इस दर्द की दवा क्या है ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
सुना था जब दर्द हद से बढ़ जाता है तो खुद ही दवा बन जाता है। यही सोच हम दर्द सहते रहे ख़ामोशी से कि ये दवा बन जाये और हमें चैन आये मगर अभी तलक वो हद नहीं आई। वो हद जल्दी आये ये सोचकर हम तो दर्द को बढ़ाने के जतन ही करते रहे। अपना दर्द लाइलाज है इतना तो जानते हैं खुद चारागर हैं , फिर भी ज़िंदा रहते उस हद को देखना चाहते हैं जब दर्द दवा हो जाता है। बिना दर्द जीना किसे कहते हैं कभी तो हम भी देखें , दर्द सहकर जीना मुश्किल तो नहीं फिर भी। मेरे प्रिय मित्र जवाहर ठक्कर ज़मीर जी की ग़ज़ल है :-" है कभी आसां कभी दुश्वार है ,
ज़िंदगी तेरा अजब आकार है। "
सोचते हैं आसां ज़िंदगी कैसी होती है , दर्द है बड़े काम की चीज़। फिल्मों में नाटकों में गायकी में दर्द बहुत काम आता है। निर्देशक कहता है चेहरे पर दर्द के भाव लाओ आवाज़ में दर्द की तड़प सुनाई देनी चाहिए। लोग दर्द बेच बेच करोड़पति बन गये हैं , कुछ लोग इसी दर्द से मर गये कि लखपति होकर भी पति नहीं बन पाये। लोग सोचते हैं क्या आज़ाद पंछी हैं न घर की फ़िक्र न बाहर की चिंता। शादीशुदा का दर्द कुंवारा कैसे समझे और कुंवारे कुंवारी की हालत शादीशुदा कभी नहीं समझ सकते। सब को अपना दर्द सालता है , पराया दर्द कौन समझता है दुनिया में। जिनको शादी कर लगता मुसीबत मोल ली उनको दो दिन बिना पति-पत्नी रहना पड़े तो बेचैन हो जाते हैं। मिठाई खाना भी पसंद और मधुमेह रोग से भी बचना कुछ ऐसी सिथ्ति है। सरदर्द खुद लिया और दवा औरों से पूछते हैं। डॉक्टर मानते हैं दर्द से बड़ा कोई रोग नहीं , जब तक दर्द नहीं होता कोई डॉक्टर को नहीं पूछता। तभी वो सब बाकी दवाओं से ज़्यादा दर्द निवारक दवायें लिखते हैं। दर्द की दवा खाते खाते लोग गुर्दे खराब कर लेते हैं , कोई कैसे बताये दर्द किधर होता है , कभी उधर कभी इधर होता है। इक दर्द और होता है इलाज के खर्च का दर्द जो पहले के दर्द से अधिक दर्द देता है। शरीर का दर्द घटता है मानसिक दर्द बढ़ जाता है।
लोगों को जाने क्या मज़ा मिलता है किसी को दर्द देकर। परायों का दर्द सह लेते हैं अपने जो दर्द देते वो असहनीय होता है। मुहब्बत का दर्द सब से बड़ा है , हे री मैं तो प्रेम दीवानी मेरा दर्द न जाने कोय। कहते ये भी हैं दर्द का रिश्ता ही सब से गहरा होता है , जिसने दर्द झेला वही समझता दूसरे का दर्द क्या है। जन्म का दर्द बच्चा भूल जाता मगर मां को याद रहता किस बच्चे को जन्म देते कितना दर्द झेला था। ये शायर लोग भी अजीब हैं ज़माने भर का दर्द अपने जिगर में लिये फिरते हैं। चलो इक शायर का शेर भी याद आ गया :-
रंग जब आसपास होते हैं ,
रूह तक कैनवास होते हैं।
खून दे दे के भरना पड़ता है ,
दर्द खाली गलास होते हैं।
सैकड़ों में बस एक दो शायर ,
गहरी नदियों की प्यास होते हैं।
इश्क़ के मरीज़ की बात ऐसी है , दर्द बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की। मुहब्बत का फ़साना यही है , नाकाम इश्क़ ही इतिहास बनाता है। मुहब्बत कामयाब हो जाये तो हादिसा कहलाती है , शादी मुहब्बत को बचने कहां देती है। आम आदमी का दर्द छोटा और बड़े लोगों के दर्द बड़े होते हैं। जैसे कुछ बड़ी बड़ी बिमारियां अमीरों के लिये आरक्षित हैं उसी तरह सत्ता जाने का दर्द जीने देता न मौत ही आती है। कुर्सी से बिछुड़ने का वियोग राजनेता ही जानते हैं , सब होता तब भी सब निस्सार लगता है। राजनीति में वोटर जो दर्द देता है उसकी शिकायत भी करना अलोकतांत्रिक है , जनता का फैसला मंज़ूर है कहना मज़बूरी है। जीत कर बहुमत जुटाने की पीड़ा और हारने पर खाली तिजोरी का दर्द दोनों सहने होते हैं। जो लोग हरदम मुस्कुराते हैं कहते हैं हज़ारों ग़म छुपाते हैं।
हम से मत पूछना क्यों दर्द भरे नग्में गुनगुनाते हैं। आज तक जितना भी साहित्य रचा गया है दर्द को समझ कर झेलकर ही लिखा गया है। सृजन की पीड़ा प्रसव पीड़ा की ही तरह होती है। दर्द मधुर स्वर होता है , हैं सब से मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं। दर्द दिल में होता है लोग गुनगुनाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें