जनवरी 04, 2019

POST : 994 धंधा भी चंगा हो न कभी मंदा हो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

    धंधा भी चंगा हो न कभी मंदा हो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया  

   उनमें खूबी है वक़्त बदलते ही पुराना छोड़ नया धंधा चालू कर लेते हैं। बता रहे आजकल देशभक्ति में फायदा ही फायदा है जो देशभक्ति को अपने नाम पेटेंट करवा चुके उनकी डीलरशिप मिल जाये तो बंदा पलक झपकते ही ऊंचाई पर पहुंच जाता है। जिनको गली का कुत्ता भी नहीं पहचानता था देशभक्ति के धंधे में कदम रखते ही बड़े बड़े अधिकारी तक उनको सलाम करने जाते हैं। उनका फोन आया हुआ तो अफ़्सर कुर्सी छोड़ खड़े हो कर जी जनाब कहते हैं जी ठीक है जैसा आदेश आपका। धंधे का कोई धर्म नहीं होता ऐसा इधर इक फ़िल्मी अभिनेता डॉयलॉग बोलता है तो लोग तालियां पीटते हैं। धंधा जो भी धंधा होना चाहिए बिना धंधे का नहीं कोई बंदा होना चाहिए। आज धंधे कितने और कैसे हैं हुआ करते थे इस विषय का अध्यन करने वाला जो भी करता है सफल होता है। टीवी पर देख सकते हैं देश को बेच खाने वाले और हर सौदे में दलाली खाने वाले देशभक्ति पर चर्चा किया करते हैं। पहला सबक यही है जो भी धंधा करो अपने ईमान को कहीं रख दो दबाकर ताकि वो कभी जागकर आपको परेशान नहीं कर दे। देशभक्ति का एकाधिकार जिनके नाम दर्ज है उन पर कोई शक भी करता है तो देश का दुश्मन है। पहले कुछ पुराने धंधों की बात करते हैं ताकि समझा जा सके कि पिछले सालों में कितने धंधे बाज़ार से बाहर हो गये हैं और कितने नये धंधे आये और फल फूल रहे हैं। 
 
      सूदखोरी का धंधा हुआ करता था सबसे पुराना , कहते तो ये भी हैं कि दुनिया के सबसे पुराने धंधे दो हैं , एक राजनीति और दूसरा जिस्मफ़रोशी का वैश्यावृति का। कहते थे दोनों में बहुत समानताएं हैं मगर जो जिस्म बेचती हैं उनको ऐतराज़ है कि वो अपना बदन बेचती हैं वतन नहीं बेचती इसलिए उनका धंधा बदनाम सही बदकार है नहीं। सूदखोरी को इतना बुरा भला बताया गया कि उसकी शोहरत भी बदनाम हो गई। हालत ये है हर कोई जाता है मज़बूरी में हाथ जोड़कर क़र्ज़ लेता है बही पर अंगूठा लगाता है मगर बाद में वापस देने की बात पर जो मन चाहे करता है। कर्जमाफी और खैरात में अंतर है मगर बड़े अमीर और शान वाले लोग क़र्ज़ माफ़ी या मोहलत की बात नहीं करते शहर को छोड़ जाते हैं या विदेश भाग जाते हैं , इस पर निर्भर है कि कितनी राशि चुकानी है। हज़ारों करोड़ के कर्ज़दार टीवी पर साक्षात्कार देते हैं दो पांच करोड़ की चपत लगाने वालों की खबर अख़बार में छपती है और कुछ हज़ार का क़र्ज़ लेकर किसान ख़ुदकुशी कर कर्जमुक्त हो जाते हैं। और भी बहुत कारोबार होते हैं जो चले आ रहे हैं बाजार में सामान बेचने वाले मगर उनसे अधिक मुनाफा मिलावट करने वाले कमाते रहे हैं। ईमानदारी की दुकानदारी में रूखी सूखी मिलती है और झूठ और बेईमानी की कमाई से चुपड़ी भी दो दो मिलती हैं। सच और साफ कहा जाये तो जिस भी व्यवसाय में कोई हो बेईमानी का पाठ समझ आते ही वारे न्यारे हो जाते हैं। नौकरी हो राजनीति या कोई भी धंधा हो। इस पर अधिक बताने की ज़रूरत है नहीं आगे बाकी धंधों पर गंभीर चिंतन करते हैं। 
 
          कई सालों से धर्म सबसे सुरक्षित धंधा समझा जाने लगा था और धर्म का चोला पहन जो मर्ज़ी करने के बावजूद भी साधु संत कहलाते रहे हैं लोग। शायद पिछले सालों में जितनी नई दुकानें धर्म की खुली और गली गली खुलती रहीं वो अपने आप में एक कीर्तिमान है। शायद गृहों का उल्टा फेर है जो इस धंधे की दशा खराब होती जा रही है। मगर जो बाबा जी धर्म की जगह योग या दवा अथवा असली का पेटंट अपने नाम कर स्वदेशी का मुखौटा लगाकर सब बेचने लगा उस की बात अलग है। उसको देशभक्ति और सामान बेचने की एक साथ सही तरह से मिलाकर बेचने का तरीका मिल गया जो सफल है। उनके बाद नंबर आता है शिक्षा बेचने वालों और स्वास्थ्य सेवाओं को बेचने वालों का। ये दोनों काम कभी दान धर्म और समाज कल्याण की खातिर किये जाते थे मगर जब से डॉक्टर आईएएस आईपीएस पर लाखों की बोली लगने लगी शादी के बाजार में तब से हर पैसे वाला बच्चों को लाखों देकर दाखिला दिलवा डॉक्टर आईएएस आईपीएस बनवाने लगा और लोग खुद बिकने को महानता समझने लगे। पैसे देकर दाखिला पाने वाले बाद में लागत वसूलने को खूब कमाई करने लगे। सरकार और राजनेता इस में शामिल होते गये और सहयोगी बन गये। कुछ लोग जो इनकी पोल खोलने की बात किया करते थे उन्होंने भी अपनी कलम गिरवी रख दी और अख़बार टीवी वाले विज्ञापन की रिश्वत को अधिकार समझते समझते सत्ता की अधिकारी वर्ग की दलाली करने लगे। मगर इन सब को भी अधिक कमाई को जो धंधा अपनी तरफ आकर्षित करता है वो इधर देशभक्ति वाला ही है। कई तो पछताते हैं बेकार पढ़ लिख कर काम धंधे की तलाश की उनसे अच्छे तो वही हैं जो अपराध कत्ल बदमाशी करने के बाद राजनीति में आकर देशभक्त बनकर देश सेवा करने के नाम पर मेवा हलवा पूरी सब माल खा रहे हैं। सरकार आजकल स्कूल अस्पताल नहीं खुलवाना चाहती क्योंकि इन में बेरोज़गारी की संभावनाएं अधिक हैं मगर देशभक्ति की उलटी पढ़ाई जिस में देश को देना कुछ भी नहीं लूटना सीखना है पर ध्यान है। धंधा भी चंगा है और कभी मंदा भी नहीं होगा इसकी भी गारंटी है।