नवंबर 28, 2016

कुर्सी का मोहजाल ( हस-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

       कुर्सी का मोहजाल  ( हस-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

      अजब नज़ारा है दो कुर्सियां आपस में सौतन का रिश्ता भूलकर बदलना चाहती हैं पिया रंग रंगना चाहती हैं झूठ को सच बनाना चाहती हैं । मैंने छोड़ दिया सभी कुछ कुर्सी से दिल लगा बैठा दूरी सहन नहीं होती ।  ख़ाली है जो मेरी मलकियत हैं बाप की जायदाद समझता हूं सत्ता की निशानी है दूसरी पर कोई बैठा है मगर उसका अधिकार नहीं है । सत्ता में कोई किसी का दोस्त नहीं किसी को किसी पर ऐतबार नहीं है लोकतांत्रिक शासन में उम्र भर का करार नहीं है झूठा राजनीति का इश्तिहार है सच्चा किसी का किरदार नहीं है ।  वो हर किसी को बेहद सुंदर लगती है , सब उसको अपना बनाना चाहते हैं । मेरी हो जाये सभी चाहते हैं , सत्ता रूपी सुंदरी के मोहजाल से भला कोई बच सकता है । राजनीति का महल उसी की खातिर तो बना है , हर राजनेता उसका वरण करना चाहता है । वो सदा ही नवयौवना बनी रहती है , सदा सुहागिन का वरदान भी उसे मिला हुआ है । कभी विधवा नहीं हो सकती और बार बार विवाह रचाने के बाद भी रहती कुंवारी ही है । उस को देख सभी ठंडी आहें भरते हैं , हासिल करने को उतावले रहते हैं । सब सोचते हैं कि हम ही उस के योग्य वर हैं । जानते हैं सभी कि सत्ता रूपी सुंदरी कभी किसी एक की बन कर नहीं रहती फिर भी अनजान बन जाते हैं । सभी मानते हैं कि हमीं उसके सच्चे आशिक़ हैं दिलोजान से प्यार करते हैं । और यकीन करते हैं कि उस के दिल में हमारी ही छवि बसी हुई है , ये किसी को भी मालूम नहीं कि इस सुंदरी के सीने में दिल नाम की चीज़ होती ही नहीं । ये इक पत्थर की मूरत है जो लगती वास्तविक है , जबकि है इक छलावा । बस मैं भी उस की चाह में राजनीति की दलदल में खिंचा चला आया था । यहां आने के बाद वापसी को कोई राह बचती ही नहीं , निकलना चाहो भी तो और फंसते चले जाते हैं । किसी जानलेवा रोग की तरह है जो मरने तक जाता नहीं है ।

      मैं आपको अपनी प्रेम कहानी सुनाना चाहता हूं ताकि आप मुझे गलत न समझें । आज सब सच सच बताना है इसलिये कोई कसम नहीं खाऊंगा , उम्र भर शपथ लेकर उसको भुलाता रहा और कसम खाकर झूठ बोलने वालों में शामिल रहा हूं । हम नेताओं का कुर्सी की खातिर ऐसी कसमें खाना इक रिवायत ही है , इसका कोई महत्व असल में नहीं होता । आज सच बोलकर अपने दिल का बोझ हल्का करना है , झूठ बोल बोल खुद अपनी ही नज़र में पहले ही बहुत गिर चुका हूं । जो अधिक शिक्षित लोग होते हैं वो अपनी जीवनी लिख पुस्तक छपवा लेते हैं , मैं अधिक पढ़ा लिखा नहीं इसलिये कहानी सुना रहा हूं । शायद मेरी कहानी किसी को अच्छा सबक सिखा सके हालांकि खुद मैंने औरों के लाख समझाने पर भी कोई सबक कभी नहीं सीखा है । गुरु जी ने पहला पाठ यही तो पढ़ाया था कि हर चमकती वस्तु सोना नहीं होती , फिर भी चमक देख आगे बढ़ता गया दलगत राजनीति में । दूसरा सबक भी वही था कि सुंदरता रंग रूप एक जाल है धोखा है इस से बच कर रहना , जो इस जाल में फंसता वो कहीं का नहीं रहता है । उन शब्दों का अर्थ समझ किसी हसीना के इश्क़ में तो नहीं फंसा , मगर उनके शब्दों का भावार्थ नहीं समझ पाया और इस बेवफ़ा की चाहत में उलझ गया और उसी से मेरा जो भी हाल बदहाल हुआ आपके सामने है ।

                   कल तलक मैं मंत्री था , आज आरोपी हूं भ्र्ष्टाचार का और घोटालों का । आप कल तक मेरी जय-जयकार करने वाले आज मुझे गलियां दे रहे हो । जब तक कुर्सी पर था सभी जान पहचान वालों को हर प्रकार से सहयोग देता रहा , आज मेरी बुराई करने वालों में वो भी शामिल हैं जिनकी खातिर मैं बुरा बना । मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं ये कहावत सभी पर लागू होती है सिर्फ नेताओं पर ही नहीं । वो क्या था , परिवारवाद कहें , जातिवाद कहें , धनबल या फिर बाहुबल या कोई दूसरा नाम दे लें गंदी राजनीति का , जिस ने मुझे चुनाव जिताया और मैं सत्ता पर आसीन हो गया । मंत्री पद की शपथ लेते कसम खाई थी निष्पक्ष रहने , सब से न्याय करने और देश के संविधान की रक्षा की । मगर जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई शासक बनने की , मैं उस सत्ता रूपी सुंदरी के जाल में फंस चुका था । जो सोचता था कि मैं जो मर्ज़ी करने को स्वतंत्र हूंगा वो इक भ्र्म साबित हुआ , मुझे वही करना पड़ता था जो सत्ता सुंदरी चाहती थी । कहने को मैं शासक था मगर असल में इक गुलाम था उस व्यवस्था का जिस ने मुझे कुर्सी दी थी । अपनी सोच अपनी नैतिकता अपने आदर्श सब का त्याग करना पड़ा था कुर्सी पर बने रहने को । अपनों के अनुचित काम करने को विवश और आम जनता के उचित काम भी करना कठिन था , प्रशासन और लालफीताशाही के कारण । बस सत्ता सुंदरी का आलिंगन मुझे जकड़े हुए था ।

            हम सभी राजनेता उसी सत्ता सुंदरी के पागल प्रेमी हैं , उसकी खातिर इस दलदल में घुस चुके हैं । आशिक प्रेमिका को पाने को किसी भी हद तक जा सकते हैं जानते हैं आप भी । अपने पुराने युग की , हीर-रांझा , लैला-मजनू , रोमियो-जूलियट की प्रेम कथायें सुनी होंगी , इस युग की सब से महान कहानी यही है जो केवल मेरी अकेले की नहीं हर नेता की है । अफसोस इसका है कि हमारी प्रेमिका की वफ़ा सत्ता बदलते बदल जाती है , उसकी वफ़ा पुराने को छोड़ नये के प्रति हो जाती  है । बेवफा की याद सताती है पल पल क्या करें बताओ । क्या से क्या हो गया , बेवफ़ा तेरे प्यार में । 
 
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1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

अच्छा आलेख...राजनीति कुर्सी और राजनीतिज्ञों को बात करता