अनुभव फिल्म से फ़िल्मी यादों का सफर ( अपनी बात )
डॉ लोक सेतिया
संजीव कुमार और तनुजा की श्वेतश्याम फिल्म थी वो। ऐसी फ़िल्में कम हैं जो मुझे न केवल पसंद आईं बल्कि जिनकी कहानी संगीत और डायलॉग तक मुझे याद रहे इसलिए कि उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा जीवन में सार्थक सोच विकसित होने के कारण। सच्चा प्यार क्या है जब मैंने इस पर आलेख लिखा तब उस में नायिका का ये डायलॉग शामिल था , " हां हम दोनों कॉलेज के समय से इक दूजे को चाहते रहे हैं। तब हमें मिलने को कभी दस कभी बीस मिंट मिला करते थे। अगर उस सारे वक़्त को जोड़ें तो मुश्किल से हम सात घंटे भर साथ रहे होंगे , लेकिन उन सात घंटों में मुझे जितना प्यार उससे मिला आपसे शादी के सात सालों में भी नहीं मिला है और हां उसने मुझे कभी छुआ तक नहीं। " उस फिल्म का इक गीत मन्नाडे जी आवाज़ में भी ऐसा बहुत कुछ समझाता है , फिल्म में वो गीत रिकॉर्ड प्लेयर पर बजता है सुन कर देखते हैं।
फिर कहीं कोई फूल खिला चाहत न कहो उसको , फिर कहीं कोई दीप जला मंदिर न कहो उसको।
मगर आज इस फिल्म की याद किसी और कारण से आई है। संजीव कुमार इक अख़बार का संपादक है जो समझता है कि समय को बर्बाद नहीं करना चाहिए , कुछ इस तरह से समझाता है इक डायलॉग उसी फिल्म का ये भी ध्यान से पढ़िए। नायक कहता है , हम रोज़ दिन में आठ घंटे सोते हैं जिसका मतलब है कि अगर हम साठ साल ज़िंदा रहे तो उसके बीस साल का समय हमने केवल सोकर बिता दिया इसी तरह दो तीन साल हमने खाना खाने में गुज़र दिये पांच सात साल नहाने में लगा दिए और इस तरह वास्तविक काम करने को हमने कितना समय दिया ये हिसाब ही नहीं लगाया कभी।
ये बात मुझे मोदी जी की बात से याद आई कि उन्होंने अभी तक एक दिन भी अवकाश नहीं लिया है , मगर जब जानने की कोशिश की गई तो पता चला देश के पीएम को अवकाश लेने का कोई प्रावधान ही नहीं है और उनसे पहले भी किसी ने भी छुट्टी नहीं ली है। मगर ऐसा भी नहीं कि चौबीस घंटे काम करते रहे हैं। खुद अपने लिए ऐसा प्रचार भी उनको छोड़ किसी ने नहीं किया क्योंकि उनको मालूम था ये उनका कर्तव्य है कोई एहसान नहीं जैसा मोदी जी समझाना चाहते हैं। फिर भी जब उन्होंने हिसाब की किताब खोली है तो पल पल का हिसाब रखते भी होंगे। ऐसे में आप उनका हिसाब जांचने लगे तब पता चलेगा जनाब कितने साल इधर उधर देश विदेश घूमते रहे , दिन में कितने घंटे सजने संवरने पर लगाए और अपनी छवि बनाने को विज्ञापन फोटोशूट करने में खर्च किये , कितने हज़ारों दिन अपने दल को चुनाव जितवाने को भाषण देने पर लगाए और अपने खुद के धार्मिक आयोजन करने धार्मिक स्तलों पर माथा टेकने पूजा अर्चना करने पर व्यतीत किये कितने समय अपने दल को चंदा देने वाले कारोबारी दोस्तों के संग बिताये कितने दिन मनोरंजन करते रहे ढोल नगाड़े बजाते रहे। अगर इन सब को साथ जोड़ा जाये तब पता चलेगा देश और जनता के काम करने को अपने घर या दफ्तर में कितने घंटे काम किया है। इसी के साथ ये भी हिसाब जोड़ना होगा कि उनके ऐसे तमाम रहन सहन आने जाने और ठाठ बाठ पर देश का कितना धन खर्च किया गया तब पता चलेगा देश की चौकीदारी करने वाले पर हर मिंट कितने करोड़ खर्च हुआ है। बदले में किसे क्या मिला है। अनुभव।
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