गधों का अखिल भारतीय सम्मेलन ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
सभी गधे ख़ुशी से झूम रहे हैं गा रहे हैं , अपना राग सुना रहे हैं। भाई हम लिखने वाले तो हमेशा से समझा रहे हैं , हर साल पहली अप्रैल मना रहे हैं। खुद को गधा कहला रहे हैं , गधों की शान बढ़ा रहे हैं। मगर हम लेखकों की बात सभी हंसी में उड़ाते रहे , हमें गधा समझते और उल्लू बनाते रहे। जब प्रधानमंत्री जी ने गदहों का गुणगान समझाया और उनको अपना आदर्श बताया तब सब को हर गधा याद आया। बस इसी बात से देश क्या विदेश तक का हर गधा इतराया इसलिये उनको सम्मानित करने को है अखिल भारतीय गधा सम्मेलन दिल्ली में बुलाया। भाई मुझको है राजधानी जाना , आप भी गधे हैं चले आना मत शर्माना। गधों की महिमा का कोई आर-पार नहीं है , गधा न हो जिस जगह कोई घर गली गांव शहर कोई चैनेल कोई अख़बार नहीं है। इक महान हास्य रस के कवि कहते हैं लोकतंत्र गधों का शासन है , घोड़ों को मिलती नहीं है घास और गधे खाते हैं चव्वनप्राश। राजनीति ने गधों से बहुत सबक पहले भी सीखे हैं , गधे सा रेंकना दुलत्ती झाड़ना और सब मिल एक सुर में गाना , अपने को जनसेवक बताना , कभी किसी गधे को बाप तो कभी बाप को भी गधा बनाना। सत्ता सुख मिलता है इसी कला से , कोई आदमी जिये या मरे अपनी बला से। इस देश का वोटर समझदार कहलाता है मगर वोट देने के बाद धोबी का गधा बन जाता है , न इधर का न उधर का रहता है , हर बार पछताता है।कभी कभी हमारे देश में प्रशासनिक निर्णय देख लगता है इन्हें करने वाले ज़रूर गधे होंगे , कई बार दिलचस्प बात होती है जब कोई मंत्री अपने सचिव से पूछता है इस फाइल में लिखा ये फैसला किस गधे ने लिखा था। और सचिव आदरपूर्वक जवाब देता है श्रीमान आपने ही किया था ये महान कार्य। दफ्तर का चपरासी क्लर्क को क्लर्क बड़े बाबू को बड़े बाबू अधिकारी को आम तौर पर गधा ही समझते हैं। जब प्रधानमंत्री जी देश को बता रहे हैं कि वो दिन रात बिना आराम किये आपके काम किये जा रहे हैं तब उनको पता नहीं शायद वो हम देशवासियों पर कितनी बड़ी तोहमत लगा रहे हैं। क्या जनता को बेरहम ज़ालिम बता रहे हैं , अपराधी ठहरा रहे हैं। हम यूं ही नहीं कुछ कहते आपको देश के नियम कायदे कानून बता रहे हैं।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की इक पुरानी अधिसूचना की याद दिला रहे हैं। जिस में गधों के लिये लंच ब्रेक , ड्रिंक ब्रेक , काम के आठ घंटों का नियम , छुट्टी का नियम ही नहीं , दिन में 4 5 किलोमीटर से अधिक नहीं चलाना , सूरज निकलने से पहले और डूबने के बाद काम न लेने की सीमा , आंधी बरसात और उमस भरे मौसम में विश्राम , यहां तक कि प्रसूति के अवकाश का भी प्रावधान है। गधों को अब उनके मौलिक अधिकारों की जानकारी मिलनी ही चाहिए। ये सब उनकी भाषा में उनको बताया जाना ज़रूरी है। आम नागरिक को भले सरकार जीने के अधिकार नहीं दे सकती ,गधों को न्याय मिलना ज़रूरी हो गया है , जब चुनाव में गधों का शोर है। गधे वोट डाल नहीं सकते दिलवा तो सकते हैं , अगली सरकार गधों के हित का ध्यान रखने वाली हो तो बुरा क्या है।
हास्य अभिनेता जानीवाकर बड़े दूरदर्शी थे , उन्होंने बहुत पहले अपने गधे को गधों का लीडर घोषित कर बताया था। मेरा गधा गधों का लीडर कहता है कि दिल्ली जाकर सब मांगे अपनी पूरी करवा कर आऊंगा , नहीं तो घास न खाऊंगा। मगर मुंबई और दिल्ली का रास्ता बहुत लंबा है , उनका गधा अभी तक पहुंचा नहीं। शायद उसी ने राह में अपनी बात बता दी हो प्रधानमंत्री जी को , हो सकता है अब सम्मेलन में वही अध्यक्ष घोषित हो जाये। मुश्किल बहुत है इतने कड़े नियम 4 5 किलोमीटर दिन भर में चलना , ड्रिंक और लंच ब्रेक और सब के साथ राह पर लाल बत्तियां , बिना प्रयोजक कैसे बात बनेगी। क्या इस चर्चा से कोई प्रयोजक मिलेगा , जो सब बेचना चाहता देसी गधे को अम्बेसडर बनाकर। गधों को दिल्ली पुलिस अनुमति देगी विरोध प्रदर्शन की या धारा 1 4 4 लगा देगी कौन जानता है। नियम है रस्सी बांधने से पहले कपड़ा या कुशन बांधना होगा , इसका भी महत्व है सरकारी काम काज कछुआ चाल से होते हैं रस्सी में ढीलापन चाहिए मनमानी करने को। सवाल बाक़ी छोड़ दिया गया है कि गधों के लिए घास का प्रबंध कौन करेगा। गधों के मालिक पर छोड़ना उचित नहीं है , सरकार को चारा घोटाले की जानकारी का उपयोग कर इसका हल भी खोजना चाहिए था।
इस कथा का अभी अंत नहीं हुआ है , थोड़ा विराम लेते हैं।
1 टिप्पणी:
Ha ha ha...Achcha...Pratikatmak vyangya👌👍
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