अगस्त 18, 2018

POST : 876 मौत का सोग भी होता है त्यौहार सा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

   मौत का सोग भी होता है त्यौहार सा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

 

मैंने देखना भी उचित नहीं समझा मुझे मेरी धर्मपत्नी ने बताया जिनको आप बड़े चाव से सुनते हैं वाह वाह करते हैं वो अपने पिता के निधन का समाचार फेसबुक यूट्यूब पर प्रसारित करवा साबित कर रहे हैं उनको कितना लगाव था कितना शोक मना रहे हैं । नीचे इक पुरानी पोस्ट को दोबारा पब्लिश कर रहा हूं बिना कुछ भी और लिखे नया , शायर बशीर बद्र कहते हैं ' बात क्या है कि मशहूर लोगों के  घर , मौत का सोग भी होता है त्यौहार सा ।  

बहाने अश्क जब बिसमिल आये  ,
सभी कहने लगे पागल आये ।

सभी के दर्द को अपना समझो ,
तुम्हारी आंख में भर जल आये ।

किसी की मौत का पसरा मातम ,
वहां सब लोग खुद चल चल आये ।

भला होती यहां बारिश कैसे ,
थे खुद प्यासे जो भी बादल आये ।

कहां सरकार के बहते आंसू ,
निभाने रस्म बस दो पल आये ।

संभल के पांव को रखना "तनहा" ,
कहीं सत्ता की जब दलदल आये । 

     कितना बदल गया इंसान । जिनको नहीं पता उनको बताना चाहता हूं किसी और युग में नहीं इसी दुनिया में कुछ ही साल पहले जब किसी की मौत होने पर शोक में होते थे तो घर में भी टीवी रेडिओ बंद हो जाता था और मौज मस्ती की बात करना ही अनुचित लगता था । जब देश के किसी महान नेता का निधन होता और कुछ दिन शोक मनाने की घोषणा की जाती थी तो टीवी रेडिओ पर फ़िल्मी गीत नाटक आदि बंद कर केवल शास्त्रीय संगीत सुनाई देता था । मनोरंजन की बात कोई नहीं करता था । शोक दिखाने को नहीं वास्तव में लोगों को लगता था कोई अपना नहीं रहा तो हम छुट्टी मनाने होटल पिकनिक जाने की बात कैसे कर सकते हैं । शोक सभा श्रद्धांजलि सभा में लोग खुद ही चले जाते थे बस खबर मिलनी चाहिए । मैं जनता हूं कुछ लोग शहर में जिस किसी के घर शोक की घड़ी हो संवेदना प्रकट करने जाया करते थे । अब तो बुलावे की बात की जाती है दिखावे की बात की जाती है । किसी देश के रत्न की निधन की बात पर भी दलगत दलदल की बात की जाती है । भगवान के घर जाकर भी मतलब की बात की जाती है । शोक सभा होना और बात है मन में शोक की भावना होना और बात । अधिकतर श्रद्धांजिसभाओं में आडंबर दिखावा होता है शोक नहीं होता है । जब लोग अफ़सोस करने तक में हिसाब लगाने लगें या फिर शोकसभा में दिवंगत आत्मा की नहीं अपनी बात करने लगें तो समझ लो अब हमारा समाज इतना नीचे गिर चुका है कि उसे दुःख की बात भी अवसर की बात लगती है । हमने इस शोकसभा में नहीं उस शोकसभा में जाना है एक ही व्यक्ति को लेकर भी दुविधा है भीड़ कहां होती है । भीड़ होना या अकेले होना कोई मतलब नहीं है इस बात का , मतलब आपके अंदर कौन है कोई है जिसे वास्तव में दर्द की अनुभूति है अन्यथा व्यर्थ है आपकी संवेदना । कुछ लोग बहाने बनाते हैं हम क्या करें ऊपर हाल में जाना मुश्किल है घुटनों में दर्द है , जब कोई लाभ नाम शोहरत की ज़रूरत थी तब कहां गया था आपके घुटनों का दर्द । विवाह समारोह में तीसरी मंज़िल पर सीढ़ियां चढ़कर जाने वाले किसी अपने का हाल पूछने नहीं जाने पर बहाना बनाते हैं घर उसका पहली मंज़िल पर है नहीं जा सकते ।

