दाग़ मिटाने का शर्तिया उपाय ( हास्य कविता ) डॉ लोक सेतिया
परेशान क्यों होते हैं जनाबबुरे नहीं होते सभी दाग़
आप जैसे भी हैं सच्चे हैं
आप पर लगे दाग़ अच्छे हैं।
आप से पहले भी आये लोग
हमने सभी के मिटाये दाग़
लोग कहते रहें उनको चोर
फैसला हमने किया कर गौर
झूठ अपराध का नहीं निशान
बस इसी से बढ़ गई थी शान
बरी जो हुआ वो नहीं गुनहगार
फिर से बन गई थी सरकार।
सुन जो आज इनकी भी बात
अदालत को नहीं भाया सबूत
आप मान लो नहीं ली घूस
हुई नहीं कभी ऐसी करतूत।
कल तलक यही कहते थे औरों को
घोटालों के हो गुनहगार
उन पर भी किसी अदालत ने अभी
दिया क्या कोई निर्णय सरकार।
चारा घोटाला हवाला घोटाला या
चाहे कोई भी हुआ घोटाला
नहीं साबित हुआ आज तक
किसी का अपराध सुनो रे लाला।
बस अदालत जब कहती नहीं हैं
काफी सबूत जुर्म होने के
समझो दिन ख़ुशी के हैं
अब नहीं आजकल दिन रोने के।
बड़े बड़े वकील छोटी से बड़ी
अदालत तक का लंबा सफर
डिटरजेंट बहुत मिल जाते
हैं हर किसी के दाग़ धोने के।
जनता बेशक कभी किसी को
आरोप मुक्त करती नहीं
सच ये है सज़ा किसी को
भी मिलती अभी तक नहीं।
बातें बहुत मगर तुम्हें कहना नहीं
कुछ सिवा शब्द तीन
अभी नहीं आया निर्णय
मुझे अदालत पर है पूरा यकीन।
सोचो अगर अभी तक जिन जिन
घोटालों में नहीं हुआ फैसला
क्या यही समझ लिया जाये
वो सब सच में नहीं हुआ।
जांच आयोग कितने खुद ही
बिठाये नेताओं ने बार बार
खोदा पहाड़ कितना निकाली
मरी चुहिया ही सरकार।
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