अमीर लोगों के बुरे दिन ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया
लाला जी के पास पांच सौ के और हज़ार रुपये के नोट हैं और रुलदू की जेब में सौ सौ रुपये वाले नोट हैं। लाला जी के पैसे आज किसी काम के नहीं और रुलदू के पैसे कीमती लगने लगे हैं। शायद इसी को समाजवाद कहते हों। जो लोग इतराते थे कल तक बताते थे भाई इतने भी पैसे घर में नहीं हों तो शान ही क्या , उनकी तिजोरी भरी हुई भी लगता है उदास है। अभी भी नहीं समझे क्या समझाते रहे महापुरुष कि जितना ज़रूरत उतना ही धन पास रखो अधिक जमा करोगे तो बेकार परेशान होगे। इक सरकारी कर्मचारी खुश है , उसने अभी अभी उम्र भर की काली कमाई बेटी की शादी में खर्च कर दी , शानदार ढंग से विवाह का आयोजन और लेन देन पर खर्चा कर के। अब भले बेटी की ससुराल वाले चिंता करें कि इतनी नकद राशि कैसे दिखायें कि कहां से आई है। दहेज लेना देना अपराध जो है। चलो ये तो छोटी सी बात है , मुश्किल तो उनकी है जिन्होंने करोड़ों रुपये घर में छुपा रखे हैं जनता से रिश्वत ले लेकर या सरकारी योजनाओं से लूट लूट कर। मोदी जी आज वास्तव में कमाल कर दिया है आपने पांच सौ और हज़ार के नोटों को बंद कर के। अब आज लगता है सभी इक समान हैं , कोई अमीर नहीं न कोई गरीब। दो दिन को ही सही सभी को छोटे मूल्य वाले नोट क्या सिक्के तक की कीमत समझ आ जायेगी , कल तक जिनकी औकात कोई समझता ही नहीं था। तभी कहते हैं सभी के दिन फिरते हैं। अच्छे दिन आने वाले हैं। लोग भूल ही गये थे उस नारे को , अब लगता है सच कहीं वो सपना साकार ही न होने वाला हो , अन्यथा अभी तलक गरीब को कोई बदलाव दिखाई दिया ही नहीं था। जैसे छोटे नोटों की कदर समझ आई है आज लोगों को शायद छोटे आदमी की भी कीमत सरकार और प्रशासन को समझ आ जाये। कल तक पचास रुपये चपरासी भी नहीं लेता था , भिखारी समझा है क्या , साहब को फाईल पहुंचानी है तो हरी पत्ती का पांच सौ वाला नोट जेब से निकालो। कहते हो लो चाय पी लेना पचास रुपये दिखला कर। अब दस दस वाला भी लेने को राज़ी होगा देखना।दो नंबर वालों की खबर ली ये तो ठीक है मगर इस में गेहूं साथ घुन भी पिस जायेगा , उसका क्या। महिलायें कैसे कैसे बचत करती हैं घर खर्च से थोड़े थोड़े पैसे जमा कर पति से छिपा रखती हैं , ताकि कभी मुसीबत में काम आ सके। उनकी पोल खुल जायेगी जो आज सुबह ही पर्स खाली की बात कहने के बाद अब बतायेंगी कितने हज़ार बिस्तर के नीचे छिपा रखे हैं , कल से बदलवाने हैं बैंक से। किसी महिला पर इस से अधिक अत्याचार कुछ नहीं हो सकता कि उनको अपना राज़ पति को बताना पड़े। कोई पति भले कुछ कह नहीं सके मगर सोचेगा अवश्य , कि मैं और से कर्ज़ लेता रहा आज तक ब्याज पर और साहूकार मेरे घर पर ही है। मगर अच्छा है क्योंकि इस साहूकार का ब्याज बाहर वाले से अधिक ही होता।
खबरें आती रही हैं करोड़ों रुपये सरकारी छोटे छोटे अधिकारी से बरामद होने की , आज कितने ऐसे लोग बेचैन होकर भी चैन से सोयेंगे क्यों अब न चोरी का डर न किसी छापे का। शायद किसी ने आज किसी से घूस ली हो शाम को तो आज उसको खुद फोन कर सकता है भाई अपनी अमानत वापस ले जाओ। मेरा ज़मीर जाग गया है और मुझ से ऊपर वालों का भी , आपका काम उचित है तो रिश्वत किस बात की। इक बात तय है गरीब जनता के अच्छे दिन बेशक न भी आयें अमीरों के बुरे दिन आने वाले हैं। कल से इक नया टीवी सीरियल शनिदेव पर भी ऐसा ही दावा करता है।
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