर पानी भरा हो तो कौन निकलता है बाहर। प्रेमी को ज़ुकाम हो सकता तो प्रेमिका का मेकअप खराब होने का खतरा भी बहुत। मुफ्त कॉल से ही काम चलाते हैं आशिक लोग। बरसात में नहाना झुग्गी झौपड़ी वालों का काम है। आधुनिक लोग स्नानघर में शावर के नीचे मज़ा लेते हैं सावन में नहाने का।
1 टिप्पणी:
सत्ता के लिए जरूरत बन गयी है, इस प्रकार की राजनीति करना और बारिश व इस मौसम का क्या ही कहना। व्यंग्य के माध्यम से आपने बहुत कुछ हकीकत को कह दिया।
एक टिप्पणी भेजें