फ़रवरी 09, 2017

POST : 600 अब अच्छे दिन आये हैं ( हास्य-व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया

अब अच्छे दिन आये हैं ( हास्य-व्यंग्य कविता )  डॉ लोक सेतिया

सुन लो  बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं
तिगनी का नाच नचाने को हमने , लंगड़े सभी बनाये हैं ।
 
हाल सब का इक जैसा होगा , काले भी गोरे बन जायेंगे
अपने रंग में रंगना सब को , अपनी पाउडर बिंदी लाये हैं ।

मुर्दों की अब बनेगी बस्ती , ऐसी योजना बनाई है हमने

होगी नहीं लाशों की गिनती , क़ातिल की होती रुसवाई है । 

अपने दल की टिकेट देकर , जितने अपराधी खड़े किये हैं
माननीय बन शरीफ कहलायें , इंकलाब क्या कैसा लाये हैं ।

सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं ।

सब इश्तिहार हमारे देखो तुम , झूठे हैं या सच्चे हैं हम

हम सब छप्पन इंच के हैं अब , बाकी तो अभी बच्चे हैं ।

मत देखो जो कुछ भी बुरा है , तुम गांधी जी के बंदर हो
जो सत्ता कहती सच वही है , सच की परिभाषा बनाये हैं ।

सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं ।
 

 

कोई टिप्पणी नहीं: