मई 28, 2017

POST : 650 खैरात मिल रही है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

      खैरात मिल रही है ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

आपके भी अच्छे दिन आ ही गए , मैंने अपने पत्रकार मित्र को बधाई दी। हरियाणा सरकार ने घोषित किया है हर उस पत्रकार को हर महीने दस हज़ार रूपये पेंशन मिलेगी जिस को बीस साल हो गए किसी अख़बार की खबरनवीसी करते। लो कोई मतभेद नहीं छोटे बड़े किसी अख़बार से ताल्लुक हो , जाति धर्म कोई होता नहीं मीडिया वालों का , सब का भला हुआ। तमाम ऐसे लोग हैं जो व्यवसाय कोई और करते मगर नाम को पत्रकारिता का तमगा लगाया हुआ ताकि धंधे में प्रशासन और सरकार का सहयोग भी मिलता रहे और समाज में दबदबा भी रख सकें। हर कोई डरता है पत्रकारों से , और हर जगह उनको खास स्थान दिया जाता है। मगर अभी तक कोई नहीं जानता था कि अधिकतर स्ट्रिंगर्स को मिलता क्या है , शायद कोई सोच भी नहीं सकता इतने कम पैसे मिलने पर भी कोई किस तरह शाही ढंग से रह सकता है। इस राज़ को कोई नहीं जान पाया कभी भी , कोई जादू की छड़ी है जो सब देती है। फिर भी किसी ने इनकी सुध ली तो।

      ये सरकार भी अजीब चीज़ होती है , जिस को ज़रूरत उसको देने को कुछ नहीं , और जिसको देना उसके लिए सब कुछ है। बीस साल क्या पचास साल कोई और काम किया तमाम लोगों ने उनको क्या मिलती इतनी पेंशन कहीं। बुढ़ापा पेंशन तो सभी को बराबर मिलती है फिर कुछ विशेष वर्ग की अलग व्यवस्था कितनी सही है। मगर कोई टीवी या अख़बार इस पर सवाल क्यों करेगा , हर सरकार ने मीडिया को विज्ञापनों का चारा डाला है। नेता और अधिकारी तो साफ कहते हैं ये नहीं होगा कि खाओ भी और चिल्लाओ भी , हड्डी मिलती है तो दुम हिलाना ज़रूरी हो जाता है।

      वास्तव में सरकार का मकसद आपको स्वालंबी बनाना नहीं भिखारी बनाना है। और सरकार खुश है कि लोग अधिकार मांगते नहीं भीख चाहते हैं। भीख सब्सिडी की हो या आरक्षण की अथवा कोई और , नेता और अफ्सर समझते हैं हम दाता हैं। जनता का धन जनता को ही वापस देना उपकार की तरह वह भी जिन को मर्ज़ी हो। कहते हैं हमने कोई घोटाला नहीं किया , भाई देश की सत्तर प्रतिशत जनता भूखी नंगी बदहाल है और आप खुद हर दिन जनता का धन व्यर्थ के आडंबरों पर बर्बाद करते हैं। कभी जनसभा कभी धार्मिक आयोजन कभी देश विदेश की यात्रा , इसको शाही ठाठ कहा जाता है जनसेवा नहीं। अपने प्रचार पर लाखों करोड़ खर्च करना देश का सब से बड़ा घोटाला है। ये अजीब बात है हम झूठे प्रचार को देखते हैं अपने सामने की असलियत को नहीं , अन्यथा किसी नेता अभिनेता को मसीहा नहीं बनाते। इन सब को खुद अपने लिए सब पाना है आपको देना कुछ भी नहीं। राजसी शान से रहते सादगी की बातें करना सब से बड़ा फरेब है। हम शोर सुन सुन मानते हैं सब बदल गया है।  बदला निज़ाम है तौर तरीका नहीं , अंधे की रेवड़ियां पहले भी बंटती रही आज भी अंधा सत्ता की गद्दी पर बैठा वही कर रहा और दरबारी लोग भीख लेकर तालियां बजा रहे हैं। क्या भिखारी होना अच्छी बात है। 

 

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