दिसंबर 27, 2018

POST : 988 चमकती चीज़ सोशल मीडिया सोना नहीं ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

चमकती चीज़ सोशल मीडिया सोना नहीं ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

           कोई विचार कोई सुझाव कोई जानकारी कोई कविता कोई कहानी आपको मिल गई और आपने  बिना उसको देखे समझे तमाम लोगों को आगे भेज भी दिया और सोचा कि ज्ञान का भंडार आपके पास है। ज्ञान हासिल करने की ललक होनी चाहिए जो है नहीं। जाना समझा नहीं और मान लिया इसका अर्थ है अज्ञानता। कोई रोज़ फेसबुक से महान विचार लिखी फोटो डाउनलोड करता है सब को भेजने को खुद अर्थ समझना नहीं चाहता है। ग़ालिब दुष्यंत गांधी भगतसिंह क्या गीता कुरान की धर्म की बात करते हैं चिंतन नहीं किया मगर। कोई सवाल करता है उस धर्म का त्यौहार क्यों मनाते हो तो कोई उपदेशक बना फिरता है। आपको क्या करना है आपकी मर्ज़ी सब को अपनी लाठी से हांकने वाले कौन हैं जनाब। स्मार्ट फोन सुविधा है आपको उपयोग करना चाहिए मगर जब फोन आपको अपने अधीन कर लेता है तब आप इक रोगी बन जाते हैं। मुझे भी फोन पर अपनी बात कहनी पसंद है मगर जो मुझे अच्छी लगती है सहमत हूं और जिसको चाहता हूं औरों से सांझा करना थोपना नहीं चाहता किसी पर भी। 
 
            फेसबुक पर कई पोस्ट पढ़ी किसानों की क़र्ज़माफ़ी को अनुचित बताती हुई। मगर कोई उनसे पूछे क्या आप से कोई आपकी वस्तु आधे दाम ले आप चाहते हैं। जिस दिन आपको महनत की कीमत पता चलेगी तभी समझ आयेगा किसान मज़दूर को उसकी महनत का उचित दाम मिलता तो वो आपको सहायता करते न कि आपसे मांगते। ईमानदारी की बात कहना आसान है ईमानदार हैं तो सब को उनकी काबलियत और महनत का उचित मूल्य खुद दो। मगर आप वही हैं जो बड़े होटल में जिस वस्तु का दाम बीस गुणा ख़ुशी और शान से देते हैं छोटे दुकानदार या पटड़ी पर उसी पर मोल भाव करते हैं। मैं देखता हूं बीस लाख की गाड़ी पर लोग आते हैं और साफ सुथरे होटल ढाबे को छोड़ गंदगी के ढेर के पास बिकती बेहद सस्ती खाने पीने की चीज़ ले कर खाते हैं जो रोगी बना सकती है। आपके महंगे कपड़े आपको स्वास्थ्य नहीं रखते साफ और सफाई के माहौल में खाना आपको स्वस्थ रखता है। 
 
                   कल इक नेता का विडिओ अच्छा लगा जिसमें गरीबों की सहायता करना अमीरों का दायित्व बताया गया था। ईश्वर ने सब की खातिर सब बनाया है ये हमारी शोषण की व्यवस्था है जो किसी के पास बेतहाशा है और अधिकांश के पास ज़रूरत को भी नहीं है। अभी सात सौ करोड़ बेटी की शादी पर खर्च करने वाले ने किसी अख़बार को कहा कि मैं दान नहीं देता देश का धन बढ़ाता हूं। देश का है तो देश कल्याण पर खर्च करते , मगर नहीं उनको अधिक जमा करना है और किसी भी तरह से करना है। क्या आप जानते हैं उन्होंने कैसे इतना अंबार खड़ा किया है , ईमानदारी से कदापि नहीं। कुछ बातें याद दिलवाता हूं। शुरुआत ही बिना कानूनी अधिकार लाइसेंस के मोबाइल सेवा शुरू करने से की थी बाद में तब की सरकार को चंदा देकर अपने अपराध को क्षमा करवा लिया था किसे याद है। हर सरकार को रिश्वत देकर काम निकलवाना उनकी आदत है। भूल गये हैं हज़ारों एकड़ ज़मीन सेज के नाम पर तब की सरकार ने किसानों की भुमि अधिग्रहण कर उनको दे दी और शर्त थी तीन साल में उस जगह विकास निर्माण और उद्योग लगाकर रोज़गार देने की। मगर जब किया कुछ भी नहीं और अदालत ने ज़मीन उनसे लेकर वापस किसानों को देने का फैसला सुनाया तब भी सरकार ने उसका पालन नहीं किया। जब सरकारें ही गरीब और किसान मज़दूर विरोधी हैं तो सब को बराबर अधिकार हासिल कैसे हो सकते हैं। और हम तथाकथित समझदार ज्ञानी लोग देश और समाज की बातों पर विचलित होने की जगह उस पर उपहास करते हैं सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप्प पर। नेताओं को ऐसे मूर्ख लोग ही चाहिएं जो उनके अनुचित कार्यों पर भी हंस कर छोड़ देते हैं मगर अपने आस पास की बेमतलब की बातों पर दिन भर बहस किया करते हैं। सोशल मीडिया आपसी मेलजोल बढ़ाता तो सार्थक था मगर अब कोई किसी की बात समझना नहीं चाहता केवल अपनी कहना चाहता है ख़ुदपरस्ती की आदत बन गई है। काफी लोग जो लिखते हैं खुद ही पढ़ते हैं और खुश हो लेते हैं लाइक कमैंट्स देख कर उनकी बात से कोई बदलाव हो नहीं हो उनको मतलब नहीं रहता है। समाज को समझना है तो अपनी बात कहने के साथ बाकी क्या कहना चाहते हैं उसे सुनना समझना भी ज़रूरी है।  

 

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