कौन समझेगा कहानी मेरी ( कही-अनकही ) डॉ लोक सेतिया
शब्द नहीं एहसास हैं , मैंने अपनी दास्तां सुनाने को कुछ फ़िल्मी गीत कुछ और बातें उधार ली हैं । मेरे अल्फ़ाज़ जाने कैसे कहां गुम हो गए हैं । मैं कौन हूं कहां हूं देखता कोई नहीं , रहता हूं जिस बस्ती में मुझे जानता कोई नहीं । बंद हूं इक कैद में ज़िंदगी की चाह में , कफ़स के परिंदों को उड़ने को छोड़ता कोई नहीं । कभी बेवजह हंसता अश्क बहाता कभी जाने क्यों , इस दुनिया की भीड़ में मेरी तरफ देखता कोई नहीं । दोस्त खुद का नहीं , दोस्ती का घर बना लिया , दुश्मन बहुत मेरे यहां , मुझे मांगने पर मगर मारता कोई नहीं । ये इक नज़्म है जिसकी कोई बहर नहीं मिली कोई मीटर काफ़िया नहीं मिल सका लाख कोशिश करने पर भी । जिस डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखी हुई थी खो गई आज ढूंढी तो नहीं दिखाई दी । उसी तरह जैसे इधर उधर घर बाहर ज़माने भर के अपने बेगाने लोगों में प्यार की चाहत की इक ओस जैसी बूंद भी मेरे लिए कभी नहीं थी । इक दोस्त अजीब लगता था उसकी बातें अच्छी लगती थीं मगर समझ नहीं आती थीं शायद अब थोड़ा थोड़ा समझने लगा हूं । याद आया उस की तबीयत खऱाब थी मिलने गया तो उसकी पत्नी ने जैसे इक शिकायत की थी बोली थी भाई साहब देखना आपका दोस्त इस तस्वीर बनाकर क्या समझाना चाहता है । बड़ी सी पेंटिंग दीवार पर टांगी हुई थी निजी कक्ष में जिस में कोई बदन पर कांटेदार तारों से बंधा हुआ था । शायद सबकी नज़र नहीं जाती थी वहां जहां इक छोटा सा दिल का निशान बना हुआ था । कॉलेज के समय से ही उसको ऐसे पेड़ों की पेंटिंग बनानी पसंद थी जिस की शाखाओं पर कोई पत्ता तक नहीं होता था सूखे ठूंठ जैसे दरख़्त की तस्वीर बनाता रहता था । उस ने अपने घर में गमलों में पौधे लगा रखे थे जिन में फूलदार कम और कंटीले कैक्टस अधिक थे । मुझे घर बनाने पर कुछ कैक्टस गमले में उपहार दे गया था कोई कुछ भी समझे मैं जानता हूं उसके दामन में मेरे लिए एक भी शूल नहीं था फूल खिलाना चाहता था शायद मगर साथ साथ कांटे भी होंगे गुलाब में छुपे हुए इस वास्तविकता को समझाना भी चाहता था ।
उम्र बीत गई तब जाकर समझा खुद अपने आपको सबकी बात को । ये दुनिया किसी प्यासे जलते तपते रेगिस्तान की तरह है और हम लोग प्यासे हैं प्यार अपनापन और चैन सुकून की तलाश में दौड़ते रहते हैं । यही मृगतृष्णा जीवन का अभिप्राय है चमकती हुई रेत को पानी समझ भागते भागते आखिर प्यासे ही मर जाना है । मुझे फ़िल्में देखना बेहद पसंद रहा है , लोग अपने आनंद मनोरंजन के लिए सिनेमा देखते हैं मुझे जैसे किरदार भाते हैं आस-पास नहीं मिलते फ़िल्म देखता तब दिखाई देते हैं । पागलपन ही सही मुझे प्यार रहा है ऐसे किरदारों से अथाह मुहब्बत की है , आनंद फिल्म में एक दोस्त मिल जाता है जिसको बिना जाने पहचाने किसी नाम से पुकारने पर जवाब में उसी तरह का किरदार सामने खड़ा दिखाई देता है । आनंद किसी मुरारीलाल को नहीं जानता फिर भी कभी किसी से मिलने बात करने की चाहत हो तो इस नाम से आवाज़ देकर पुकारता है राजेश खन्ना को जॉनी वाकर गुरु बन जयचंद नाम से जवाब देता है । मुझ जैसे लोग कितने होंगे जिनको उनका मुरारीलाल जयचंद आनंद को मिले कितने दोस्तों की तरह वास्तव में मिलते नहीं हैं ।
लेकिन आजकल की फ़िल्में टीवी सीरियल की कहानियों में दोस्ती मुहब्बत हमदर्दी वाले किरदार नहीं होते हैं , दिखाई देते हैं चालाक चालबाज़ हिंसा को बढ़ावा देने वाले ख़लनायक वाले किरदार । खलनायक आजकल नायक से अधिक पसंद किए जाने लगे हैं , हमको सिनेमा टीवी अखबार से टीवी समाचार चैनल तक डराने लगे हैं । सपने सुहाने अब नहीं दिखाई देते भयानक ख़्वाब आधी रात को जगाने लगे हैं । फूलों की बात क्या बताएं इधर बाज़ार में ऊंचे दाम बिकते हैं । मैंने फूलों की बात जब भी किसी से की लगा सब को प्लास्टिक या पत्थर के फूल पसंद हैं गुलदान में सजाकर रखने को । मेरे खिलाए फूल भरी बहार में क्यों मुरझा जाते हैं मैं नहीं जानता कोई राज़ होगा छुपा इस में मुमकिन है । चलते चलते इक पुरानी ग़ज़ल सुनाता हूं ।
फूलों के जिसे पैगाम दिये ( ग़ज़ल )
फूलों के जिसे पैग़ाम दियेउसने हमें ज़हर के जाम दिये ।
मेरे अपनों ने ज़ख़्म मुझे
हर सुबह दिए हर शाम दिये ।
सूली पे चढ़ा कर खुद हमको
हम पर ही सभी इल्ज़ाम दिये ।
कल तक था हमारा दोस्त वही
ग़म सब जिसने ईनाम दिये ।
पागल समझा , दीवाना कहा
दुनिया ने यही कुछ नाम दिये ।
हर दर्द दिया , यारों ने हमें
कुछ ख़ास दिये , कुछ आम दिये ।
हीरे थे कई , मोती थे कई
" तनहा " ने सभी बेदाम दिये ।
सूली पे चढ़ा कर खुद हमको
हम पर ही सभी इल्ज़ाम दिये ।
कल तक था हमारा दोस्त वही
ग़म सब जिसने ईनाम दिये ।
पागल समझा , दीवाना कहा
दुनिया ने यही कुछ नाम दिये ।
हर दर्द दिया , यारों ने हमें
कुछ ख़ास दिये , कुछ आम दिये ।
हीरे थे कई , मोती थे कई
" तनहा " ने सभी बेदाम दिये ।
2 टिप्पणियां:
आपकी कशमकश को उकेरता अच्छा लेख है... सच कहा आजकल खलनायक नायक से ज्यादा पसंद किए जाने लगे हैं...kgf pushpa जैसी मूवी सुपरहिट हो रही हैं। ये बात भी मुझे अपनी सी लगी कि फिल्में देख कर कुछ किरदार मिल जाते हैं
तमन्ना जिसकी होती है वही अक्सर नही मिलता।
मिलें बेचैनियाँ हरदम सुकूँ पलभर नही मिलता
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