सितंबर 26, 2021

स्वर्ग-नर्क मोक्ष और पितृपक्ष ( सत्य की खोज ) डॉ लोक सेतिया

  स्वर्ग-नर्क मोक्ष और पितृपक्ष ( सत्य की खोज ) डॉ लोक सेतिया 

  उलझन क्या है जीवन भर अगले पिछले जन्म की चिंता रहती है , ज़िंदगी यही है जियो अच्छे इंसान बनकर खुलकर कभी समझते ही नहीं। जिन रिश्तों को ज़िंदा रहते निभाना मुसीबत लगता रहा किसलिए अगले जन्म उनकी चाह रखना। सच कहूं तो जिनसे मिलकर खुश नहीं होते जिन्होंने चैन सकून छीन लिया उनसे फिर किसी जन्म में मुलाकात नहीं हो तो अच्छा। अपने स्वार्थ अपनी ज़रूरत अपने अहंकार के अधीन होकर काम समाज को नर्कीय बनाने वाले करते रहे मरने के बाद स्वर्ग मोक्ष या फिर से जन्म लेकर जो नहीं मिला उसको पाने अथवा जो किया नहीं उसको करने की ख़्वाहिश लेकर मरना फज़ूल है। पितृपक्ष को लेकर क्या क्या नहीं सुनते कहते समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं। इक मंदिर बना हुआ है जहां मानते हैं महाभारत के बाद अपने भाई बंधुओं को युद्ध में मारने के बाद उनकी आत्माओं की मुक्ति का अनुष्ठान किया गया। राज की लालसा या कहने को धर्म की स्थापना की खातिर जिनको मौत के घाट उतारा उनके लिए ये भावना कहीं खुद अपने भीतर के बोझ और समाज में अपनी छवि को धूमिल होने से बचने का ढंग था। सबको अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल मिलना विधि का विधान है तो कोई बदल नहीं सकता।
 
बाप दादा की मौत के बाद श्रद्धांजलि सभा में उनकी आत्मा के परमात्मा में विलीन होने को शब्द कीर्तन आदि कर लिया तब भी संशय क्यों उनकी आत्मा के भटकते रहने का। जब किसी कर्मकांड पर भरोसा नहीं तब उसको परंपरा निभाने और लोकलाज दिखावे को करने का औचितिय क्या है। सबसे अजीब बात ये है कि ऐसा करवाने का उपदेश देने वाले गीता जैसे धर्मग्रंथ को समझाने वाले अपनी मौत के बाद समाधि स्थल आश्रम मठ बनवाने की इच्छा जताते हैं। जीवन भर धर्म उपदेश पूजा अर्चना समाज को कल्याण का मार्ग दिखाते रहे जो उनको अपनी आत्मा की मुक्ति और परमात्मा से मिलान का भरोसा होना चाहिए , फिर जिस संसार को मिथ्या बताते रहे उसी में अपनी पहचान की चिंता अज्ञानता होगी। लेकिन जब कोई धार्मिक कर्मकांड पूजा अर्चना जैसे कार्य धन दौलत दान दक्षणा पाने को करता है तब उसको ईश्वर की भक्ति उपासना नहीं बल्कि वेतन लेकर काम करने जैसा समझा जा सकता है। तभी ऐसे साधु संत आपको अच्छे कर्म सच्चाई भलाई की राह चलने से जीवन सार्थक करने की शिक्षा को छोड़ वो सब करने की बात कहते हैं जिन से खुद उनका भला हो। 
 
चिंतन करने पर दो बातें समझ आती हैं , अगर स्वर्ग मोक्ष पाना चाहते हैं तो अपने जीवन में भलाई अच्छाई सच्चाई की राह चलें झूठ छल कपट का आचरण छोड़ कर। अन्यथा ऐसा संकल्प अपने अंतर्मन में करें कि अगर फिर से कोई जन्म मिले तो जो कर नहीं पाये उसको करना है। अभी तो स्वर्ग नर्क मोक्ष की  व्यर्थ की चिंता में अपना जीवन बर्बाद नहीं करें।  

 

2 टिप्‍पणियां:

Sanjaytanha ने कहा…

गीता उपदेश देने वाले अपना मठ बनाने की अभिलाषा....👌👍

Sanjaytanha ने कहा…

👍👌