सितंबर 06, 2019

POST : 1194 उससे पहले और उसके बाद ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

   उससे पहले और उसके बाद ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

      उन्होंने अपनी पसंद के इक लेखक को बुलाया है और लिखवाना चाहते हैं कुर्सी की व्यथा कथा इस तरह से जैसे ईस्वी से पहले और ईस्वी के बाद बांटकर इतिहास लिखते हैं। चलते चलते बात देश की अर्थव्यवस्था की होने लगी तो समझाने लगे राज़ की बात है फिर भी आपको बताने में कोई हर्ज़ नहीं है मेरे पास हर मर्ज़ की दवा है। बस जल्दी ही देश का सारा उधार चुकता कर देना है वो भी नकद भुगतान कर के। जिस जिस ने देश की संस्था या कोई विदेशी सरकार हो बकाया लेना है उनको बुलावा भेजा जाएगा कि जितना भी हिसाब बकाया है आकर नकद ले जाओ अन्यथा उस तारीख के बाद सब क़र्ज़ बही खाते से मिटा दिए जाएंगे। लालजी की गद्दी की तरह अपने बैंक की तिजोरी खोल कर जो जो आता गया थैला भरकर पैसे देकर विदा किया जाएगा। क्या अभी भी इतना पैसा बचा हुआ बाकी रखा है बैंक की तिजोरी में पूछा तो कहने लगे बेशक। मगर खबर तो थी सब आपने हथिया लिया है और तिजोरी नाम को है। अभी थोड़ा इंतज़ार करो सब आपके सामने ही होगा हंसते हुए बताया गया। 

       ऐलान किया गया अमुक तारीख को सभी लेनदार आकर भुगतान ले जाएं बाद में कोई उधार नहीं बाकी का इश्तिहार छपवा देंगे। कितने पुराने क़र्ज़ वसूली करने को चले आये और सभी ने अपना अपना हिसाब का कागज़ का पन्ना दे दिया। जिस जिस ने जितना लेना बताया था उसको बंद थैले में उतना पैसा बाहर लिखा हुआ भीतर कितना पैसा है देकर रसीद लिखवा ली गई। सरकारी मोहर लगी थी विश्वास करना था किसी को भी गिनती करने या थैला खोलने की ज़रूरत नहीं थी। सब चले गए अपने अपने देश या देश के लोग अपने शहर में। ये कमाल कोई और नहीं कर सकता था नामुमकिन को मुमकिन करना उन्हीं को आता है। 

    अभी भी उनको कुछ और करना था देश के लोगों को वादा किया था उनके खाते में धन जमा करवाने का उसको भी निभाना था। ऐलान किया अगले दिन बैंक के सामने पहले की तरह कतार में लगकर जिसे जितना चाहिए नकद ले जा सकता है। और हर कोई धनवान गरीब अपने अपने हिस्से का थैला लेकर खुश था। मगर देश विदेश के सभी लोग ये देख कर दंग रह गए कि जो थैले मिले थे सभी पुराने हज़ार रूपये और पांच सौ रूपये के चलन से बाहर किये जा चुके नोटों से भरे थे। सब ने पूछा क्या ये नोट दोबारा बाज़ार में चलने लगेंगे सरकार फिर  आदेश दे रही है। समझाया गया देश में नहीं चल सकते तो क्या हुआ विदेश वाले अपने देश में जारी कर सकते हैं अभी भी उस पर लिखा हुआ है धारक को देने का वादा करता हूं। वादा है और विश्वास पर दुनिया चलती है। मगर जिनको देश में नकद मिला वो इसका क्या करेंगे सवाल किया गया। नहीं जानते जो पुरानी करंसी उपलब्ध नहीं होती है चलती नहीं बाज़ार में फिर भी उसकी कीमत कई गुणा हुआ करती है। मुझसे पहले की कीमत रूपये की ऊंची समझी जाएगी ही और मेरे बाद रूपये की कीमत क्या होगी मत पूछना। लोग पुराने हज़ार रूपये और पांच सौ रूपये के नोट शीशे के फ्रेम में जड़वा कर सजाकर रखा करेंगे ताकि आने वाली पीढ़ियां देख सकें उनसे पहले और उनके बाद की करंसी की खनक कितनी अलग है। उनसे ये सब सुनता रहा लेखक और कल्पना कर देखने की कोशिश करता रहा फिर भी ऐसे लिखना खुद अपने आप और लिखवाने वाले का भी उपहास करवाना होगा।

  विचार करने के बाद उनको याद आया इक फिल्म में सलमान खान को अमिताभ बच्चन भगवान बनकर कुछ दिन को अपनी शक्ति दे देते हैं ताकि दुनिया को अपने हिसाब से चलाये क्योंकि उस फिल्म में अभिनेता सलमान खान को ऊपर वाले से शिकायत रहती है कि दुनिया को ढंग से नहीं चला पाए हैं। ऊपर वाले को कहते हैं सलमान कि तुम से तो बेहतर चला सकता हूं मैं दुनिया को। लेकिन मिले हुए दिन बीत जाते हैं और सलमान खान जो चाहता होता रहता है मगर समय समाप्त होते होते अभिनेता सलमान खान अपने ही बुने जाल में उलझ जाता है और भगवान से विनती करता है सब पहले जैसा कर दो। और भगवान समय का पहिया वापस घुमा कर पीछे ले जाते हैं और सब पहले की तरह हो जाता है बीच के दिन गायब हो जाते हैं। अब कैसे कोई भगवान ऐसा करिश्मा दिखला सकता है जिस से 8 नवंबर 2016 से लेकर आज तक जो जो भी हुआ वापस पहले जैसा हो जाये। देश की अर्थव्यवस्था को पहले की तरह बनाने का कोई और उपाय उनको सूझता नहीं है। चांद पर जाकर भी हासिल कुछ भी नहीं होगा जो देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर वापस ले जा सकता हो। उनकी उलझन यही है कि कैसे इतिहास और दुनिया की जानकारी से नोटबंदी की याद तक को मिटाया जा सके। बस पुरानी बंद की करंसी हज़ार पांच सौ के नोटों के बंडल फिर उपयोग करने से बात बन सकती है।

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