नियम कायदा क़ानून अपने पर लागू नहीं ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया
इसको राहगिरी नाम दिया गया है। राहगिरी इक राह बनाना होता है , हरियाणा में फतेहाबाद में पुलिस विभाग सरकारी हॉस्पिटल को जाती मुख्य सड़क को रोक अपने आयोजन का मंच बनाते हैं। उनको किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत कब है। अदालत आदेश देती है सरकार अपने आयोजनों में बच्चों की उपयोग नहीं करे मगर कौन मानता है। वास्तव में अपने प्रचार को राहगिरी नाम देना ही सही नहीं है। कई शहरों में ये शब्द प्रदूषण कम करने को राहगिरी नाम से नियमित किया जाता किसी एक दिन सप्ताह में कोई मार्ग वाहनों के लिए नहीं केवल साईकिल सवार और पैदल चलने वालों के लिए खुला रहता है। राहगिरी राह रोकना नहीं राह बनाना होता है। मगर क्या किया जाये नेता अधिकारी जनता की राहें रोकते ही अधिक हैं , बनाते खुद अपने लिए बहुत हैं। एन जी ओ की आड़ ने अपने लोगों को रेवड़ियां बांटने की परंपरा नई नहीं है। हर दिन बेकार के आयोजन करते हैं और राज्य या देश का धन फज़ूल बर्बाद किया जाता है , हासिल इन से कुछ भी नहीं होता है। कहने को जनसम्पर्क की बात मगर जनता को पास तक नहीं फटकने देते , शासक वर्ग अपनी पसंद के चुने लोगों के साथ कार्यकर्म करते हैं। किसी आम नागरिक की बात कोई बोल नहीं सकता सवाल करना तो दूर की बात है। सार्थकता की फ़िक्र किसे है निरर्थक किये जाते हैं आयोजन कभी इस नाम कभी उस नाम से। जो करना उसकी याद किसी को नहीं जिसका कोई मतलब नहीं बस कुछ पल का तमाशा वही किये जाते हैं। सरकारें तमाशा दिखाने को नहीं होती न ही देश की जनता तमाशबीन है , तमाशाई आप हैं जो किसी दिन खुद तमाशा बनते हैं तब होश उड़ जाते हैं।
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