कौन होते हैं हम लोग ( जनहित की बात वाले ) डॉ लोक सेतिया
हम बहुत सारे लोग हैं कोई नाम नहीं कौन कौन कहां कहां है। न कोई संगठन न कोई एन जी ओ न किसी भी जाति धर्म से कोई वास्ता। मानवता है जो हर दिन याद रहती है। कहीं कुछ भी गलत होता है हम बेचैन होने लगते हैं। हम आवाज़ उठाते हैं अन्याय अत्याचार भेदभाव किसी के भी साथ होता देखकर। कोई डूब रहा है तो हम तमाशाई बनकर विडिओ नहीं बनाते। तैरना नहीं आता फिर भी दरिया के लहरों से टकराते हैं और चिंता नहीं करते मरने से नहीं डरते कोशिश करना छोड़ते नहीं है। हमने हार नहीं मानी है कि कुछ भी सुधर नहीं सकता है। हमने कोई सीमा नहीं बनाई हुई कि अपने गांव की गली की शहर की बात करनी है , राज्य की बात करनी है , हमने समाज की बात करनी है देश के हर भाग की बात करनी है। न किसी ने हमें आदेश दिया है न किसी का कोई निर्देश है , पुराने लोग पुरानी परंपरा बिभाते हैं। समाज को समाज का सच दिखलाते हैं। कोई वेतन कोई रुतबा कोई शोहरत नहीं मांगते हैं कहीं भी किसी का शोषण नहीं हो अराजकता नहीं हो कोई लाचार नहीं हो इतना चाहते हैं। जब भी जिस जगह कोई बात ठीक नहीं नज़र आती संबंधित लोगों विभाग को जाकर बताते हैं , उनको वास्तविकता बताने को कई ढंग अपनाते हैं। कभी खुद जाना होता था , कभी खत लिखकर सूचना देते थे कभी फोन पर समस्या बताते थे आजकल ईमेल और सोशल मीडिया से कर्तव्य निभाते हैं। कहीं कोई घायल है कहीं कोई दबा कुचला किसी का बंधक बना हुआ है कहीं शिक्षा स्वास्थ्य की कोई खामी है कहीं सरकारी विभाग की नाकामी है जब जो भी सामने आता है अपना कर्तव्य हमें बुलाता है।
देश समाज की समस्याओं को हमने अपना समझा है , कुछ कोशिश करने का बीड़ा उठाया है। निराश होकर नहीं बैठे थककर हार नहीं मानी कटु अनुभवों से मन नहीं घबराया है , हर दिन किसी न किसी तरह कोई सबक समझ आया है। आज ऐसे इक जी डी अग्रवाल की खबर आई है 85 साल की आयु है गंगा सफाई को 109 दिन से अनशन पर बैठे हैं। कोई किसी गांव में अकेला रास्ता बनाता है , कोई और सड़क किनारे बच्चों को खुद बुलाकर पढ़ाता है। कोई किसी मुसाफिर को मंज़िल बतलाता है बिना वर्दी यातायात को सुचारु ढंग से चलवाता है। ऐसे तमाम लोग अपने घर परिवार से बाहर सब को अपनाते हैं निस्वार्थ काम आते हैं। मगर जिस किसी की गलती पर उंगली उठाते हैं उसकी आंख का कांटा बन जाते हैं। सरकार सवाल करती है अधिकारी लताड़ लगाते हैं आप कौन हैं। क्या बताएं कोई जवाब भी नहीं बस मौन हैं। समाजसेवक देशभक्त कई लोग हैं जो तमगा लगाए फिरते हैं हम अनाम गुमनाम कोई स्वार्थ नहीं अच्छा लगता है यही काम करते हैं। जिस किसी को दाग़ दिखलाते हैं उसी के कोप का भोजन बन जाते हैं। हम कोमल बदन कोमल दिल वाले लोग तूफानों से पत्थरों से टकराते हैं घायल होकर भी नहीं रुकना जानते चलते जाते हैं। जब भी कोई हमारे होने पर ऐतराज़ जताता है हमारी आवाज़ को खामोश करना चाहता है अपने शुभचिंतक को विरोधी समझता है , अफ़सोस बस जताते हैं। हम उजालों की बात करते हैं खुद को जलाकर रौशनी करते हैं मगर अब तो ये भी होता है अंधेरे हमीं पर इल्ज़ाम धरते हैं। सच की मशाल लेकर चलते रहे हैं झूठ की बस्ती से नहीं गुज़रते हैं। हम राहों से कांटे चुनने वाले लोग हैं जिधर से भी हम गुज़रते हैं फूल खिलते हैं। जाने ये कैसा निज़ाम आया है चलना गुनाह रेंगने तक की मनाही है। बार बार यही होता है , मुजरिम समझा जाता है जो फूल बोता है। आम खाने की बात करते हैं बबूल बोकर भी कुछ लोग , जिनको गुलों से लगाव नहीं है वो कहते हैं हम दरख्त हैं मगर मिलती लोगों को छांव नहीं। आज इतना ब्यान है मेरा कल फिर कोई इम्तिहान है मेरा ।
1 टिप्पणी:
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २२०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
गिरिधर मुरलीधर - 2200 वीं ब्लॉग-बुलेटिन " , में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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