अब अच्छे दिन आये हैं ( हास्य-व्यंग्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैंतिगनी का नाच नचाने को हमने , लंगड़े सभी बनाये हैं ।
हाल सब का इक जैसा होगा , काले भी गोरे बन जायेंगे
अपने रंग में रंगना सब को , अपनी पाउडर बिंदी लाये हैं ।
मुर्दों की अब बनेगी बस्ती , ऐसी योजना बनाई है हमने
होगी नहीं लाशों की गिनती , क़ातिल की होती रुसवाई है ।
अपने दल की टिकेट देकर , जितने अपराधी खड़े किये हैं
माननीय बन शरीफ कहलायें , इंकलाब क्या कैसा लाये हैं ।
सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं ।
सब इश्तिहार हमारे देखो तुम , झूठे हैं या सच्चे हैं हम
हम सब छप्पन इंच के हैं अब , बाकी तो अभी बच्चे हैं ।
मत देखो जो कुछ भी बुरा है , तुम गांधी जी के बंदर हो
जो सत्ता कहती सच वही है , सच की परिभाषा बनाये हैं ।
सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं ।
अपने रंग में रंगना सब को , अपनी पाउडर बिंदी लाये हैं ।
मुर्दों की अब बनेगी बस्ती , ऐसी योजना बनाई है हमने
होगी नहीं लाशों की गिनती , क़ातिल की होती रुसवाई है ।
अपने दल की टिकेट देकर , जितने अपराधी खड़े किये हैं
माननीय बन शरीफ कहलायें , इंकलाब क्या कैसा लाये हैं ।
सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं ।
सब इश्तिहार हमारे देखो तुम , झूठे हैं या सच्चे हैं हम
हम सब छप्पन इंच के हैं अब , बाकी तो अभी बच्चे हैं ।
मत देखो जो कुछ भी बुरा है , तुम गांधी जी के बंदर हो
जो सत्ता कहती सच वही है , सच की परिभाषा बनाये हैं ।
सुन लो बहरो , देखो सारे अंधो , हम अच्छे दिन लाये हैं ।
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