एक नई कहानी चाहत की ( लघु कथा ) डॉ लोक सेतिया
हर बार की तरह सत्ता पर बैठे शासक ने सपनों का नया जाल बनाया है। जनता को लुभाने को शानदार भविष्य की तस्वीर बना कर समझाया है कि जो पहले नहीं हुआ मुझसे और किसी से भी मुमकिन नहीं था इस बार अवश्य संभव होगा। शर्त इतनी सी है जैसा मुझे करना पसंद है उसका बिना सोचे समझे समर्थन करना होगा। जो मेरी बात नहीं मानेगा उसको बेवफ़ा समझा जाएगा। इस तरह से सरकार ने अपने बजट में जनता की वफ़ा और अपनी ज़फ़ा का खुला सौदा सरेआम रख दिया है। जनता को इक सदियों पुरानी मुहब्बत की कहानी याद आई है जिसको सत्ताधारी को सुनाना चाहती है मगर डर लग रहा है अंजाम को सोचकर। फिर भी साहस कर सुना रही है। शासक जी अपने पहले भी वादा किया था सेवक बनकर रहोगे मगर कभी भी ऐसा लगा नहीं। हमेशा मालिक बनकर देश का ख़ज़ाना अपने खुद पे लुटाते रहे और जब खज़ाना ख़ाली हुआ तब घर मकान सामान बेचकर सपनों की दुनिया बसाने के ख्वाब दिखला रहे हो। आपको दो आशिक़ों की बात बताते हैं।
इक औरत के दो चाहने वाले थे और हर दिन उसको खुश करने को बहुत कुछ करते रहते थे। आखिर दोनों को इक इम्तिहान से गुज़रना पड़ा और क्या कर सकते हैं विवाह के बाद बताना था। इक आशिक़ ने बहुत खूबसूरत घर बनवा कर दिखलाया दूजे ने दौलत का अंबार लगा कर दिखलाया। उस औरत ने दोनों को इनकार कर दिया ये कहते हुए कि तुम मुझे प्यार नहीं करते पाना चाहते हो और मेरी कीमत सिक्कों में लगा मुझे खरीदना चाहते हो। मुझे उसकी तलाश है जो मुझे वास्तव में खुश रखना चाहता हो आज़ाद होकर अपनी मर्ज़ी से जीने देना चाहता हो। किसी की कविता है जिस में बेटी अपने बाबुल से अपना विवाह किसी लौहार से करने को कहती है जो उसकी जंज़ीरों को काट सके। और वो औरत अभी भी उसी की तलाश में है जो अपनी शर्तें नहीं थोपना चाहे और नारी को सम्मान से जीने देना चाहता हो अधिकार की तरह न कि किसी का उपकार समझ कर। आपने भी सत्ता पर आसीन होकर देश की जनता को अपनी शर्तों में बांधना चाहा है मगर इस युग की जनता और आधुनिक महिला सोने चांदी के गहनों और महल की चाह नहीं रखती है उसको अपने हक और समानता सुरक्षा और आदर का महत्व पता है। अब मीठी मीठी बातों से बहलती नहीं है और घबराती भी नहीं इस बात से कि किसी के बगैर कैसे रह सकेंगे। अपनी ताकत को पहचानती है जानती है अपने अधिकार भीख में नहीं मिलते हासिल करने होते हैं।
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