दिसंबर 05, 2025

POST : 2043 क़त्ल मर चुके लोगों का ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया

    क़त्ल मर चुके लोगों का ( हास - परिहास ) डॉ लोक सेतिया  

आपने देखा होगा राजनेता दिखावे को सफाई अभियान की शुरुआत सोशल मीडिया अख़बार टीवी चैनल पर दिखलाने को जब हाथ में झाड़ू पकड़े गंदगी को हटाते नज़र आते हैं तब उस जगह पहले बदबूदार गंदगी नहीं बल्कि ऐसा कूड़ा डाला जाता है प्रशासन द्वारा जो गंदगी नहीं होता है ।  हमारे देश की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में ये चलन आधुनिक नवयुग की देन है जिसे करने की ज़रूरत है उसका उपहास बना देना । कूड़ा सबसे अधिक व्यवस्था में ही जमा है जिस की कभी सफाई कोई नहीं करता है और जिन्होंने भी कभी पहले ऐसा करने की कोई कोशिश की थी उनकी दिखाई राह पर सबसे अधिक कांटे बिछाने का कार्य बाद में आने वाले लोगों ने किया है । नतीजा देश समाज दिखलाने को शानदार लगने लगा जबकि भीतर से खोखला और बेहद बदसूरत बनता गया है । किसी अधिकारी ने राजनीती से अपराधीकरण मिटने की कोशिश की तो तमाम लोगों ने अपराध की राजनीति की पटकथा लिखनी शुरू कर दी और अपराधी सभी को भाने लगे । राजनेता से प्रशासन तक सभी गरीबी मिटाने की जगह गरीबों को ही सताने लगे उनको ज़िंदगी और मौत का फासला समझाने लगे । देश की आज़ादी से नवनिर्माण की खातिर अपना जीवन समर्पित करने वालों को आधुनिक ख़ुदगर्ज़ लोग कटघरे में खड़ा कर उनके गुनाह गिनवाने लगे हैं खुद कुछ भी नहीं करना जानते हैं सभी कुछ मिटाना चाहते हैं । पचास साठ साल पहले मर चुके लोगों को फांसी पर चढ़ाने लगे हैं उनकी हर कुर्बानी को झुठलाने लगे हैं अपनी सूरत नहीं देखते शीशे के महल में रहते हैं पत्थर फैंक कर खुद को जो नहीं बन सकते बतलाने लगे हैं । 
 
जो ज़िंदा नहीं कब के मर चुके हैं उनके कर्मों का हिसाब कौन ले रहे हैं जिन्होंने खुद कभी कुछ समाज की खातिर नहीं किया , जबकि धर्म संस्कृति समझाती है कि मर चुके लोगों की बुराई कभी नहीं करते हैं । खुद अपनी लकीर खींचना कठिन लगता है इतिहास से औरों की लंबी लकीरों को छोटा नहीं करना चाहते उस को मिटाकर कुछ और बनाना चाहते हैं । धनवान उद्योगपति से शासक प्रशासक तक सभी मिलकर ऐसा भयानक दृश्य बना रहे हैं कि लोग जीना छोड़ मौत को गले लगा रहे है , कैसे ख़्वाब दिखलाये थे क्या मंज़र सामने आने लगे हैं ।  बड़े बड़े पदों पर आसीन लोगों के आपराधिक कारनामे शासन वाले छुपाने लगे हैं उनको त्यागपत्र से ही राहत मिल जाती है जबकि ऐसे अपराध कोई और करे तो खूब शोर चोर चोर का मचाने लगे हैं । चोर शोर मचाने लगे हैं  , दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल याद आई है  : - 
 

कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं  

गाते - गाते लोग चिल्लाने लगे हैं ।  

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो 

ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं । 

वो सलीबों के करीब आए तो हमको 

कायदे - कानून समझाने लगे हैं । 

एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है 

जिसमें तहख़ानों से तहख़ाने लगे हैं । 

मछलियों में ख़लबली है , अब सफ़ीने 

उस तरफ जाने से कतराने लगे हैं ।

मैलवी से डाँट खाकर अहले मक़तब 

फिर उसी आयत को दोहराने लगे हैं । 

अब नयी तहज़ीब के पेशे - नज़र हम 

आदमी को भूनकर खाने लगे हैं ।   

 

चोर मचाए शोर… 😒🤦🏻‍♂️, लेकिन देश और बिहार से धोखाधड़ी के करत बा, ई जनता  सब बुझेला!, #NDA4Bihar 

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