           मौत पर श्रद्धांजलि देने तो दुश्मन भी आते हैं और तब दुःख में दुश्मनी याद नहीं रहती है । हमने बचपन में देखा इक नवयुवक की अपनी ही बंदूक की गोली लगने से हादिसे में जान चली गई । बंदूक केवल एक खेत के पड़ोसी से दुश्मनी के डर से रखते थे । तब जो दुश्मन था उसे भी दुःख हुआ था और समझा था कि इस का कारण हमारी आपसी दुश्मनी है और उसने तभी सब के सामने दुश्मनी छोड़ने का एलान कर दिया था । आज वो लोग जो खुद कल किसी और दल में थे आज उनके दल में हैं विरोधी को शोक जताने की भी इजाज़त नहीं देते , अगर खुद यही विरोधी दल में होते तो क्या शोक अनुभव करते । रात को उसी दल के पदाधिकारी को अपने नेता के अंतिम संस्कार के दो घंटे बाद ही होटल में परिवार के साथ पार्टी करते देखा , दिल चाहता था उनसे जाकर कहूं शर्म नहीं आती आपको । मगर अंजाम जनता हूं मुझे ही ज़ख्म मिलते । नहीं ऐसा नहीं है कि उनको दुःख नहीं है , सोशल मीडिया पर उनके आंसू थम ही नहीं रहे । जब नाच गा रहे हैं उसी समय स्टेटस बता रहा है रो रहे हैं ज़ार ज़ार । फेसबुक व्हाट्सएप्प का चेहरा इतना विकृत भी हो सकता है अंदाज़ा नहीं था । नेताओं को जनता के दुःख दर्द से वास्ता नहीं होता ये तो सुना था इक शेर भी है ।

     कौम के ग़म में डिनर करते हैं हुक्काम के साथ , रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ ।

मगर अपने ही दल के पितामाह के निधन पर भी ऐसा होता है ये नहीं मालूम था । थोड़ी लाज दिखावे को रखी होती , सब लोग आपको देख रहे थे ये अपने नेता के निधन का शोक भी जश्न मनाकर करते हैं । मैंने इन दिनों अपनी शोकसभा पर कई बातें लिखी हैं , मगर करीब तीस साल पहले इक नज़्म वसीयत शीर्षक से लिखी थी आज फिर से सुनाता हूं । मेरी इच्छा यही है मगर पूरी नहीं होगी ये भी जानता हूं , क्योंकि हमारे समाज के ठेकेदार लठ लेकर परिवार के पीछे पड़ जाएंगे ऐसा किया तो । ऐसा केवल ख़ास लोगों को करने की इजाज़त है क्योंकि उनको इस की परवाह नहीं होती कि लोग क्या कहेंगे । हाज़िर है वो नज़्म :-


जश्न यारो , मेरे मरने का मनाया जाये ,

बा-अदब अपनों परायों को बुलाया जाये ।

इस ख़ुशी में कि मुझे मर के मिली ग़म से निजात ,

जाम हर प्यास के मारे को पिलाया जाये ।

वक़्त ए रुखसत मुझे दुनिया से शिकायत ही नहीं ,

कोई शिकवा न कहीं भूल के लाया जाये ।

मुझ में ऐसा न था कुछ , मुझको कोई याद करे ,

मैं भी कोई था , न ये याद दिलाया जाये ।

दर्दो ग़म , थोड़े से आंसू , बिछोह तन्हाई ,

ये खज़ाना है मेरा , सब को दिखाया जाये ।

जो भी चाहे , वही ले ले ये विरासत मेरी ,

इस वसीयत को सरे आम सुनाया जाये । 


 रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर... - Priyanka Gandhi Vadra | Facebook


1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

Aaj k daur ki sachchai ko byan krta aalekh ....Ab dikhava h..m or mere ek mitr kisi shok sabha m gye mene photo pr pushpanjli arpit ki..Mitr ko mike pr kuch bolna tha to mujhe phon dekr photo lene ko kha m hairan tha ki is waqt iski kya zarurt thi agle din whi photo fb pr mili mujhe unki wall pr.....Hd ho gai h