2 7 नवंबर 2 0 1 5 को आखिर मैंने भी मुख्यमंत्री को शिकायत का पत्र लिख दिया। और साल तक वो शिकायत भटकती रही दफ्तर दफ्तर। साल पहले की ली कुछ तस्वीरें ये हैं।
ये सभी अधिकारीयों को अख़बार वालों को भेजता रहा।
सरकारी विज्ञापन छापने वालों को भला ये कैसे दिखाई देता।
मालूम नहीं किस तरह मेरी शिकायत को साल बाद दाखिल दफ्तर का दिया गया।
पिछले महीने खबर छपी उपयुक्त को शहर को स्व्च्छ आवारा पशु मुक्त और खुले में शौच मुक्त कराने पर इनाम पुरुस्कार मिला। तब की ताज़ा तस्वीरें ये भेजी मैंने सभी को।
मगर ये भी किसी को दिखाई नहीं दिया। कागज़ों पर सभी योजनायें हर सरकार की तरह।
दो दिन पहले फतेहाबाद के विधायक का फोन नंबर मिल गया और उनको फोन कर सब असलियत बताई।
उस दिन 9 अप्रैल की भी तस्वीरें ले लीं उनको दिखाने को जो ये हैं।
सरकारी विज्ञापन छापने वालों को भला ये कैसे दिखाई देता।
मालूम नहीं किस तरह मेरी शिकायत को साल बाद दाखिल दफ्तर का दिया गया।
पिछले महीने खबर छपी उपयुक्त को शहर को स्व्च्छ आवारा पशु मुक्त और खुले में शौच मुक्त कराने पर इनाम पुरुस्कार मिला। तब की ताज़ा तस्वीरें ये भेजी मैंने सभी को।
मगर ये भी किसी को दिखाई नहीं दिया। कागज़ों पर सभी योजनायें हर सरकार की तरह।
दो दिन पहले फतेहाबाद के विधायक का फोन नंबर मिल गया और उनको फोन कर सब असलियत बताई।
उस दिन 9 अप्रैल की भी तस्वीरें ले लीं उनको दिखाने को जो ये हैं।
कल 1 0 अप्रैल को जब विधायक जी को शिकायत का पत्र देने जाने लगा तब जो देखा सामने उसकी भी तस्वीर ले जाना उचित लगा और ये कल सुबह दस बजे की तस्वीर भी फोन में ले ली। जिस में नगरपरिषद वाले कूड़ा ट्रॉली में भर रहे और आधा वहीं आग लगा जला भी रहे थे।
दस बजे मैं विधायक जी के ऑफिस पहुंचा और शिकायत का पत्र दिया , बहुत आदर से पास बिठाया और चाय को पूछा। मैंने उनको पत्र दिया जिस को उन्होंने रख लिया , कहने लगे आप गंदगी से परेशान हैं। मैंने कहा नहीं मैं प्रशासन के तौर तरीकों से झूठ से और जनता की समस्याओं से परेशान हूं। चालीस साल से जनहित की बात लिख रहा मगर किसी शासक किसी अधिकारी पर कोई बदलाव दिखता नहीं। सब को अपना प्रचारित झूठ सच और जनता की असलियत झूठ लगती है। खैर उन्होंने फोन किया बिना अर्ज़ी को पढ़े ही नगरपरिषद प्रधान को कुछ इस तरह। " भाई ये डॉ साहब मेरे पास बैठे हैं शिकायत कर रहे , आपका अपना वार्ड है मॉडल टाउन देखो "। कुछ समझे , जैसे उनको समस्या और इतने अरसे तक बदहाली की फ़िक्र नहीं , उनको तो विवश होकर फोन करना पड़ा जब कोई आया है। वास्तव में उनका ध्यान दो भगवा वेश धारी साधुओं की तरफ था जिनको वो पांच सौ रूपये दान देकर कोई पंचमुखी रुद्राक्ष ले रहे थे और उन से मंत्री बनाने को उनकी खातिर जप करने को कह रहे थे। शायद विपक्ष के विधायक को उनकी पूजा और आशिर्वाद ही मंत्री बनवा सकता है। अब जो खुद औरों से खुद अपने लिये सहायता चाहता हो मुझे उस से सहायता क्या मांगनी थी , मुझे तो उनको उनका कर्तव्य याद दिलाना था , कि आपका फ़र्ज़ है जनता की दशा देखना। मैंने उन्हें सब बताया भी दिखलाया भी आगे उनको मर्ज़ी है।
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