फ़रवरी 09, 2017

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अब अच्छे दिन आये हैं ( हास्य - व्यंग्य कविता )  डॉ लोक सेतिया

सुन लो बहरो , देख लो अंधो ,  अच्छे दिन ले आये हैं
तिगनी का नाच नचाने को , हमने लंगड़े सभी बनाये हैं ।
 
रंग  सब का इक जैसा होगा , काले सब गोरे बन जाएंगे  
अपने रंग में रंगना सब को , अपना पाउडर बिंदी लाये हैं ।

मुर्दों की अब बनेगी बस्ती , ऐसी नई योजना इक बनाई है  

होगी नहीं लाशों की गिनती , क़ातिल की होती रुसवाई है । 

अपने दल की टिकेट देकर , जितने अपराधी खड़े किये हैं
माननीय बन शरीफ कहलायें , इंकलाब कुछ ऐसा लाये हैं ।

सुन लो बहरो , देखो लो  अंधो ,  अच्छे दिन ले आये हैं ।

सब इश्तिहार हमारे देखो तुम , झूठे हैं सब सच्चे हैं हम

हम सब छप्पन इंच वाले लोग  , बाकी तो अभी बच्चे हैं ।

मत देखो जो कुछ भी बुरा है , तुम गांधी जी के बंदर हो
जो सत्ता कहती सच वही है , सच की परिभाषा बनाये हैं ।

सुन लो बहरो , देखो लो  अंधो ,  अच्छे दिन ले आये हैं ।
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

...लँगड़े सभी बनाए हैं👍👍👌👌👌